संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मेरा एक दोस्त बहुत व्यस्त रहता है। सारा दिन काम में डूबा रहता है। उसके फोन की घंटियाँ थमने का नाम नहीं लेतीं। सारा दिन फोन कान पर ऐसे चिपका रहता है मानो फोन का अविष्कार नहीं हुआ होता तो वो जिन्दगी में कुछ कर ही नहीं पाता।
कल मैं अपने उसी दोस्त से मिलने गुड़गाँव गया था। क्योंकि हमारी मुलाकात कई महीनों बाद हो रही थी, इसलिए हमने तय किया कि हम लंच और डिनर बाहर करेंगे और खूब सारा समय एक दूसरे के साथ बिताएंगे। मेरे दोस्त ने अपने घर फोन कर दिया कि वो घर देर से लौटेगा, खाना घर पर नहीं खाएगा, और निकल पड़ा मेरे साथ। हम दोनों ने लंच साथ किया, फिर हम वहीं बैठ गये, गप करने के लिए।
पर हम क्या बात कर पाते?
उसका फोन बजता रहा। कभी इस काम के लिए, कभी उस काम के लिए। वो कई बार चिढ़ता, पर बिजनेस फोन की अनदेखी करना बहुत आसान भी नहीं होता। उसका फोन कई बार बजा। वो कई बार फोन उठाता, कई बार नहीं। पर बार-बार फोन आने से हमारी बात में खलल पड़ रहा था। एक बार तो मैंने भी कहा कि यार इतना काम करने का क्या फायदा, जब खुद के लिए जीने का वक्त ही नहीं।
मेरा मित्र रूआंसा हो गया। कहने लगा कि सचमुच जिन्दगी शेर की सवारी है। इसकी पीठ पर बैठना तो आसान था, पर उतरना असंभव हो गया है। अब लगता है कि किधर से छोड़ूं? मेरा काम ऐसा है कि मैंने एक फोन की अनदेखी की तो बिजनेस किसी और के पास चला जाएगा। मन तो बहुत बार विचलित होता है, पर चाह कर भी कुछ कर नहीं पाता। वो इस बात के लिए खुद को कोस रहा था कि उसके पास खुद के लिए समय नहीं। जिन्दगी बस पैसा कमाने की मशीन बन कर रह गयी है। शुरू में तो यह सब अच्छा लगता था, पर अब कोफ्त होती है।
व्यस्त मैं भी रहता हूँ। पर उसकी और मेरी व्यस्तता में अंतर है। मैं जब चाहूं अपने दफ्तर में फोन करके कह सकता हूँ कि आज जब तक बहुत जरूरी न हो, कोई फोन न करे। घर पर पत्नी और बच्चे से कह सकता हूँ कि मैं बाहर जा रहा हूँ, बहुत जरूरी न हो तो फोन मत करना। एक बार ऐसा निर्देश देने के बाद मेरे लिए जिन्दगी आसान हो जाती है। दफ्तर वाले समझते हैं कि कब फोन करना है, पत्नी को भी पता होता है कि कब फोन करना है। ऐसा निर्देश देकर जब मैं घर से बाहर निकलता हूँ तो मेरा फोन चाहे शांत न भी रहे, पर मैं फोन नहीं उठाने के लिए आजाद रहता हूँ।
पर मेरा मित्र क्योंकि बिजनेस करता है, इसलिए उसके पास ये आजादी नहीं।
खैर, मेरा इरादा आज बिजनेस और व्यस्तता पर लिखने का नहीं था। मैंने मन में सोच रखा था कि आज मैं उन माँ-बाप की कहानी आपको सुनाऊंगा, जिनके बच्चे इन गर्मियों की छुट्टी में नाना-नानी या दादा-दादी से मिलने उनके पास नहीं गये, बल्कि स्कूल की ओर से विदेश यात्रा पर गये हैं। गर्मी से मुक्ति पाने, अपने बचपन को जीने के लिए।
पर कल जब मैं अपने मित्र के साथ बैठा था तब लगातार फोन की बज रही घंटियों से चिढ़ कर मेरे मित्र ने मुझसे कहा कि अब चाहे जो हो जाए, वो फोन नहीं उठाएगा और उसने फोन को सायलेंट मोड पर कर दिया।
हम देर रात साथ खाना खा रहे थे। आधी रात हो चुकी थी। अचानक उसने जेब से फोन बाहर निकाला, कहीं से बार-बार फोन आ रहा था। उसने देखा कि फोन उसकी पत्नी का था।
उसने चिढ़ कर मुझसे कहा कि उसकी पत्नी को भी चैन नहीं। उसे पता है कि वो मेरे साथ है, उसे घर आने में देर होगी, और सबसे बड़ी बात ये कि उसने फोन करने से मना किया था, पर वो मानती ही नहीं। वो घंटी पर घंटी बजाए जा रही है।
मेरे मित्र ने फोन उठाया तो बहुत गुस्से में था, पर उधर से बहुत मीठी सी आवाज गूंजी।
“घर कब आएंगे? खाना खा कर आएंगे या घर पर खाएंगे?”
