आदमी भावनाओं से संचालित होता है, कारणों से नहीं

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

एक छोटा बच्चा हर सुबह आसमान में उगने वाले सूरज को देख कर अपने पिता से पूछा करता था कि ये रोशनी का गोला क्या है? पिता उसे बताते कि यह सूरज है और यह पृथ्वी के चक्कर लगाता हुआ हर सुबह तुम्हारे पास आता है और शाम को चला जाता है। शाम को यही काम चंद्रमा करता है। वो भी पृथ्वी के चक्कर लगाता हुआ तुम्हारे पास आता है और फिर सुबह चला जाता है। 

पिता संगीतकार थे। वो उस छोटे से बच्चे को इतना समझाते और ल्यूट नामक अपने वाद्य यंत्र की तनी हुई डोर से निकलने वाले स्वर की गहनता में डूब जाते। बच्चा पिता की बतायी कहानी को सुन कर चुप तो हो जाता, पर उसका मन नहीं मानता कि ऐसा सचमुच होता होगा। 

भला सूरज को कौन चलाता है? चंद्रमा क्यों नाचता है? पृथ्वी क्या है? 

ऐसे सवाल मन में लिए वो माँ के पास जाता। माँ उसे गोद में बिठा कर समझाती कि चाँद तुम्हारा मामा है। ये सब कुछ ईश्वर ने तुम्हारे लिए बनाये हैं। तुम इन सबके विषय में सोच कर खुद को मत उलझाया करो। तुम रोज चर्च जाया करो। तुम्हारे सभी सवालों के जवाब तुम्हें वहीं मिलेंगे। 

वो छोटा बच्चा चर्च भी गया। वहाँ धर्म गुरुओं से उसने पूछा कि ये सूरज और चंद्रमा कौन हैं? वहाँ उसे बताया गया कि तुम जिस धरती पर रहते हो, वो परम पिता की सबसे बड़ी नियामत है। और ब्रह्मांड के बाकी ग्रह, सूरज और चंद्रमा धरती की परिक्रमा करते हैं। 

पर बालक पता नहीं क्यों चर्च की ओर से स्थापित उस सत्य को मानने को तैयार ही नहीं था। 

वो सवाल पर सवाल करता। और एक दिन उसने एक दूरबीन के जरिए आसमान में देख कर यह बताने की कोशिश की कि पृथ्वी समेत ब्रह्मांड में स्थित सभी ग्रह दरअसल सूरज की परिक्रमा करते हैं। 

मतलब ये कि उसने हजारों साल से चली आ रही मान्यता पर सवाल खड़ा कर दिया और कहा कि सूरज पृथ्वी का चक्कर नहीं लगाता, बल्कि पृथ्वी सूरज का चक्कर लगाती है। 

***

अब तो आप उस छोटे से बच्चे का नाम जान ही गये होंगे। 

उस बच्चे का नाम था गैलीलियो गैली। 

गैलीलियो ने ऐसा कहा और आदमी को मानवता का पाठ पढ़ाने वाले सभी महान धर्म गुरु अचानक एकदम कट्टर हो गये। जिस ईसा मसीह ने अपनी पूरी जिन्दगी यह बताने में खर्च कर दी थी कि आपस में प्रेम करो धर्म प्रेमियों, उन धर्म प्रेमियों ने, धरती प्रेमियों ने, ज्ञान प्रेमियों ने गैलीलियो नामक उस बच्चे को ईश्वर की रचना का दोष मान लिया। न सिर्फ दोष माना, बल्कि उसके कहे को चर्च का अपमान भी मान लिया और संसार को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाते-पढ़ाते सभी खुद असहिष्णु हो गये। चर्च के भीतर बैठे धर्म गुरुओं ने 1633 में यह आदेश सुना दिया कि इसे आजीवन कारावास में रखा जाए। ऐसा आदमी समाज के लिए खतरनाक है। यह लोगों को गुमराह करने वाली कहानियाँ सुनाता है। अगर यह खुल्ला घूमता रहा तो एक दिन फेसबुक पर दिलों को जोड़ने वाली कहानियाँ भी लिखने लगेगा। हो सकता है, ये दिलों की कहानियों के नाम पर बिका हुआ भी हो। आज यह सूरज के विषय में लिख रहा है कि पृथ्वी उसके चक्कर लगाती है, कल ये उस बेटे की कहानी लिख देगा कि कैसे वो अपनी माँ से बहुत जुड़ा हुआ था। ऐसा भला कैसे हो सकता है? 

और गैलीलियो को आजीवन कारावास में डाल दिया गया। 

धर्म के भक्त इस तरह का अधर्म सह नहीं सकते थे। लोगों को सहनशील होने का जो पाठ वो संसार को पढ़ा रहे थे, उसे खुद मानने से उन्होंने इंकार कर दिया था। 

पूरा फेसबुक गैलीलियो के उस महान पाप की कहानियों से रंग गया। उसके विषय में लोग पता लगा आये कि इसने तो सूरज पर रहने वालों से पैसे लिए हैं यह बताने के लिए कि सूरज एक महान ग्रह है। 

गैलीलियो कैद में ही मर गया। 

पर चर्च के भक्त मानने को तैयार ही नहीं थे कि गैलीलियो के विषय में उनसे कोई भूल हुई है। हालाँकि समय के साथ वो इस सच को समझ चुके थे कि पृथ्वी ही सूरज के चक्कर लगाती है। पर अपनी भूल वो मानने को तैयार ही नहीं थे। 

करीब साढ़े तीन सौ साल बाद, यानी 1992 में चर्च ने आखिर स्वीकार किया कि गैलीलियो के संबंध में उनसे भूल हुई थी। गैलीलियो फेसबुक पर जो कहानियाँ लिखता था, वो कहानियाँ सच्ची होती थीं और उन कहानियों का मतलब सिर्फ रिश्तों के तार जोड़ना था, तोड़ना नहीं। वो न किसी को सही ठहराने की कोशिश करता था, न गलत। वो तो बस दिल से दिल के तार जोड़ने निकला था। 

वो एक ही मंत्र लेकर जिन्दगी जीने निकला था कि आदमी भावनाओं से संचालित होता है, कारणों से नहीं। कारणों से तो मशीनें चला करती हैं।   

(देश मंथन, 17 दिसंबर 2015)

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