कैसे पड़ा दिल्ली नाम

0
291

विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार: 

देश की राजधानी दिल्ली। कभी इसका नाम इंद्रप्रस्थ था। कभी शाहजहानाबाद। पर दिल्ली का नाम दिल्ली कैसे पड़ा, इस बारे में कई कहानियाँ हैं। कहा जाता है कि फारसी शब्द दहलीज से दिल्ली नाम पड़ा। विदेशी इसे भारत की दहलीज मानते रहे।

कुछ मानते हैं कि मौर्य सम्राट राजा दिल्लू के नाम से दिल्ली का सफर शुरू हुआ। अंग्रेजों ने तो इसे बिगाड़कर डेल्ही नाम दिया। आज भी इसकी अंग्रेजी की स्पेलिंग बिगड़ी हुयी है। दिल्ली के हिसाब से तो DILLI होना चाहिए पर लिखा जाता है DELHI क्यों भला…

कहा जाता है कि दिल्ली का नाम तो दिलेराम उर्फ दिल्लू से बिगड़कर दिल्ली पड़ा। दिलेराम विक्रमादित्य के शासन काल में लगभग 21 वर्षों तक लगातार दिल्ली के राज्यपाल रहे, उन्होंने इसका प्रशासन इतना सुचारु रूप से चलाया कि जनता उनके नाम की ही कायल हो गयी। इसी कारण विक्रमादित्य ने खुश होकर इस दिलेराम जाट को ‘दिलराज’ की उपाधि से नवाजा था। इनका गोत्र भी ढिल्लो था। याद रहे कभी भी कोई ढिल्लो गोत्री जाट मुस्लिम धर्मी नहीं बना। अधिकतर सिख बने, शेष हिन्दू जाट हैं। हरियाणा में भिवानी जिले के कई गाँवों में इस गोत्र के हिन्दू जाट हैं। इसी दिलेराज को लोग इन्हें प्यार और इज्जत से दिल्लू कहने लगे, जिस कारण यह दिल्लू की दिल्ली कहलायी। यह तथ्यों से परिपूर्ण इतिहास सर्व खाप पंचायत के रिकार्ड में भी दर्ज है।

एक अनुश्रुति है कि इसका नाम ‘राजा ढीलू’ के नाम पर पड़ा जिसका आधिपत्य ईशा पूर्व पहली शताब्दी में इस क्षेत्र पर था। बिजोला अभिलेखों (1170 ई.) में उल्लेखित ढिल्ली या ढिल्लिका सबसे पहला लिखित उद्धरण है। कुछ अन्य लोगों के मतानुसार आठवीं सदी में कन्नौज के राजा दिल्लू के नाम पर इसका नामांकन हुआ है।

वास्तव में इस दिल्ली के दिल्ली का दिल काफी बड़ा है, तभी तो ये हर जगह से आये लोगों को पनाह देती है। खुद में आत्मसात कर लेती है और बाहरी लोग रंग जाते हैं दिल्ली के रंग में। तभी तो शायर बोल पड़ते हैं – कौन जाये जौक दिल्ली की गलियाँ छोड़कर…. (शेख इब्राहिम जौक बहादुर शाह जफर के समकालीन शायर थे) पूरा शेर कुछ इस तरह है-

इन दिनों गर्च-ए-दकन में है बड़ी कद्र-ए-सुखन,

कौन जाये ‘जौक’ पर दिल्ली की गलियाँ छोड़कर!

हालाँकि कई बार लोगों ने दिल्ली का नाम बदलकर फिर से इंद्रप्रस्थ किये जाने की माँग भी करते हैं पर दिल्ली नाम पूरी दुनिया में फैल चुका है, इसे बदल पाना भला संभव है क्या…

(देश मंथन, 02 अप्रैल 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें