संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
कुछ दिन पहले मैं अमिताभ बच्चन से मिलने उनके दिल्ली वाले घर में गया था। पहले भी कई बार जा चुका हूँ, लेकिन इस बार जब मैं उनसे मिलने गया तो मुझे उनके साथ कहीं जाना था। मैं ड्राइंग रूम में बैठ कर चाय पी रहा था, अमिताभ बच्चन तैयार हो रहे थे।
मुझे लग रहा था कि अमिताभ बच्चन अभी ड्राइंग रूम में आयेंगे और फिर हम साथ-साथ निकल पड़ेंगे।
मैं चाय पी रहा था, तभी एक व्यक्ति मेरे पास आया और कहा कि बच्चन साहब बाहर इंतजार कर रहे हैं। मैं फटाफट कमरे से बाहर निकला, रात के आठ बजे होंगे। सामने पोर्टिको में गाड़ी खड़ी थी, और उस गाड़ी के पीछे अमिताभ बच्चन एकदम तैयार होकर हाथ जोड़े लॉन में जल रहे एक दीपक के सामने पूजा कर रहे थे। कई मिनट तक वे पूजा करते रहे और फिर पूजा खत्म होते ही हम वहाँ से निकल पड़े।
अमिताभ बच्चन की कई फिल्में मैंने देखी हैं, जिनमें वे ईश्वर को चुनौती देते हैं। वे नास्तिक होते हैं। वे भगवान से कहते हैं कि तू पत्थर का एक टुकड़ा है, कुछ और नहीं। पर मेरे सामने जो अमिताभ बच्चन खड़े थे, वे तो घर से निकलने से पहले भी उस पत्थर के टुकड़े को नमन कर रहे थे। मतलब अमिताभ बच्चन नास्तिक नहीं हैं। वे नास्तिक नहीं हैं, यह बात मैं पहले से जानता हूँ। मैं जानता हूँ कि मुंबई में जुहू वाले अपने घर से कई दफा आधी रात को वे नंगे पांव सिद्धि विनायक मंदिर निकल पड़ते हैं। मैं जानता हूँ कि वे बनारस से लेकर उज्जैन तक भगवान के दर्शन कर आते हैं। मैं जानता हूँ कि ईश्वर में उनकी अगाध आस्था है, लेकिन यह पहला मौका था, जब मैं अमिताभ बच्चन को घर से निकलते हुए ईश्वर को याद करते हुए देख पा रहा था।
एक बहुत गरीब आदमी एक बार अकबर के दरबार में पहुँचा, कुछ माँगने के लिए। उसने वहाँ पहुँच कर अपनी मंशा जतायी कि वह राजा अकबर से मिलना चाहता है। दरबारियों ने उससे इंतजार करने को कहा। जब काफी देर हो गयी तो उस व्यक्ति ने किसी से पूछा, “राजन किस काम में इतना व्यस्त हैं, जो मुझे इंतजार करना पड़ रहा है?”
उसे बताया गया कि अकबर इस वक्त नमाज़ पढ़ रहे हैं।
“नमाज पढ़ रहे हैं? नमाज़ पढ़ना क्या होता है?”
“वे अल्लाह को याद कर रहे हैं।”
“अल्लाह! वह कौन है? और क्या वह मुझसे पहले उनसे मिलने आया था?”
“नहीं, नहीं। इसका मतलब यह कि वे ईश्वर को याद कर रहे हैं, वे पूजा कर रहे हैं।”
“लेकिन अकबर तो राजा हैं। उन्हें किस चीज की कमी है? उन्हें भला ईश्वर की पूजा की जरूरत क्यों पड़ी?”
“अरे भाई, वे हर सुबह इसी तरह अपने भगवान की उपासना कर अपने लिए खुशियाँ और शांति मांगते हैं। उन्हें भगवान पर भरोसा है कि वे उनकी हर मुराद पूरी करते हैं।”
“क्या कह रहे हो? क्या सचमुच सम्राट अकबर कुछ पाने के लिए भगवान पर आश्रित हैं? क्या वे उनसे माँगते हैं? अगर ऐसा है तो मुझे अब कुछ भी नहीं चाहिए। जो खुद माँगता है, उससे क्या लेना? अब मुझे जो माँगना होगा, मैं सीधे भगवान से माँग लूँगा। पर यह तो बताओ कि भगवान होता कहाँ है?”
“यह तो मैं भी नहीं जानता। तुम महाराज के आने का इंतज़ार करो, उन्हीं से पूछ लेना।”
वह आदमी शांति से बैठ गया। अकबर आये। उसे उनसे मिलाया गया। उस व्यक्ति ने उनसे कहा कि महाराज, मैं आया तो था आपसे कुछ माँगने, लेकिन अब मुझे कुछ चाहिए नहीं। बस इतना बता दीजिए कि आप हर रोज ईश्वर को याद करते हैं, क्या सचमुच ईश्वर होता है? और होता है, तो हमें कुछ क्यों नहीं देता, आप बड़े लोगों की ही क्यों सुनता है?”
अकबर ने मुस्कुराते हुए कहा, “ईश्वर है या नहीं, यह तो मैं नहीं जानता। लेकिन अपने से ऊपर किसी और की सत्ता पर जो लोग भरोसा करते हैं, उनकी मुश्किलें आसान हो जाती हैं, यह सोच कर कि कहीं कोई है, जो उनकी रक्षा कर रहा है, उनकी मुश्किलों को सुन और समझ रहा है। यही भरोसा काफी है।”
अमिताभ बच्चन को इस तरह तैयार होकर घर से निकलते हुए हाथ जोड़े पूजा करते हुए देख कर भला संजय सिन्हा कितनी देर चुप रहते? उन्होंने पूछ ही लिया, “क्या आप हर बार घर से निकलते हुए पूजा करते हैं?”
“हाँ, करता हूँ, लेकिन यह पूजा नहीं है। यह तो ईश्वर को याद करते हुए मन को अहसास दिलाना है कि हमारे ऊपर भी कोई है। कोई है जो हमारी देखभाल कर रहा है। कोई है, जिसे हमारे सुख-दुख का ध्यान है। अपने ऊपर किसी का हाथ होने का भरोसा ही, कामयाबी का पहला पड़ाव है।”
मैं सारे रास्ते सोचता रहा। बड़ी बात ईश्वर के होने और नहीं होने की नहीं। बड़ी बात है उस विश्वास की, जिन्हें अपने ऊपर किसी का हाथ होने का भरोसा होता है, उनका आत्मबल बड़ा होता है, जिनका आत्मबल बड़ा होता है, वही कामयाब होते हैं।
बचपन में यह भरोसा माता-पिता का होता है। बड़े होने पर भले किसी अदृश्य शक्ति का हो जाता है, लेकिन जिनके मन में यह भरोसा होता है, वही राजा बनते हैं, वही अमिताभ बच्चन बनते हैं।
(देश मंथन, 15 मार्च 2015)