मेरा दोस्त अचानक हँस पड़ा। कहने लगा महिलाओं की भी अजीब आदत होती है। उसने धीरे से कुछ कहा, फिर मैंने देखा कि उसने सामने टेबल से गिलास उठा कर पानी का एक घूंट लिया और अपनी गीली आँखें पोंछीं।
मैंने उससे पूछा कि घर में सब ठीक तो है न!
उसने कहा सब ठीक है।
“फिर आँखें नम क्यों?”
“कुछ नहीं संजय, सारा दिन बिजनेस वाले फोन में एक भी फोन ऐसा नहीं आता, जिसमें किसी ने कभी मेरे खाने की, सोने की, जीने की चिंता की हो। सारे फोन काम से रिलेटेड होते हैं। ऐसे में इतनी रात पत्नी का फोन आया। कह रही थी कि रात के खाने पर आपका इंतजार कर रही हूँ। यार, चाहे जितना समझा लूं,पर वो रात में खाने पर मेरा इंतजार करती है। मैं मना कर दूँ, तो भी।
आज उसका फोन आया तो मैं गुस्से में था। पर उधर से उसने जो कहा, उसके बाद ऐसा लगा जैसे कहीं कोई है, जिसे मेरी चिंता है। पहले माँ ऐसी चिंता किया करती थी। अब पत्नी करती है। आज बहुत दिनों बाद इतनी रात गये उसका फोन आने पर मुझे लग रहा है कि कोई है, जो रात-दिन मेरी चिंता करता है। बस इसीलिए आँखें नम हो गईं।”
मैं समझ गया, रिश्तों के तार ने दिल को झंकृत किया है। बचपन में एक बार मैं अपने दोस्त के यहाँ से बहुत देर से घर लौटा था, सब नाराज थे, पर माँ चिंतित थी। आते ही माँ ने गले से लगाया और पूछा था कि खाना खाया कि नहीं?
आज भी चाहे जितनी बार मना कर लूं, पर देर होने के बाद पत्नी का फोन आ ही जाता है।
“खाना?”
कल मेरा मित्र नये रिश्ते को जी रहा था। कल मेरा मित्र रिश्तों का नया अर्थ खुद ही समझ रहा था।
मैं उठा और मैंने उससे कहा कि जाओ घर जाओ। यही है जिन्दगी, इसे जी लो। बहुत खुशनसीब होते हैं वो लोग जिनका कोई इंतजार कर रहा होता है। पैसा, बिजनेस, काम, सब चलता रहेगा। पर अगर तुम्हारी आँखें एक आवाज से नम हुई हैं, तो मतलब ये कि अभी भावनाएँ जिंदा हैं।
जिनके पास भावनाएँ होती हैं, वही जिन्दगी के मर्म को समझ सकते हैं।
(देश मंथन 06 जून 2016)