विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
मुंबई में मध्यम वर्ग के लोगों के लिए खरीदारी करने का प्रिय स्थल है फैशन स्ट्रीट। पहले ये जान लेते हैं कि फैशन स्ट्रीट है कहाँ। तो जनाब ये वेस्टर्न लाइन के आखिरी स्टेशन चर्च गेट या फिर सेंट्रल लाइन के आखिरी टर्मिनल छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से बीच में है।
दोनों रेलवे स्टेशनों से पैदल चल कर आप फैशन स्ट्रीट पहुँच सकते हैं। अगर मुंबई के चर्चगेट स्टेशन से बाहर निकलते हैं तो बायीं तरफ रेलवे मुख्यालय के भवन को पार करके अगली सड़क को भी पार करें। पहली सड़क है महर्षि कर्वे मार्ग। इसके बाद एक खेल का मैदान दिखायी देगा। यह कर्नाटक स्पोर्ट्स ग्राउंड है। इस मैदान को पार करने के बाद आप पहुँचते है कर्मवीर भाउराव पाटिल मार्ग। इसके बाद फैशन स्ट्रीट की दुकाने शुरू हो जाती हैं। सारी दुकानों को देखते हुए चलते चलते पहुँच जाइए मेट्रो सिनेमा तक। वैसे इस सड़क का नाम कर्मवीर भाउराव पाटिल मार्ग है। आगे यह सड़क महात्मा गाँधी मार्ग को जोड़ती है। पर ज्यादातर लोग इसका असली नाम नहीं जानते। फैशन स्ट्रीट मुंबई के प्रसिद्ध आजाद मैदान के सामने है। फैशन स्ट्रीट में तकरीबन 400 पंजीकृत दुकानें हैं। इसके पास का प्रसिद्ध लैंडमार्क बीएसएनल का आफिस भी है।
तकरीबन एक किलोमीटर से ज्यादा लंबा फुटपाथ का बाजार। अस्थायी दुकानें हैं, पर इन दुकानों के नंबर तय हैं। आम तौर पर सुबह 11 बजे से रात के 9 बजे तक फैशन स्ट्रीट की दुकानें खुली रहती हैं। कभी छुट्टी नहीं होती. बाजार सातों दिन ही खुला रहता है। इससे मिलता-जुलता बाजार कोलाबा में भी है। पर वहाँ कीमतें थोड़ी ज्यादा रहती हैं।
फैशन स्ट्रीट में आप पुरुषों के लिए टी शर्ट, पैंट, शर्ट, बारमुडा, कारगो, जींस, बेल्ट, पर्स कुछ भी खरीद सकते हैं।
महिलाओं के लिए स्कर्ट, टॉप, नाइटी, गाउन से लेकर देश में आने वाले हर नये फैशन और डिजाइन को आप फैशन स्ट्रीट में महसूस कर सकते हैं। बच्चों के लिए भी हर तरह के कपड़े आप यहाँ पा सकते हैं। लेडीज पर्स, स्कूल बैग, बैग पैक से लेकर खिलौने तक जो कुछ भी ढूँढ रहे हैं, यहाँ मिल सकता है। चलते चलते भूख लग जाये तो गोलगप्पे भी खा सकते हैं।
मुंबई के अलावा, त्रिपुर, लुधियाना या देश के दूसरे शहरों में जो कुछ भी नया बनता वह फैशन स्ट्रीट पर पहुँच जाता है। कॉटेन होजरी का त्रिपुर से बनने वाला माल यहाँ हर रोज पहुँचता है। फैशन स्ट्रीट के ज्यादातर दुकानदार इलाहाबाद, बलिया, जौनपुर और बिहार के हैं। थोड़ी-थोड़ी बारगेनिंग होती है। मैंने एक दुकानदार से जो बलिया के थे, जैसे ही भोजपुरी में बोला, कातना के पड़ी….तपाक से बोले सब केहू से त ढाई सौ, जाईं रउआ 200 ही दे दीहीं। तो ये था अपनी भाषा का कमाल।
(देश मंथन 20 अप्रैल 2016)