संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
फातमागुल एक लड़की का नाम है। एक दिन शहर से कुछ लड़के मौज-मस्ती करने शहर से दूर निकलते हैं और एक गाँव से गुजरते हुए उनकी निगाह फातमागुल पर पड़ती है। फातमागुल सुंदर, सरल और किशोरावस्था से निकल रही बच्ची है। वो गाँव के ही एक लड़के से प्रेम करती है।
जिस रात शहर के लड़के अपनी गाड़ी में शराब के नशे में डूबते-उतराते गाँव पहुँचते हैं, उन्हें फातमागुल घर से निकल कर कहीं जाती हुई नजर आती है।
एक तो शराब का नशा, ऊपर से धन का भी नशा। सारे लड़के एक दूसरे को आँखों ही आँखों में देखते हैं और फातमागुल को पकड़ लेते हैं। वो फातमागुल के साथ जबरदस्ती करते हैं।
इस कहानी में वितृष्णा, कुंठा और शोक के सिवा कुछ भी नहीं। आपने ये वाला सीरियल टीवी पर देखा होगा। कहानी टर्की की है और फातमागुल वहीं की रहने वाली है। ऐसी कहानियों में मेरी अधिक दिलचस्पी नहीं होती। होती है तो सिर्फ ये देखने भर की कि अपराधियों को सजा मिली या नहीं। ऐसी कहानियों में जब अपराधी बच जाते हैं या बहुत दिनों तक बचे रहते हैं, तो मुझे भीतर तक कोफ्त होती है। मैं बॉलीवुड की तमाम मसाला फिल्में सिर्फ इस उम्मीद में अंत तक देख लेता हूँ कि हीरो ने आखिर में विलेन की ढिशुमsss, ढिशुमsss बोल कर पिटाई की या नहीं।
खैर, आज कहानी फातमागुल की।
फातमागुल के साथ अन्याय हो जाता है। इस एक घटना से किसी की भी जिन्दगी बदल जाएगी, फातमागुल की भी बदल जाती है। वो घनघोर अवसाद में घिर जाती है, जिन्दगी बेमानी लगने लगती है, लोगों से उसे नफरत हो जाती है। उसे अब भरोसा है, तो बस अपने प्रेमी पर।
और प्रेमी?
प्रेमी के मन में यह बात बैठ जाती है कि फातमागुल ने उसके साथ धोखा किया है। उसे लगता है कि उसने जानबूझ कर उनके साथ…
वो फातमागुल के प्रति बदले की आग में जलने लगता है। ठीक है, यहाँ तक सबकुछ ठीक है। वो फातमागुल को छोड़ कर चला जाता है। कहानी आगे बढ़ती है। फातमागुल भयंकर अवसाद और पीड़ा के क्षण में भी अपने प्रेमी को याद करती है और उससे मिलना चाहती है। लेकिन उसका प्रेमी उससे नफरत करने लगा है। कहानी में कुछ ट्विस्ट आते हैं और फातमागुल को बलात्कार करने वालों में से ही एक युवक से शादी करनी पड़ती है। उसे समझाया जाता है कि तुम्हारी जिन्दगी अब तबाह हो चुकी है। कोई अब तुमसे विवाह नहीं करेगा। क्योंकि फातमागुल के साथ यह सब करने वाले बड़े और अमीर घर के नौजवान हैं, इसलिए उनके पूरे परिवार अपने अमीरजादों के बचाव में सामने आ जाते हैं। उन लड़कों के माता-पिता चाहते हैं कि पुलिस केस न हो। फातमागुल अपने साथ हुए अन्याय की बात छुपा जाए। इसके लिए कुछ लोगों को पैसों के बूते खरीदा भी जाता है।
कहानी की इन्हीं कड़ियों में फातमागुल के उस प्रेमी को सच्चाई पता चलती है कि फातमागुल के साथ अन्याय हुआ है। उसे पूरा सच पता चलता है। पर अब तक वो खुद उन बलात्कारियों के हाथ की कठपुतली बन चुका है और उनसे काफी पैसे ले चुका होता है मुँह बंद रखने के एवज में।
कहानी आगे बढ़ती है।
फातमागुल जब थोड़ा संयत होती है तो वो उन बलात्कारियों से बदला लेना चाहती है। वो चाहती है कि उनके खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज हो। ऐसा ही होता भी है। पर बलात्कार करने वाले लड़के के परिवार वाले फातमा के पूर्व प्रेमी को तैयार करते हैं फातमागुल के खिलाफ गवाही देने के लिए। वो तैयार भी हो जाता है। इसी बीच फातमागुल की तरफ से केस करने वाला वकील उस प्रेमी से मिलता है और एक सवाल पूछता है।
वो पूछता है कि तुम पैसे लेकर भले फातमागुल के खिलाफ गवाही दे दो, पर तुम अदालत में फातमागुल की आँखों का सामना कैसे करोगे? क्या तुम उसकी आँखों में झाँक कर झूठ बोल सकते हो?
इस एक सवाल ने मुझे झकझोर कर रख दिया।
कहानी अभी रुकी हुई है। पर मैं लगातार सोच रहा हूँ कि आदमी चाहे आदमी का सामना जिस तरह कर ले, पर आँखें आँखों का सामना नहीं कर पातीं। मन की चोरी, मन का भाव आँखें बयां कर देती हैं। आदमी जुबां से जितना चाहे झूठ बोल ले, लेकिन आँखों से झूठ बोल पाना मुश्किल होता है।
वकील को फातिमागुल के प्रेमी पर रत्ती भर भरोसा नहीं, पर उसे भरोसा है उसकी आँखों पर।
कहानी बीच में रुकी है, इसलिए मैं भी बीच में आज रुक रहा हूँ। सिर्फ इस उम्मीद पर कि आँखें सत्य का साथ देंगी। आँखें दिल की जुबां होती हैं। जुबां धोखा दे जाए तो दे जाए, आँखों को धोखा नहीं देना चाहिए।
(देश मंथन 17 सितंबर 2016)