बुनियादी विश्वास

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

माँ की सुनायी कहानियों में सिंहासन बत्तीसी की पुतलियों की कहानियों की मेरे मन पर अमिट छाप है। 

विक्रम और बेताल की कहानियाँ तो न जाने कितनी बार आज भी मेरे सपनों में आया करती हैं। मुझे यकीन है कि आपने भी विक्रम और उसके बेताल की सारी कहानियाँ जरूर सुनी होंगी। आपने जरूर सुना होगा कि कैसे विक्रमादित्य को एक साधु ने एक फल दिया था और कहा था कि जो भी महिला इसे खाएगी, उसे यशस्वी पुत्र की प्राप्ति होगी। 

विक्रमादित्य फल हाथ में लिए लौट ही रहे थे कि उन्हें आत्महत्या करती हुई एक महिला नजर आयी। पूछने पर उसने बताया कि उसे हर बार पुत्री ही पैदा होती है, इसलिए उसका पति उसे मारता-पीटता है और वो अब जीना नहीं चाहती। 

विक्रमादित्य ने उसे साधु के हाथों मिला फल पकड़ा दिया। 

महिला फल लेकर चली गयी। पर कुछ दिनों बाद एक ब्राह्मण वही फल लिए हुए राजा विक्रम के पास आया। फल देख कर राजा विक्रमादित्य के विश्वास को चोट पहुँची। 

कहानी लंबी है, विक्रम ने फिर वही फल अपनी पत्नी को दिया। पत्नी ने भी उस फल को नगर के कोतवाल को दे दिया। नगर कोतवाल ने उस फल को एक नगर की एक वेश्या को दे दिया। वेश्या को लगा कि उसे यशस्वी पुत्र हो भी जाये तो क्या फायदा और उसने उस फल को राजा विक्रमादित्य के पास भिजवा दिया। राजा के विश्वास को एक बार फिर चोट पहुँची। 

इसके बाद वो राजपाट छोड़ कर तपस्या करने निकल गये। वहीं उन्हें एक और साधु मिला, उसने अपनी चाल चलते हुए राजा से पेड़ पर लटके हुए बेताल को पकड़ कर लाने की गुजारिश की। राजा ने पच्चीस बार बेताल को पकड़ने की कोशिश की। बेताल हर बार राजा को कहानी सुनाता और अजीब से सवालों में उलझा देता और फिर उड़ कर पेड़ पर जा पहुँचता।

बाद की कहानी और दिलचस्प है। बेताल ही आखिर में राजा विक्रमादित्य की जान बचाता है। बाद में बेताल ही विक्रम का सेवक बन कर सेवा भी करता है। 

पर बेताल हर बार राजा को कहानी सुनाता, सवाल पूछता और फिर उड़ जाता। तो मेरे प्यारे परिजनों, कल मुझे इन बाक्स में मेरे एक परिजन ने अपनी कहानी सुनायी, मुझसे सवाल पूछा। शर्त ये रखी कि मैं उनके नाम का जिक्र न करूँ। 

आज मैं उनकी सुनायी कहानी जस की तस आपके सामने रख रहा हूँ। 

***

“मेरे एक परिचित की शादी हुई, तब मैं कॉलेज में पढ़ता था। पति-पत्नी शादी के बाद जहाँ रहते थे, वो जगह मेरे कॉलेज के रास्ते में थी। एक दिन मैं उनके घर चला गया। मेरे साथ मेरा एक दोस्त भी था जो उन्हें जानता था। जिस दिन मैं कॉलेज जाते हुए उनके घर गया उस दिन भैया वहाँ नहीं थे। हम दोनों दोस्त भाभी से मिले। भाभी ने खूब आवभगत की। अच्छा खाना खिलाया। थोड़ी देर बात भाभी ने कहा कि अब आप लोग चले जाइए। आपके भैया आने वाले हैं। मैं उनसे आपके आने के विषय में बताऊँगी और देखूँगी उनकी प्रतिक्रिया क्या रहती है। आप लोग कल फिर आइएगा।

अगले दिन हम फिर गये। अगले दिन भाभी ने हमें बताया कि भैया को आप लोगों का आना अच्छा नहीं लगा। मैंने भाभी से कहा कि आप आज भी भैया को बता दीजिएगा कि हम फिर आपसे मिलने आये थे। हम कल फिर आएँगे और भैया के सामने आएँगे। उनसे पूछेंगे कि आपको हमारा आना क्यों बुरा लगा।

अगले दिन हम भैया की मौजूदगी में उनके घर गये। भैया ने स्पष्ट बता दिया कि उन्हें उनकी गैरमौजूदगी में किसी का घर आना पसंद नहीं।

भैया ने यहाँ तक कहा कि उन्हें तो ये बात ही पसंद नहीं कि कोई उनकी पत्नी से उनकी मौजूदगी में भी मिले और बातें करे। 

फिर मेरा उनके घर जाना बंद हो गया। मुझे बहुत दिनों तक लगता रहा कि ये बात उन्होंने मजाक में कही होगी, पर वो बात उन्होंने बहुत गंभीरता से कही थी। 

हालाँकि विवाह से पहले भैया से मेरे बहुत घनिष्ट संबंध थे। एकदम सगे छोटे भाई जैसे। 

पर पता नहीं क्यों शादी के बाद भैया एकदम बदल गये। उनके इस व्यवहार से भाई जैसे दोस्त से मेरा संबंध एकदम टूट गया। 

उन्हें न अपनी पत्नी पर भरोसा था, न अपने भाई समान दोस्त पर।

कई साल बीत गये। मुझे भैया को खोने का अफसोस नहीं। पर अच्छी भली भाभी और उनके हाथों के स्वादिष्ट खाने के छूट जाने का अफसोस आज भी होता है।

भाभी को बहुत उम्मीद थी कि भैया उदार दिल दिखाएँगे, पर वो उनकी सोच नहीं बदल पाईं। 

करीब तीस साल पुरानी इस घटना के बाद मैं कभी उनसे नहीं मिल पाया, न उनके बारे में कभी जानने की इच्छा ही हुई। पर तुम्हारी कहानियाँ पढ़-पढ़ कर पता नहीं क्यों आज मैं ये जानना चाहता हूँ कि आखिर भैया-भाभी के बीच का रिश्ता किस तरह निभ पाया। भाभी मस्त और मिलनसार थीं, भैया दकियानूस।

अब तुम बताओ संजय, कि ऐसे पति-पत्नी के रिश्तों का क्या हश्र होना चाहिए जहाँ आपसी विश्वास ही न हो?”

***

मैं कोई विक्रमादित्य थोड़े ही न हूँ! मेरे तो विक्रमादित्य आप सभी परिजन हैं। आप ही बताइए, ऐसे रिश्तों का क्या होता है, जहाँ बुनियादी विश्वास न हो?  

(देश मंथन, 04 दिसंबर 2015)

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