जीओ और जीने दो

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

मुझे तो सुबह उठ कर अपनी पत्नी को धन्यवाद कहना ही चाहिए।

उसने मुझे कभी देर रात हाथ में कम्प्यूटर की स्क्रीन में झाँकने से नहीं रोका।

सुबह-सुबह लैपटॉप को उठा कर टपाटप की बोर्ड दबाने के लिए नहीं टोका। सारा-सारा दिन फोन पर आने वाले संदेश को खोल कर देखने के लिए अपनी आँखें नहीं दिखाईं। इस तरह हर रोज मैं बेझिझक आपसे रूबरू होता रहा और उसने कोई आपत्ति नहीं दर्ज कराई। 

मुझे कभी पता भी नहीं चलता कि दुनिया में बहुत सी पत्नियाँ अपने पतियों के दिन भर कम्प्यूटर स्क्रीन में खोये रहने से इतनी नाराज भी होती हैं कि बेचारे पति फोन पर आने वाले संदेश और कम्प्यूटर की स्क्रीन पर चमकने वाली तस्वीरों को देखते ही चिहुंक उठते होंगे, लेकिन पिछले एक हफ्ते में कम से दस लोगों ने मुझे इशारे से बताया कि उनकी पत्नियाँ सिर्फ मोहल्ले की महिलाओं, दफ्तर की सहकर्मियों और अपनी सहेलियों से ही नहीं जलतीं, उन्हें कमबख्त मोबाइल फोन और कम्प्यूटर से भी जलन होने लगी है। आइने से प्यार करने वाली तमाम पत्नियाँ मोबाइल फोन और कम्प्यूटर स्क्रीन को अपनी सौत के रूप में देखने लगी हैं। 

मुमकिन है कि आने वाले वक्त में शादी के तमाम वादों में एक वादा ये भी शामिल कराया जाए कि जानू, शादी के बाद तुम स्मार्ट फोन और लैपटॉप का इस्तेमाल नहीं करोगे। 

मैं जानता हूँ कि इस तरह पत्नी पुराण लिख कर मैं अपनी बहुत सी भाभियों से दुश्मनी मोल लेने निकल पड़ा हूँ। मैं जानता हूँ कि मेरे बहुत से बड़े और छोटे भाइयों को कम्प्यूटर और फोन पर फेसबुक, व्हाट्सऐप चलाते देख कर मेरी भाभियों को लगता है कि उनके ‘वो’ उनकी सौत से गुफ्तगू कर रहे हैं। ऐसे में जब वो अपने ‘उनसे’ कहती हैं कि आप दिन भर समय बर्बाद करते हैं, तो उनके कहने का आशय कुछ और होता है। वो अपने पति की फ्रेंड लिस्ट में नित नई उगने वाली महिला मित्रों की सूची से असुरक्षा में घिर जाती हैं और फिर शुरू होता है – तान्डव। 

खैर, आधी पोस्ट लिखने के बाद मैं आपको ये बता दूँ कि तमाम पति बुझे मन से ही सही ये स्वीकार करने में नहीं हिचकते कि उनकी पत्नी की कुदृष्टि उनके फेसबुक पर लग गयी है और वो बेचारे सुन्दर-सुन्दर पोस्ट पर एक लाइक बटन दबाने के लिए तरस जाते हैं। पर एक स्थिति इससे अलग भी है। 

तमाम महिलाएँ जब मन होता है अपने फोन को उठाती हैं, जो दिल में आता है लिख देती हैं, जिनसे उनकी दोस्ती होती है उनके इनबॉक्स में दिल में फंसे तीर के स्टिकर तक भेज देती हैं। मन में आया तो अपने काल्पनिक दोस्त को मुआहsss तक लिख मारती हैं। फ्लाइंग किस वाला स्टिकर तो अब चुम्मा का प्रतीक रहा ही नहीं, वो तो खुशी का प्रतीक बन गया है, तो उसे भी भेज देती हैं। और तो और अपने व्हाट्स एप स्टेटस को अपने सुदूर प्रान्त में बैठे फेसबुकिया प्रेमी को सन्देश देने का बढ़िया कोड बनाए बैठी हैं। जैसे वो व्हाट्स ऐप पर अपने स्टेटस में लिख देती हैं ‘फीलिंग सैड’, ‘फीलिंग हैप्पी’, फीलिंग ये… फीलिंग वो… और अपना सन्देश बिना किसी हिन्ग फिटकरी के उस तक पहुँचा देती हैं, जिस तक पहुँचाना चाहती हैं। वो अपना काम करने के बाद फोन को किनारे करती हैं और बेचारे पति पर पिल पड़ती हैं, “क्या दिन भर फोन पर लगे रहते हो। समय बर्बाद करते रहते हो।” 

हालाँकि मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूँ जो अपनी पत्नियों को फेसबुक पर देख कर भड़क उठते हैं। हालाँकि ऐसे बहादुर पतियों की संख्या कम ही होगी जो पत्नियों को फेसबुक पर देख कर आँखें तरेर पायें। पर अपवाद तो हर जगह है ही।

आज मैं दुनिया भर के भाइयों की पत्नियों से ये कहना चाहता हूँ कि अपने पतियों को फेसबुक-फेसबुक खेलने दीजिए। आपको मन ही मन खुश होना चाहिए कि बेचारा कम्प्यूटर स्क्रीन और मोबाइल फोन पर लगा हुआ है। ये समय की बर्बादी नहीं है। आप समझदार हैं, मेरा इशारा समझ ही गई होंगी। बेचारा घर में बैठ कर लाइक बटन दबा-दबा कर खुश है, उसे इतने से ही खुश होने से मत रोकिए। अगर उसने कम्प्यूटर और फोन पर समय खर्चना बन्द कर दिया तो फिर उसके पास इतना समय एक्स्ट्रा हो जाएगा कि…

खैर, आज मेरा मन कर रहा है कि मैं अपनी पत्नी को धन्यवाद कहूँ कि उसने मुझे सचमुच कभी नहीं रोका, कभी नहीं टोका कि मैं दिन रात ये की बोर्ड पर क्या खटर-पटर करता हूँ।

मजाक की बात छोड़िए। वो तो सुबह-सुबह मन किया कि आज थोड़ी मस्ती करूँ अपने परिजनों के साथ इसलिए ये सब लिख दिया।

जीओ और जीने दो। यही सन्देश है खुशहाल जीवन का। 

गौतम बुद्ध ने भी यही कहा था कि वीणा के तार को इतना मत कसो की टूट जाए और इतना ढीला भी मत छोड़ो कि बजे ही नहीं। मध्यम मार्ग ही जीवन की खुशियों का मार्ग है। 

(देश मंथन, 30 अप्रैल 2015)

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