संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :
कभी-कभी हम किसी के मुँह से ऐसा कुछ सुन लेते हैं कि मन खिल उठता है।
ऐसा ही हुआ कल जब मैंने गाड़ी में बैठते ही ड्राइवर से बात शुरू कर दी। आम तौर पर गाड़ी में मैं फोन पर मेल चेक करता हूँ और हमारी बहुत कम बात हो पाती है। पर कल मैंने बहुत दिनों बाद उससे बातचीत शुरू की।
मुझसे तो उसकी कम बात होती है, लेकिन मेरी पत्नी जब कभी उसके साथ गाड़ी में जाती है, तो उसके घर-परिवार का हालचाल जरूर पूछती है।
“घर में सब कैसे हैं? पत्नी कैसी है? बच्चे ठीक हैं न?”
मेरी पत्नी का मानना है कि जो लोग हमसे जुड़े हैं, उनका दुख-सुख हमसे जुड़ा है और इसीलिए वो उन सबसे समय-समय पर पूरा हालचाल पूछ लेती है। घर में काम वाली अगर देर से आए, तो उसे डाँटने की जगह वो उससे पूछती है कि सब ठीक है न?
और फिर शुरू हो जाती है कामवालियों की अंतहीन कहानियाँ।
“पति ने रात में शराब पी, उसे पीटा। बच्चे को भी मारा। बहू ने तंग किया। यहाँ से घर जाकर सबके लिए खाना उसे ही बनाना पड़ता है।” और ढेर सारी बातें…।
बात यहीं खत्म नहीं होती। कभी-कभी सारे स्टाफ की कहानियों का निचोड़ मुझे देर रात घर लौटने के बाद सुनने को भी मिलता है। फलाँ की तबियत खराब है, उसके घर में बहू ने उसे तंग किया हुआ है, ड्राइवर की दो बेटियाँ हैं, उसकी छोटी बेटी को बुखार हो गया था। बड़ी बेटी स्कूल जाने लगी है।
ऐसी ढेरों कहानियाँ होती हैं, जिन्हें मैं सुनता हूँ, मुस्कुराता हूँ। जिनमें मदद की दरकार होती है, पत्नी खुद ही कर देती है।
तो, मैंने बताया न कि कल मैंने गाड़ी में बैठते ही ड्राइवर से यूँ ही उसका हालचाल पूछ लिया। वो धीरे-धीरे बताता रहा कि घर में सब ठीक है। बड़ी वाली बेटी अब स्कूल जाने लगी है। छोटी वाली तो बहुत छोटी है।
ड्राइवर की उम्र बहुत कम है। मुझे याद है कि चार साल पहले ही उसकी शादी हुई थी। ऐसे में उसकी दो बेटियाँ हो चुकी हैं। मैंने बात-बात में उसे टोका कि तुम्हारी दो बेटियाँ हो चुकी हैं, घर में बेटा पैदा करने के लिए दबाव तो नहीं डाला जा रहा?
उसने कहा, “नहीं सर। अब नहीं। दबाव हो तो भी नहीं। दो बेटियाँ हो चुकी हैं और हम बहुत खुश हैं।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कहा जा रहा कि बेटा नहीं हुआ तो वंश कैसे चलेगा?”
ड्राइवर कुछ देर चुप रहा। मैं पीछे की सीट पर बैठ कर शीशे में उसके चेहरे को देख रहा था। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद उसने मुस्कुराते हुए कहा कि सर किसी सिनेमा में एक डॉयलाग था, “हम क्या डायनासोर हैं, जो बेटे नहीं हुए हमारा वंश ही खत्म हो जाएगा?”
है तो यह किसी सिनेमा का डॉयलाग ही। लेकिन चलती गाड़ी में मेरा मन किया कि ताली बजाने लगूँ।
बहुत कम शब्दों में कितनी बड़ी बात ड्राइवर ने कही। उसने आगे कहा कि अगर वंश की ही बात है, तो बेटियों की शादी होगी, उनके बच्चे भी तो हमारे ही अंश होंगे। और क्या होता है वंश?
उसके इतना कहने के बाद मैं सारे रास्ते खामोश रहा। सोचता रहा कि काश हमारे देश में हर आदमी इस डॉयलाग को आत्मसात कर ले कि हम डायनासोर नहीं हैं, जिसका वंश बेटा नहीं होने से खत्म हो जाएगा। मैं तमाम पढ़े-लिखे लोगों को जानता हूँ, जो तीन-चार बेटियों के बाद भी इस इंतजार में हैं कि एक बेटा हो जाए। मेरे एक रिश्तेदार ने तो एक बेटे की चाहत में छह बेटियाँ पैदा कर ली हैं।
मेरे घर से दफ्तर की दूरी कुल दस किलोमीटर की है। करीब 20 मिनट में मैं दफ्तर पहुँच जाता हूँ। उन 20 मिनटों में मेरे कानों में हजार बार यह डॉयलाग गूँजा कि आदमी डायनासोर नहीं होता, जिसे अपना वंश बचाने के लिए बेटे की दरकार हो।
मेरे मन में कई बार यह ख्याल आया कि बेटियों को बचाने की जितनी मुहिम हमारे देश में चलाई जाती है, उन सब में इस डॉयलाग को शामिल किया जाना चाहिए कि जिनके बेटे नहीं होते उनका वंश खत्म नहीं हो जाता। बेटियाँ भी हमारा ही अंश हैं।
आज की पोस्ट मैं उन सभी लोगों को समर्पित करता हूँ, जिन्होंने बेटियों को अपना अंश माना है, और उसे ही अपना वंश माना है। आज की पोस्ट मैं उन लोगों तक पहुँचाना चाहता हूँ, जो एक बेटे के इंतजार में छह बेटियाँ पैदा करके बैठे हैं। आज मैं अपनी पोस्ट उन लोगों तक भी पहुँचाना चाहता हूँ, जो बेटियों को हेय दृष्टि से देखते हैं।
आज मैं अपने ड्राइवर की बात को दुहराते हुए बेटियों के बाप से, माँ से, दादा-दादी से यह कहना चाहता हूँ कि आप आदमी हैं। आप डायनासोर नहीं है। अपने मन से वंश खत्म होने का भय निकाल फेंकिए और बेटियों को गले से लगा लीजिए।
आपका ये अंश आपके बड़े से बड़े वंश से ज्यादा सार्थक सिद्ध होगा।
(देश मंथन, 02 सितंबर 2015)

















