संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
जब भी मैं सास-बहू की कहानी लिखता हूँ और उसमें लिखता हूँ कि बहू ने सास को सताया, सास को किसी आश्रम में जाना पड़ा, तो मेरे पास ढेर सारे संदेश आने शुरू हो जाते हैं। ज्यादातर संदेश बहुओं के होते हैं। सबकी शिकायत करीब-करीब एक सी होती है।
एक बानगी, “संजय जी मुझे आज की पोस्ट से बहुत तकलीफ हो रही है। बहुत से लोग बहू को ही क्यों दोष दे रहे हैं? जब तक बेटा नहीं चाहेगा, उसकी माँ को कोई बहू किसी आश्रम में नहीं भेज सकती। आप ऐसी पोस्ट लिखने में बहू के मन को भी टटोलने की कोशिश किया कीजिए।”
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किसी ने मुझे एक चुटकुला भेजा था।
एक आदमी जिसकी माली हालत ठीक नहीं थी, वो साइकिल से चला करता था। रोज साइकिल से दफ्तर जाता, घर आता। फिर उसकी हालत ठीक होने लगी। एकदिन उसने स्कूटर खरीद लिया। अब वो स्कूटर से अपने काम पर जाने लगा, स्कूटर से ही घर आने लगा। उसका काम अच्छा चल निकला। उसने फिर कार खरीद ली। अब वो कार से काम पर जाने लगा, कार से ही घर आने लगा। उसका काम ठीक ठाक चल ही रहा था, तो उसने एक ड्राइवर भी रख लिया। अब वो कार के पीछे बैठता। ड्राइवर कार चलाता।
धीरे-धीरे वो मोटा होने लगा। उसे रक्तचाप की बीमारी हो गयी। उसे शुगर भी हो गया। दिल की बीमारी भी हो गयी। लगने लगा कि अब वो नहीं बचेगा, तो डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने कहा कि आप साइकिल चलाया कीजिए। बेचारा भागा-भागा बाजार गया और एक साइकिल खरीद लाया। अब वो रोज साइकिल से दफ्तर जाता है। इस तरह उसकी ‘लाइफ साइकिल’ दुबारा साइकिल पर चली आयी है।
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पढ़ने सुनने में तो यह चुटकुला ही है। पर जीवन का सच भी यही है।
मेरी माँ मेरी दादी की बहुत सेवा करती थी। बहुत मुमकिन है कि दादी का कोई व्यवहार कभी माँ को अटपटा भी लगा हो, पर माँ हमेशा यही कहती थी कि मैं अपने व्यवहार से पीछे नहीं हटूंगी। वो कहती थी कि दादी तुम्हारे पिता की माँ हैं। वो मुझसे एक पीढ़ी पहले की हैं। उनके मेरे बीच पीढ़ी का टकराव भी हो सकता है, पर झुकना मुझे ही चाहिए, हर बार।
माँ कहती थी कि जो मेरा व्यवहार होगा, वही मुझे अपनी बहू से वापस मिलेगा। अगर इसे सास-बहू के रिश्ता साइकिल का नाम दें, तो जैसा व्यवहार मैं अपनी बहू से चाहती हूँ, वैसा व्यवाहर मैं अपनी सास से करती हूँ। तब मैं छोटा था और इन बातों के बहुत मायने नहीं समझता था। पर यह भी एक सच है कि मेरी दादी की तीन बहुएँ थीं और मैंने अपनी माँ के निधन के बाद अपनी दादी को अपनी उस बहू की तस्वीर के आगे खड़े होकर घंटों रोते देखता था।
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मैं मानता हूँ कि कई सासें अपनी बहुओं से बुरा व्यवहार करती हैं। मैं यह भी मानता हूँ कि बेटों को ऐसे मामलों में स्पष्ट रुख अपनाना चाहिए। पर सबकुछ ठीक रहे, इसके लिए सबसे बड़ी जतन बहू को ही करनी होती है। अगर कहानियाँ लिखने बैठूँगा तो एक हजार कहानियाँ लिख दूँगा, सास-बहू और साजिश पर। लेकिन यह रिश्तों के स्वार्थ के एक चेन को तोड़ने की बात है, बस।
मैं इस चेन को तोड़ने की बात भी बार-बार क्यों लिखता हूँ? सिर्फ इसलिए, ताकि भविष्य में बहुओं को उसी तकलीफ से न गुजरना पड़े इसलिए।
मैं जब कॉलेज में पढ़ता था, मेरे सीनियर अपने जूनियर की रैगिंग किया करते थे। जब मैं सीनियर हो गया, तो मैंने तय किया कि अपने जूनियर के साथ ऐसा न करूँगा न करने दूँगा। अपने जूनियर के साथ मेरे पूरे बैच ने दोस्ती कर ली। हम साथ उठते-बैठते और उस चेन को हमने तोड़ दिया जहाँ सीनियर का आतंक होता था। जब हम कॉलेज से निकल गये, तो हमारे जूनियर ने अपने जूनियर के साथ वही व्यवहार किया, जो हमने उनके साथ किया था। और अब जब पिछले दिनों करीब बीस साल बाद जब मैं दुबारा अपने कॉलेज में गया था, तो कोई बता रहा था कि फलाँ कॉलेज में सीनियर जूनियर को परेशान नहीं करते। वहाँ सीनियर जूनियर की मदद करते हैं। यह इस कॉलेज की परंपरा है।
मैं मन ही मन मुस्कुरा रहा था।
कई बार हमें वही नहीं लौटाना होता है, जो हम पाते हैं। कई बार हमें वह देना चाहिए, जो हम चाहते हैं।
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दुनिया की तमाम बहुओं, आप मेरी पोस्ट से आहत न हुआ करें। एक बहू के रूप में आपके दुख से ज्यादा मेरी चिंता इस बात की है कि एक सास के रूप में आपकी जिन्दगी कैसी गुजरने वाली है।
(देश मंथन, 16 अक्तूबर 2015)