बेटी ‘उजाला’ और बहू ‘बेरहम’

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

माँ ने बताया था कि जिस दिन मेरा जन्म हुआ था, उस दिन खूब बारिश हो रही थी। सुबह के पांच बजे घर में थाली पर हँसुए की झंकार गूंजी थी। मैं याद करने पर आऊँ तो सब कुछ याद आ सकता है। लेकिन मैं आज अपने जन्मदिन को याद नहीं करना चाहता।

कल मैंने बहुत बार सोचा था कि मैं अपने जन्म की पूरी घड़ी को ही याद करूँगा, लेकिन दफ्तर में ढेर सारी खबरों से गुजरते हुए मेरी निगाह एक ऐसी खबर पर पड़ गई कि मेरे दिल से मेरे जन्म की कहानी ही मिट गयी।

इन दिनों मैं अपनी कलाई में एक हेल्थ बैंड पहनता हूँ। उस हेल्थ बैंड की खासियत यह है कि मेरे दिन भर की शारीरिक गतिविधियों को वो दर्ज करता है और मुझे अपने फोन पर यह मालूम पड़ जाता है कि दिन भर में मैं कितने कदम चला, कितनी देर सोया आदि। आम तौर पर दिन भर में दस हजार कदम मैं पैदल चल लेता हूँ, जो फिटनेस के हिसाब से ठीक है। पर मेरे लिए चिन्ता का विषय मेरी नींद है। मेरा फिटनेस बैंड लगातार बता रहा है कि मैं तकरीबन तीन से चार घंटे की नींद ही रोज ले रहा हूँ। ऊपर से बुरी बात यह है कि उस बैंड के मुताबिक मेरी नींद गहरी नहीं है, यानी नो डीप स्लीप। सोने के इस पूरे क्रम में कभी भी घंटा भर से अधिक मेरी नींद गहरी दर्ज नहीं हुई है।

खैर, आज मेरी चिन्ता का विषय यह है कि कल रात अपने बैंड के मुताबिक मैं कुल सवा दो घंटे ही सो पाया हूँ। उसमें भी कुल जमा 16 मिनट की मेरी गहरी नींद दर्ज हुई है।

यह सच है। कल मैं सारी रात नहीं सो पाया। कल सारी रात अपनी ढकी हुई पलकों के नीचे मुझे लकवाग्रस्त वो बूढ़ी और लाचार माँ नजर आती रही, जिसे उसकी बहू रोज पीटा करती थी।

यह खबर मेरे पास यूपी के कौशांबी इलाके से आयी थी और पूरी खबर देख कर मैं सिहर उठा था।

मैं जानता हूँ कि आप भी इस खबर को देख और सुन कर सिहर उठेंगे।

***

कौशांबी में रहने वाले एक युवक की माँ को दो साल पहले लकवा मार गया था। लाचार माँ सारा दिन बिस्तर पर पड़ी रहती। कुछ दिन पहले एक दिन बेटा जब देर रात घर आया, तो उसने देखा कि माँ के शरीर पर बहुत से चोट के निशान हैं। बेटे ने अपनी पत्नी से इस बारे में पूछा तो उसने साफ मना कर दिया कि उसे नहीं पता।

पत्नी को नहीं पता कि माँ को चोट कैसे लगी?

पर माँ को तो चोट लगी थी। बेटे को लगा कि हो सकता है कि नींद में माँ के ऊपर कुछ गिर पड़ा हो, और लकवा से पीड़ित माँ कुछ बोल ही न पायी हो।

दो चार दिन बीते। फिर उसने एक रात पाया कि माँ के शरीर पर चोट के ढेरों निशान थे।

जो माँ बिस्तर से उठ नहीं सकती, जो माँ कुछ बोल नहीं सकती, जो माँ खुद कुछ खा नहीं सकती, उसके शरीर पर चोट कैसे?

आखिर लाचार होकर बेटे ने चुपके से माँ के कमरे में गुप्त कैमरा लगवा दिया।

उस कैमरे की तस्वीर ही हमारे पास आयी और मैं रो पड़ा।

मैंने दिखाने को तो यह खबर टीवी पर दिखा दी। मैंने बार-बार उस खबर में लिखा कि देखिए संसार की सबसे घिनौनी बहू की तस्वीर। देखिए कैसे एक बहू अपने पति की लाचार माँ को पीट रही है। देखिए कैसे वो उस लाचार हाड़-माँस के पुतले को बिस्तर से घसीट कर नीचे गिराती है। फिर पति के आने से पहले उसे बिस्तर पर लिटा कर चादर से ढक देती है।

मैंने जो तस्वीरें देखीं हैं, वो बेहद मार्मिक हैं।

मुझे नहीं पता कि उस माँ का कसूर क्या है। मुझे नहीं पता कि क्यों उस लाचार लाश नुमा शरीर के साथ वो महिला इतना घिनौना व्यवहार कर रही है।

पर इतना पता है कि वो जो कर रही है, वो कोई मनुष्य नहीं कर सकता है। जो ऐसा कर सकता है, उसे मनुष्य कहलाने का हक ही नहीं है।

एक लाचार बुढ़िया को मार कर, बिस्तर से धक्का देकर वो बहू कौन सी कुंठा निकाल रही है, यह सोचने वाली बात है। मुमकिन है कि वो चाहती हो कि बुढ़िया मर जाए, फिर वो आजाद जिन्दगी जी पाये। तो क्या मौत किसी के हाथ की बात है?

***

मेरे मन में एक सवाल है, सवाल यह कि क्या यह बहू कभी खुद सास नहीं बनेगी? मैंने बहुत गंभीरता से पूरे वीडियो को देखा है, जब बहू अपनी सास को मार रही होती है, कोने में एक छोटा सा बच्चा घुटने के बल चलता हुआ कमरे में घुसता है। जाहिर है, वो उस महिला का बेटा होगा। मैं आज ज्यादा लिख पाने की स्थिति में नहीं हूँ। पर एक बात मैं अपनी तरफ से कहना चाहता हूं कि आखिर एक महिला दूसरी महिला के प्रति इतनी नफरत कैसे पाल लेती है? जिन बेटियों के विषय में मैं ही कहता हूँ कि वो जहाँ होती हैं, वहाँ उजाला होता है, वही ‘उजाला’ अपने पति की माँ के प्रति इतनी बेरहम क्यों हो जाती है? पति के माँ के साथ क्यों उसके रिश्ते अंधेरे से भरे हुए नजर आते हैं?

मेरे पास ऐसी भी कई कहानियाँ हैं, जिनमें सास ने भी बहू को सताया। लेकिन मैंने तो सदा यही सुना है कि महिलाएँ करुणा की मूर्ति होती हैं। दया और प्यार उनके डीएनए में होता है। फिर इतनी नफरत? एक औरत से? एक माँ से?

आज पहली बार लग रहा है कि भाग्यशाली होती हैं वो माँएँ जो बहू के आने से पहले संसार छोड़ कर चली जाती हैं।

मुझे माफ कीजिएगा। अगर मैंने आज कुछ ज्यादा भावुक होकर कुछ ऐसी-वैसी बातें लिख दी हों तो। आज बहुत दिनों बाद बहुत बैचैन हूँ। बहुत बेचैन। 

(देश मंथन, 27 अगस्त 2015)

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