विकास मिश्रा, आजतक :
12 साल पहले की बात है। ठंड का सीजन था। मेरठ में 4-5 साल की एक बच्ची का जन्मदिन था, परिवार ने बड़े प्यार से बुलाया था। घर में बात चल रही थी कि गिफ्ट में क्या दिया जाए। गेम या ड्रेस, खिलौना या टैडी बीयर या फिर ढेर सारी चॉकलेट।
मैंने कहा-च्यवनप्राश दे दो। बीबी मेरे ऊपर भड़की-आपको तो जैसे अकल ही नहीं है, बर्थडे में च्यवनप्राश..? ये भी कोई गिफ्ट हुआ..? मैंने तर्क रखा- ठंड में बच्चों की सेहत और स्वाद के लिहाज से ये लाजवाब है, कोई नुकसान नहीं। कोई भी माँ, अपने बच्चों को ठंड में च्यवनप्राश जरूर खिलाना चाहेगी। ये जरूरत की चीज है और फायदेमंद भी। ठंड में च्यवनप्राश दो, गर्मी में हॉर्लिक्स, कॉम्प्लॉन या फिर कुछ और।
किसी प्रयोजन पर गिफ्ट देना-लेना मध्यमवर्गीय परिवारों की अनिवार्य आदतों में शुमार है। हर घर में इस पर बहस होती है। कई बार जंग भी होती है। बच्चे के बर्थडे में मिले गिफ्ट, अगले दो-तीन साल काम आते हैं, जब वो फिर से पैक होकर किसी और बच्चे के बर्थडे में जाते हैं। मेरा घर इससे अलग नहीं है। मेरे बेटे के तीसरे और पाँचवें जन्मदिन (यही सार्वजनिक रूप से मनाया गया था) पर जितने भी गिफ्ट मिले थे, उनमें से 60% खिलौने, गेम वगैरह दूसरे बच्चों के बर्थडे पर गिफ्ट के रूप में शिफ्ट हो गये। मुहल्ले में आये दिन बच्चों का बर्थडे पड़ता है, बेटे का बुलावा होता है, बीवी परेशान रहती है कि गिफ्ट क्या दें। सस्ता गिफ्ट बेटे को पसंद नहीं आता, महँगे पर उसकी माँ राजी नहीं होती, कहीं बीच में ही मामला सेट होता है।
उपहारों को लेकर मेरा अलग नजरिया है, लेकिन मेरे घर में ही समर्थक नहीं मिलते। मेरे भइया की साली हैं, मुझसे चार-पाँच साल छोटी होंगी, हमारे अच्छे रिश्ते रहे हैं। अब हम दोनों बाल बच्चेदार हैं। बरसों बाद मुलाकात हुई, मैंने उन्हें गिफ्ट में बड़ी सी तौलिया दे दी। प्रश्नकर्ताओं ने फिर कहा-ये भी कोई गिफ्ट हुआ। मैंने कहा-जब-जब तौलिए से बदन पोछेंगी, तब-तब हमारी याद आएगी। मेरे अभिन्न मित्र हैं शील जी। काम के अलावा उन्हें अपनी ही खबर नहीं रहती है। उन्हें मैं बरसों से गिफ्ट में चड्ढी, बनियान और जूते देता रहा हूँ। हालाँकि अब उनके पास चड्ढी-बनियान के प्रबंधकों की तादाद बढ़ गयी है।
गिफ्ट उल्लास है, गिफ्ट हर्ष है, गिफ्ट पीड़ा भी है, परेशानी भी है। शादी में क्या दिया जाए, बर्थडे में क्या दिया जाए। मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए गिफ्ट तो कई बार मुसीबतों का सबब भी होता है। अब मान लीजिए किसी के बच्चे का मुंडन या जनेऊ है, तो जो भी महिला उस आयोजन पहुँचेगी, वो बच्चे की माँ को एक साड़ी जरूर भेंट करेगी। अब जब उस महिला की विदाई होगी तो बच्चे की माँ उसे भी एक साड़ी देगी। बच्चे की माँ अगर उन साड़ियों को इधर उधर ट्रांसफर-पोस्टिंग न करे तो दुकान खोलने भर की साड़ियाँ घर में जमा हो जाएँ और मेहमानों के लिए नयी साड़ियाँ खरीदने में दिवाला निकल जाए।
