वही कीजिए, जो अच्छा लगे

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरी शादी बहुत सामान्य ढंग से मेरे ढेर सारे दोस्तों की मौजूदगी में दिल्ली के आर्य समाज मंदिर में हुई थी। शादी के बाद जब मैं अपनी पत्नी के पिता से मिलने उनके घर गया तो उन्होंने मुझे समझाया कि जो हुआ सो हुआ, अब मुझे दोबारा धूमधाम से शादी करनी चाहिए। कुछ इस तरह शादी करनी चाहिए, जिसमें उनके और मेरे सभी रिश्तेदार मौजूद हों।

मैंने अपने ससुर जी से पूछा कि शादी सामान्य ढंग से हुई है तो इसमें बुराई क्या है? अब आप अपने सभी रिश्तेदारों को बता दीजिए कि आपकी बेटी की शादी हो गयी है। मेरे ससुर जी थोड़ी देर खामोश रहे। फिर उन्होंने कहा कि अगर शादी के कार्ड नहीं छपे, लोगों को नहीं बुलाया, धूमधाम से सब कुछ नहीं किया, तो लोग क्या कहेंगे? मैं चार लोगों को क्या जवाब दूँगा?

सवाल बहुत बड़ा था। 

मैं पहले भी कई बार आपको बता चुका हूँ कि जब मेरी शादी हुई थी, मेरी उम्र बहुत ज्यादा नहीं थी। कानून की भाषा में बालिग हो चुका था, पर बस बालिग ही हुआ था। लेकिन मुझे लग रहा था कि मैं उम्र से अधिक परिपक्व हो चुका था। मैंने बहुत संयत हो कर अपने ससुर जी से कहा कि आप उन चार लोगों की चिंता बिलकुल नहीं कीजिए कि वो पीठ पीछे आपकी हँसी उड़ाएँगे। दरअसल वो चार लोग कोई होते ही नहीं। आप वेबजह उन चार लोगों की चिंता करते हुए अपने पैसे बर्बाद करेंगे। कानूनी तौर पर जो शादी हुई है, आप उसका सम्मान कीजिए और हमें आशीर्वाद दीजिए। रही बात लोगों की तो उन्हें मुझसे मिलाइए। आपका दामाद पढ़ा-लिखा है, हैंडसम है, अच्छी नौकरी करता है। ऐसे में आपको किसी के आगे नजरे झुकाने की जरूरत ही नहीं। आपकी बेटी ने जो किया है, सब आपकी मान-मर्यादा के तहत ही किया है। 

मेरे ससुर जी थोड़ी उलझन में रहे। फिर वो मेरी बात मान गये। 

उन्होंने अपने रिश्तेदारों को विवाह की जानकारी दी और मेरा यकीन कीजिए उनके किसी रिश्तेदार ने उनकी हँसी नहीं उड़ायी। 

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जिन दिनों हमारी शादी हुई थी, मेरे पूरे खानदान में, हमारी सात पीढ़ियों में किसी ने प्रेम विवाह और अंतरजातीय विवाह के विषय में सोचा तक नहीं था। न मेरे परिवार में, न मेरी पत्नी के परिवार में। बड़ी अजीब सी बात थी कि हम दोनों विवाह की कुरीतियों से खुद को आजाद करना चाहते थे। हम दोनों अलग-अलग परिवार में पलते हुए एक सोच रख रहे थे और ईश्वर ने हमें एक साथ लाकर मिला दिया था दिल्ली की इंडियन एक्सप्रेस बिल्डिंग में।

मेरी सोच तो शुरू से साफ थी कि मुझे अपनी शादी में कोई दिखावा नहीं करना, दहेज नहीं लेना। पर ऐसी ही कोई लड़की मिल जाए, यह बड़ी बात थी। मैंने पहले भी लिखा है कि अपनी बहनों और अपने परिवार की ढेरों शादियों में मैंने दहेज, लड़का ढूंढने की मुश्किलों को बहुत करीब से महसूस किया था। ऐसे में मैं मन ही मन बहुत पहले तय कर चुका था कि चाहे दुनिया जितना मर्जी हँसे, पर मैं शादी में बैंड, बाजा, बारात नहीं लेकर जाऊँगा। मैं रात में शादी नहीं करुँगा। मैं लड़की वालों से कुछ नहीं लूँगा। और मैं अपने से किए हर कमिटमेंट पर पूरी तरह अडिग था। मैंने वही किया। 

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जब अपनी शादी के विषय में मैंने अपने पिता को बताया था कि मैं फलाँ लड़की से फलाँ दिन इस तरह विवाह करना चाहता हूँ, तो उन्होंने मुझसे एक बार जरूर कहा था कि लोगों को कैसे बताया जाएगा। मैंने कहा था कि जो आपसे मिलें, आप उन्हें पहले ही बता दीजिए। और दूसरी बात ये कि मैं खुद भी तमाम रिश्तेदारों को पत्र लिख कर ये बता देता हूँ कि मैं विवाह करने जा रहा हूँ पर मैं किसी को निमंत्रित नहीं कर रहा। इससे उन्हें पता भी चल जाएगा और उन्हें बुरा भी नहीं लगेगा। मेरे पिता के लिए मेरे ये विचार जरा क्रांतिकारी थे। पर वो मुझे जानते थे, इसलिए उन्होंने हामी भर दी थी। 

मैंने सबकुछ ठीक वैसे ही किया जैसा मैं चाहता था। 

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मेरा यकीन कीजिए, जिन चार लोगों की मेरे पिता को चिंता थी, वो चार लोग कहीं थे ही नहीं। वो चारों लोग मेरे पिता के मन का डर थे, बस। 

मेरा यकीन कीजिए, जिन चार लोगों की मेरे ससुर को चिंता थी, वो चार लोग कहीं थे ही नहीं। वो चार लोग भी मेरे ससुर के मन का डर भर थे। 

हम दोनों की शादी हो गयी और हम शादी के फौरन बाद अपने सभी रिश्तेदारों से मिले। सबने हमें खूब प्यार दिया। सबने हमारी सोच को बहुत सराहा। मेरे घर में लोग मेरी पत्नी के मुरीद हो गये, तो अपनी ससुराल में मैं बेस्ट दामाद बन गया। 

इस तरह हमने साबित किया कि दरअसल जिन चार लोगों के कुछ कहने की चिंता में हम घुलते रहते हैं, वो चार लोग कहीं होते ही नहीं। 

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मैं आज किसी घटना विशेष की चर्चा नहीं कर रहा, पर आपको सिर्फ अपनी कहानी से यह समझाने की कोशिश कर रहा हूँ कि सचमुच वो चार लोग कहीं नहीं होते जिनकी चिंता में हम घुलते रहते हैं। 

आज मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि जिन्दगी रूई के फाहे के समान होती है, जिसे आप लोगों की चिंता में डुबो कर अपने आँसुओं से भारी कर लेते हैं। अगर रूई के उसी फाहे को आप अपनी खुशियों और मन के संतोष की हवा में उड़ने देंगे तो आपको सबकुछ अच्छा लगेगा। 

अच्छाई और बुराई दोनों सापेक्ष हैं। 

आप जो देखना चाहेंगे, वो दिखेगा। आप जो पाना चाहेंगे, वो मिलेगा। 

आप वही कीजिए, जो आपको अच्छा लगता है। ऐसा करेंगे, तो जिन्दगी हसीन हो जाएगी। 

उन चार लोगों को छोड़िए, जो न आपके थे, न आपके होंगे।

(देश मंथन 02 दिसंबर 2015)

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