विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
गगंटोक से वापस लौट रहा हूँ। देवराली से ही टैक्सी बुक करता हूँ। यहाँ से वापसी का टैक्सी का फिक्स किराया है 200 रुपये। पर टैक्सी भरने पर ही चलती है। कोई टाइमटेबल नहीं है। टाइम टेबल से सिक्किम रोडवेज की बसें चलती हैं। मिनी बसों में किराया 160 रुपये है। बसें भी सुरक्षित और आरामदायक हैं। पर उनका चलने का समय निश्चित है।
अगली बस 12.45 में है सो मैं इतनी देर इंतजार नहीं करना चाहता। हमारी टैक्सी भी थोड़ी देर में भर गयी। मुझे खिड़की के पास वाली सीट मिल गयी इसलिए मैं संतुष्ट हूँ। वापसी में ड्राइवर तीस्ता में रोकते हैं भोजन ब्रेक के लिए। एक परिवार रेस्टोरेंट चला रहा है। यहाँ 100 रुपये की चावल की थाली है। टेबल से तीस्ता नदी का बड़ा विस्तार नजर आता है। काउंटर महिलाएँ संभाल रही हैं। सुर्ख लाल लिपिस्टक वाली। रेस्टोरेंट में पीने का भी इंतजाम है।
सिर्फ एक यही सड़क है जो गंगटोक को शेष भारत से जोड़ती है। पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को रेल नेटवर्क से जोड़ने की कवायद पुरानी है। पर इस पर अमल होने मे काफी देरी हो रही है। खास तौर पर सिक्किम को जोड़ने मे काफी देर हो रही है। असम की राजधानी गुवाहाटी, त्रिपुरा की राजधानी अगरतला, अरुणाचल की राजधानी ईटानागर के रेल से जुड़ने के बाद बाकी पांच राज्य अभी इंतजार में हैं। सिक्कम की राजधानी गंगटोक को जोड़ने की कवायद बहुत पुरानी है पर काम बहुत धीमी गति से चल रहा है। सिक्किम में रेल की सिटी पहुँचाने के लिए सिलिगुड़ी के पास सेवक से रंगपो तक रेल लाइन बिछाने की योजना काफी साल पहले बनी। यह दूरी 52.7 किलोमीटर की है। रंगपो तक रेल जाने के बाद गंगटोक की दूरी 40 किलोमीटर रह जाती। हालाँकि रंगपो तक के हिस्से में सिर्फ एक किलोमीटर का ही हिस्सा सिक्किम में पड़ेगा। इस रेल मार्ग का 70% हिस्सा सुरंगों से होकर गुजरना है। इस मार्ग में कुल 13 सुरंगे बनायी जानी है। कुल 100 छोटे-बड़े पुल भी बनाये जाने हैं। इस काम को साल 2015 में पूरा हो जाना था। पर इसमें प्रगति कागजों पर है। इस लाइन को बाद मे रंगपो से गंगटोक तक ले जाने की भी योजना है।
यह 3380 करोड़ रुपये की परियोजना थी पर इसमें वन विभाग की बाधा आ गई। साथ ही प्रोजेक्ट को स्थानीय ग्राम सभा से मंजूरी मिलनी थी। खासतौर पर रास्ते में पड़ने वाले दार्जिलिंग जिले के कालिंपोंग डिविजन में गोरखा हिल कांउसिल से विवाद के कारण इस रेल मार्ग के निर्माण कार्य में देरी हो रही है।
सिक्किम की राजधानी गंगटोक का संपर्क देश से सिर्फ एक नेशनल हाईवे से है। एनएच 31 सी सिलिगुड़ी से गंगटोक को जोड़ती है। अगर ये सड़क किसी कारण से बंद हो तो राज्य का संपर्क देश के शेष हिस्से से टूट जाता है। इमरजेंसी और सैलानियों के लिए हालाँकि सिक्किम की राजधानी गंगटोक के लिए हेलीकाप्टर सेवा है। भारत में 1975 में शामिल होने के बाद से ही सिक्किम रेल संपर्क की माँग कर रहा है। योजना तो गंगटोक के पास रानीपुल के अलावा नामची तक रेल ले जाने की है। नामची दक्षिण सिक्किम का मुख्यालय है।
सिक्किम की सीमाएँ चीन औ भूटान से मिलती हैं, इसलिए ये रेल मार्ग सामरिक महत्व रखता है। सेना को सीमा पर भेजने और रसद आदि की सप्लाई के लिहाज से भी रेल लाइन का खासा महत्व है। अक्तूबर 2009 में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने इस रेल मार्ग का नींव पत्थर रखा था। पर रेल मार्ग में उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। अभी जो प्रगति हैं उसमें साल 2020 तक गंगटोक रेलवे के मानचित्र पर आता हुआ दिखायी नहीं दे रहा है।
सेवक के बाद सालुगड़ा आते ही सड़क पर भारी जाम लग जाता है। पूरा सिलिगुड़ी शहर पार कर न्यू जलपाईगुडी रेलवे स्टेशन तक जाने में बड़े जाम का सामना करना पड़.ता है। ये जाम देश के तमाम मध्यम आकार के शहरों की नियती बन चुकी है। वाहन बेतहासा बढ़े हैं पर सड़कें और फुटपाथ कब्जे के कारण सिकुड़ते जा रहे हैं।
(देश मंथन, 18 मार्च 2016)