छत पर भजन

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आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार

डिस्क्लेमर – प्राचीन अन्धेर नगरी की ये अति प्राचीन बिजली-कथाएँ अगर किसी को उत्तर-प्रदेश, बिहार और दिल्ली की लगें, तो इसकी जिम्मेदारी तमाम सरकारों की है।

बिजली-कथा एक-छत पर भजन

अन्धेर नगरी में विकट दुराचार था, लोग रातों में डाँस-दारु पार्टी करते थे। फिर ऐसी कृपा बरसी कि पब्लिक चौबीस घन्टे बिजली को तरसी। अन्धेरे में कोई गतिविधि संभव ना होने के कारण लोग शाम-रात को छत पर भजन करते थे। 

कई शानदार गीत भी इस फिनोमिना पर लिखे गये, जैसे-छत पर किया करुँ हूँ भजन, साथ में रहवै हौट सजन। हौट से आशय यह कि गर्मी से गरम, हौट हुए सजन के साथ छत पर भजन करने से मेरी बुद्धि शुद्ध हो गयी है। 

गायब बिजली ने सदाचार मचा दिया। दोपहर से रामायण की चौपाईयाँ गाते-गाते शाम-रात काटने लगे। अन्धेरे में पढ़ना संभव नहीं था, इसलिए रामायण को पूरा कंठस्थ करने का दौर भी लौट आया। प्राचीन संस्कृति यूँ गायब बिजली के जरिये लौटी।

बिजली कथा दो-नो क्राइम, नो चुगली, कब आवैगी बिजली

एक समय, सुविधा-संपन्न एयर-कंडीशन मन्दिरों में सासें पाँच मिनट पूजा में और पचास मिनट का एक एपिसोड बहुओं की चुगली-शिकायत पर लगाती थीं, ऐसे-ऐसे कई एपीसोड एयरकंडीशन मन्दिरों में चलते थे। 

बहुएँ सासों के खिलाफ चुगलीबाजी एयरकंडीशन रेस्त्राओं की किट्टी पार्टियों में करती थीं। फिर ऐसी कृपा बरसी कि पब्लिक चौबीस घन्टे बिजली को तरसी। सासें बिजली-विहीन, एयरकंडीशनर-विहीन मन्दिरों से एक मिनट में भागने लगीं, बहुओं ने बिजली-रहित, एयर-कंडीशन रहित रेस्त्राओं में जाना बन्द कर दिया।

सास-बहू परस्पर ही एक दूसरे से प्रेम-पूर्वक सिर्फ यह बात पूछने लगीं-कब आवैगी बिजली।

एयरकंडीशन मॉलों में पर्स पार करने वाले जेबकतरों का धन्धा चौपट हुआ, क्योंकि बिजली- विहीन, एयरकंडीशन-विहीन शापिंग मॉलों में पब्लिक ने जाना वैसे ही छोड़ दिया था, जैसे चुनाव हारने वाली किसी पार्टी के टाप नेता का सम्मान करना तमाम जूनियर नेता छोड़ देते हैं।

चोरों का धन्धा यूं चौपट हुआ कि लोग रात भर घर की छतों पर रामायण की चौपाईयां गाते हुए जागते थे। जेबकट और चोर तक महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी योजना यानी मनरेगा में काम करने लगे, यूँ मनरेगा में भी अलग तरह की जेबकटी, चोरी होती थी, पर वह अलग विषय है।

बोल अन्धेर नगरी के अन्धेरे की जय।

(देश मंथन, 20 जुलाई 2015) 

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