गिफ्ट का गड़बड़ प्रचलन ये भी है कि लोग अपनी नहीं, सामने वाली की औकात देखते हैं। अब जो कम पूंजीवाला है, वो अपने किसी अमीर साथी के घर गया तो सोचता है कि उसके स्टेटस के हिसाब से कुछ दूँ। खून-पसीने की कमायी लगा देता है, जबकि सच्चाई ये है कि कोई भी इंसान (इंसान कह रहा हूँ, ख्याल रहे) कभी नहीं चाहेगा कि उसका कोई गरीब साथी उस पर कुछ भी खर्च करे, लेकिन कुछ कहें तो उसकी एहसासे कमतरी का भय। मैं खुद नहीं चाहता कि कमजोर आय वर्ग के मेरे किसी साथी का मुझ पर कोई खर्च हो, बल्कि मैं तो सादगी को सर्वोपरि रखना चाहता हूँ। बच्चे के जन्मदिन, शादी की सालगिरह जैसे आयोजनों से बचता हूँ, बचना भी चाहता हूँ। गिफ्ट किसी को भी अच्छे लगते हैं, लग सकते हैं, लेकिन किसी को बेदीन करके गिफ्ट पाने की चाहत भी तो ठीक नहीं है।
गिफ्ट के नाम पर दिखावा बर्बाद करने वाला है। कुछ लोग महँगा और बड़े साइज का गिफ्ट देकर महफिल लूटना चाहते हैं, लेकिन लुटते वो हैं, जो उनके नक्शे कदम पर आगे बढ़ना चाहते हैं। देखा है मैंने बहुत करीब से। किसी आयोजन में पहुँचे हँसते हुए दंपति को देख कर अंदाजा नहीं लगा सकते कि घर से निकलने से पहले तक इनके बीच गिफ्ट को लेकर जंग हुई है। मैंने बाजार की ताकतों के आगे सरेंडर नहीं किया है। किसी अपने की बहन-बेटी की शादी में जाता हूँ तो चाहता हूं कि कोई जान न पाये कि इसमें मैंने क्या किया है, मैं सीधी आर्थिक मदद करता हूँ वो भी छुप के। मैं कभी किसी भी मित्र या रिश्तेदार के घर मिठाई, चॉकलेट लेकर नहीं जाता। लोग बुरा मानते हैं, मान सकते हैं। आज बुरा मान लें, कल को अपना भी सकते हैं। मैं चाहता हूँ कि किसी अपने से मिलने की इच्छा को कोई इस नाते न वो मारे कि वहाँ बिना कुछ लिए कैसे जाएँ।
दो साल पहले मेरे बेटे का जनेऊ हुआ, मेरी अच्छी आर्थिक स्थिति में हुआ, सवाल उठा बहनों को क्या दोगे। किसी ने कुछ सोचा, किसी ने कुछ। मैंने कहा कि बस उतना ही करूँगा, जिसे देख कर कोई कम आर्थिक शक्ति वाला भी अपने बच्चे का संस्कार उत्सव के साथ कर सके। मैं अलग से हर बहन के लिए भले ही हजारों रुपये के गिफ्ट दे दूँ, लेकिन सार्वजनिक उत्सव में तो ये भौंड़ा प्रदर्शन होगा। ये प्रदर्शन किसी गरीब साथी या रिश्तेदार पर भारी पड़ सकता है।
मेरा तरीका थोड़ा अलग है। मैं रिश्तेदारों के यहाँ चॉकलेट-मिठाई, बिस्किट नहीं ले जाता, लेकिन बच्चों को साथ ले जा कर पूरी मौज मस्ती करवाता हूँ, इसी में यकीन भी है। मेरे एक मामा हैं, एक दिन अचानक मैं उनके पास सपरिवार पहुँचा, उनके लिए नया मोबाइल, मामी के लिए साड़ी, उनकी बहू-पोते के लिए कपड़े, चॉकलेट। मामाजी बोले-क्या बात है, तुम्हारा प्रमोशन हुआ है क्या, मैंने कहा, नहीं बस आज दिल खुश हुआ है।
(देश मंथन, 28 मार्च 2016)