जब चिड़िया का दाना नहीं लौटाया पेड़ ने

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Photo : Rajendra Tiwari
चित्र : राजेंद्र तिवारी

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

बहुत छोटा था तो माँ अपने साथ सुलाते हुए उस चिड़िया की कहानी सुनाती थी, जिसका एक दाना पेड़ के कंदरे में कहीं फँस गया था। चिड़िया ने पेड़ से बहुत अनुरोध किया वह दाना लौटा देने के लिए।

(चित्र : राजेंद्र तिवारी)

लेकिन पेड़ उस छोटी-सी चिड़िया की बात भला कहाँ सुनने वाला था? हार कर चिड़िया बढ़ई के पास गयी और उसने उससे अनुरोध किया कि तुम उस पेड़ को काट दो, क्योंकि वह उसका दाना नहीं दे रहा। भला एक दाने के लिए बढ़ई पेड़ कहाँ काटने वाला था? फिर चिड़िया राजा के पास गयी और उसने राजा से कहा कि तुम बढ़ई को सजा दो, क्योंकि बढ़ई पेड़ नहीं काट रहा और पेड़ दाना नहीं दे रहा। राजा ने उस नन्हीं चिड़िया को डाँट कर भगा दिया कि कहाँ एक दाने के लिए वह उस तक पहुँच गयी है। 

चिड़िया हार नहीं मानने वाली थी। वह महावत के पास गयी और बोली कि अगली बार राजा जब तुम्हारी पीठ पर बैठे तो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि राजा बढ़ई को सजा नहीं देता,  बढ़ई पेड़ नहीं काटता, पेड़ उसका दाना नहीं देता। महावत ने भी चिड़िया को डपट कर भगा दिया। चिड़िया फिर हाथी के पास गयी और उसने अपने अनुरोध को दोहराया और कहा कि अगली बार जब महावत तुम्हारी पीठ पर बैठे जो तुम उसे गिरा देना, क्योंकि वह राजा को गिराने को तैयार नहीं, राजा बढ़ई को सजा देने को तैयार नहीं, बढ़ई पेड़ काटने को तैयार नहीं, पेड़ दाना देने को राजी नहीं।

हाथी बिगड़ गया। उसने कहा, “ऐ छोटी चिड़िया, तू इतनी-सी बात के लिए मुझे महावत और राजा को गिराने की बात सोच भी कैसे रही है?”

चिड़िया आखिर में चींटी के पास गयी कि तुम हाथी की सूँढ़ में घुस जाओ, क्योंकि हाथी महावत को गिराता नहीं, महावत राजा को गिराने को तैयार नहीं, राजा बढ़ई को सजा देने को राजी नहीं, बढ़ई पेड़ नहीं काटता, पेड़ दाना नहीं देता। चींटी ने चिड़िया से कहा, “चल भाग यहाँ से। बड़ी आयी हाथी की सूँढ़ में घुसने को बोलने वाली!”

अब तक अनुरोध की मुद्रा में रही चिड़िया ने रौद्र रूप धारण कर लिया। उसने कहा कि मैं चाहे पेड़, बढ़ई, राजा, महावत और हाथी का कुछ न बिगाड़ पाऊँ, पर तुझे तो अपनी चोंच में डाल कर खा जाउँगी चींटी रानी।

चींटी डर गयी। भाग कर वह हाथी के पास गयी। हाथी भागता हुआ महावत के पास पहुँचा। महावत राजा के पास कि हुजूर, चिड़िया का काम कर दीजिए नहीं तो मैं आपको गिरा दूँगा। राजा ने फौरन बढ़ई को बुलाया। उससे कहा कि पेड़ काट दो, नहीं तो सजा दूँगा। बढ़ई पेड़ के पास पहुँचा। बढ़ई को देखते ही पेड़ बिलबिला उठा कि मुझे मत काटो, मुझे मत काटो। मैं चिड़िया को दाना लौटा दूँगा।

माँ इतनी कहानी सुनाते-सुनाते सो जाती थी, लेकिन मेरी आँखों से नींद उड़ जाती। मेरे कानों में दो ही बातें गूँजती रहती थीं – मुझे मत काटो, मुझे मत काटो। मैं चिड़िया को दाना लौटा दूँगा। 

माँ सो चुकी होती और मेरी आंखों से नींद उड़ चुकी होती। मैं एक नन्हीं-सी चििड़या बन कर आसमान में उड़ता रहता। आसमान में उड़ते हुए मैं नीचे पेड़ की ओर देखता, बढ़ई की ओर देखता, राजा की ओर देखता, महावत को देखता, हाथी को देखता और फिर चींटी को देखता। लगता कि सबसे शक्तिशाली मैं ही हूँ। मैं कुछ नहीं कर सकता तो भी चींटी को तो मैं अपनी चोंच में पकड़ कर खा ही सकता हूँ। और यूँ ही उड़ता-उड़ता कब सो जाता, पता ही नहीं चलता।

माँ बहुत दिनों तक मुझे यह कहानी नहीं सुना पायी, लेकिन माँ के चले जाने के बाद भी मुझे अक्सर ऐसा लगता कि माँ मेरी बगल में लेट कर मुझे यह कहानी सुना रही है। यकीन कीजिए, इस इकलौती कहानी ने मेरे मन से ‘डर’ को निकाल दिया था। मुझे हमेशा लगता रहा कि हर ताकत के आगे एक और ताकत होती है, और अंत में सबसे ताकतवर तो मैं ही हूँ। माँ शायद इस सबसे आसान-सी इस कहानी को मुझे लोरी की तरह सुनाती रही होगी, लेकिन मैं इसे वीर रस की कविता की तरह सुनता था। और आखिर में उस पेड़ का गिड़गिड़ाना मेरे कानों को संतोष देता। लगता कि इतने बड़े पेड़ ने चिड़िया के आगे घुटने टेक दिये।

दरअसल बात यही है कि आपको अपनी ताकत को पहचानना होगा। आपको पहचानना होगा कि भले आप छोटी-सी चिड़िया की तरह हों, लेकिन ताकत की कड़ियाँ कहीं-न-कहीं आपसे होकर गुजरती होंगी। हर सेर को सवा सेर मिल सकता है, बशर्ते आप अपनी लड़ाई में घबरायें नहीं। आप अगर किसी काम के पीछे पड़ जायेंगे तो वह काम होकर रहेगा, यह मेरा अपना अनुभव है। 

लग जाइये अपनी ज़िंदगी को जीने के पीछे, लग जाइये अपने हक को पाने के पीछे। जो ठान लीजियेगा, उसे कर लीजियेगा। यकीन कीजिए, वही होगा जो आप चाहेंगे। आखिर चिड़िया होकर भी चींटी की जान आपके हाथ में है। बाकी चींटी को जो करना है, वह करेगी। हाथी को जो करना है वह भी करेगा। सब करेंगे, बस रुकना आपको नहीं है।

(देश मंथन, 09 अगस्त 2014)

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