तैयारी खुशियों की

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

वैसे तो माँ रोज पूरे घर को खूब साफ करती थी, लेकिन दिवाली के मौके पर वो एक-एक चीज को उठा कर साफ करती। घर के सारे पँखें साफ करती, पूरे घर को धोती।

मैं माँ से पूछता था कि माँ दिवाली से पहले आप घर की इतनी सफाई क्यों करती हैं?

माँ कहती, “इस दिन लक्ष्मी घर आती हैं। लक्ष्मी वहीं आती हैं, जहाँ सफाई होती है। गंदगी में तो उनकी बड़ी बहन अलक्ष्मी आती हैं।”

“अलक्ष्मी? माँ, ये कौन हैं?”

“ये लक्ष्मी की ही बहन हैं, बेटा। ये भी लक्ष्मी की तरह समुद्र मंथन से निकली थीं। पर ये जहाँ जाती हैं, वहां गरीबी, दुख और शोक को साथ लेकर चलती हैं। इसलिए कोई इनका स्वागत नहीं करता।”

“लेकिन माँ, लक्ष्मी का तो सब स्वागत करते हैं।”

“हाँ, बेटा। यही सवाल एकबार खुद अलक्ष्मी ने अपनी बहन लक्ष्मी से भी पूछा था कि लोग तुम्हारे इंतज़ार में पलक पाँवड़ें बिछाये रहते हैं, पर कोई मेरा स्वागत नहीं करता, क्यों?”

“फिर लक्ष्मी ने क्या जवाब दिया माँ?”

“लक्ष्मी ने कहा कि बहन मैं जहाँ जाती हूँ, खुशियाँ बाँटती हूँ। मैं लोगों को धन दौलत देती हूँ। मैं सबका भला चाहती हूँ। इसलिए लोग मेरा स्वागत करते हैं। और तुम लोगों को परेशान करती हो, लोगों को दुख देती हो। अपना ही रोना रहती हो। इसलिए लोग तुमसे दूर भागते हैं। तुम खुद सोचो, इस संसार में दुख भला किसे चाहिए?

लक्ष्मी ने कहने को तो इतना कह दिया, पर इससे अलक्ष्मी नाराज हो गयीं। कहने लगीं, तुम्हें बड़ा घमंड है, अपनी दानशीलता पर। पर मैं तुमसे कोई कम शक्तिशाली नहीं। मैं जब चाहूँ, तुम्हारे किए भले को बिगाड़ सकती हूँ। मैं तुमसे अधिक ताकत रखती हूँ। अगर मैं बिगाड़ने पर उतारू हो जाऊँ तो तुम चाह कर भी किसी की किस्मत नहीं बदल सकती।

लक्ष्मी मुस्कुराने लगीं।

अलक्ष्मी ने अपनी बहन से कहा कि तुम सामने से आ रहे उस ब्राह्मण को देख रही हो? तुम देखो, मैंने उस ब्राह्मण को दरिद्र बनाया है। तुम चाह कर भी उसे अमीर नहीं बना सकती। और अगर दम है तो तुम उसे अमीर बना कर दिखाओ। उसके चेहरे पर खुशियाँ लाकर दिखाओ।

लक्ष्मी ने कहा, ठीक है। उन्होंने एक बाँस के टुकड़े को सोने की अशर्फियों से भर रास्ते गिरा दिया। ब्राह्मण ने बाँस के टुकड़े को देखा, उसने उसे उठा लिया। अलक्ष्मी को लगा कि ओह, अब तो यह ब्राह्मण अमीर बन जाएगा।

उन्होंने अपनी चाल चली। अब कुछ दूर चल कर उस ब्राह्मण को एक युवक मिला और उसने उससे बाँस का वो टुकड़ा यह कह कर खरीद लिया कि उसे चारपाई के लिए चाहिए और उसे एक चवन्नी पकड़ा दी। ब्राह्मण खुश हो गया कि चलो मुफ्त में चवन्नी तो मिली।

अब लक्ष्मी को अपनी शक्ति दिखानी थी। ब्राह्मण चला जा रहा था। वो कुछ दूर ही चला होगा कि उसे वो युवक वापस आता दिखा। आते ही उसने ब्राह्मण से कहा कि बाबा बाँस के इस टुकड़े से चारपाई नहीं बन पा रही। ये बहुत भारी है।

अलक्ष्मी को अब बहुत गुस्सा आ चुका था। उन्होंने एक साँप उस ब्राह्मण के पीछे लगा दिया कि ये इसे काट लेगा और ये घर ही नहीं पहुँच पाएगा। न घर पहुँचेगा, न बाँस काटेगा, न उसमें से सोने की अशर्फियाँ इसे मिलेंगी।

साँप ब्राह्मण के पीछे पड़ा, तो पहले तो वो घबराया। फिर उसने उसी बाँस को फेंक कर साँप पर दे मारा। साँप मर गया, बाँस जमीन पर गिरते ही टूट गया और सारी अशर्फियाँ नीचे गिर पड़ीं। ब्राह्मण खुशी से उछल पड़ा। ओह! माँ लक्ष्मी तुम कितनी मेहरबान हो, मेरी सारी गरीबी दूर हो गयी।

इसके बाद अलक्ष्मी समझ गयीं कि अगर किसी पर लक्ष्मी मेहरबान हों, तो उसे अमीर बनने से, खुश रहने से कोई रोक नहीं सकता। “

माँ इतना कह कर मेरे सिर पर हाथ फेरती।

माँ फिर अलक्ष्मी का क्या हुआ?

फिर कुछ नहीं बेटा। दोनों बहनों ने तय किया कि दोनों साथ रहेंगी। जहाँ साफ-सफाई होगी, वहाँ लक्ष्मी का जोर चलेगा और जहाँ गंदगी होगी वहाँ अलक्ष्मी का जोर चलेगा।

वाह माँ। मैं समझ गया। इसीलिए आप रोज घर की इतनी सफाई करती हैं। हमारे घर लक्ष्मी आएँ, खुशियाँ आए, इसीलिए।

हाँ बेटा, लक्ष्मी वहीं रहना चाहती हैं, जहाँ सबकुछ साफ हो। वो उसी दिल में बसती हैं, जो दिल भी पवित्र होता है। दिवाली एक त्योहार है, जब हम तन-मन और घर हर जगह की गंदगी से मुक्त होते हैं। खुद को अलक्ष्मी से दूर करते हैं। दोनों बहनों में समझौता है बेटा, तय हमें करना है कि हम किसे चाहते हैं। खुशी, अमीरी या दुख और गरीबी।

यह सब निर्भर करेगा हमारी सोच पर। हमारे मन पर।

***

आप भी तैयारी कीजिए इस दिवाली अपने घर खुशियाँ लाने की। आप भी तैयारी कीजिए लक्ष्मी के स्वागत की। तन-मन-घर से आप भी दूर कीजिए अलक्ष्मी को।

(देश मंथन, 07 नवंबर 2015)

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