विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
माथेरन में मुख्य बाजार से आगे पैदल चलते हुए हम लोग घने जंगलों में पहुँच जाते हैं।
रास्ते में होलीक्रास चर्च मिलता है। ये कैथोलिक चर्च है जो 1853 का बना हुआ है। 1906 में इस चर्च का पुनर्निमाण कराया गया।
जंगल के रास्ते में लाल मिट्टी वाली पगडंडी और दोनों तरफ ऊंचे-ऊंचे पेड़। रास्ते में जगह-जगह बन्दर हैं। इनसे बचने के लिए अनादि ने एक डन्डा ले लिया है। आगे-पीछे लोग आते जाते नहीं दिखाई दे रहे हैं। सो अनादि को थोड़ा-थोड़ा डर भी लगता है। हम सही रास्ते पर जा तो रहे हैं। मैं कहता हूँ कि पगडंडी अगर बनी है तो लोग आते-जाते भी होंगे। एक जगह जाकर दो रास्ते दिखाई देते हैं।
हमारे होटल में मौजूद एक स्थानीय सज्जन ने कहा था कि दाहिनी तरफ का रास्ता लिजियेगा। हमारी मन्जिल थी शॉरलेट लेक। माथेरन की खूबसूरत झील। चलते-चलते पानी का एक स्रोत नजर आया तब लगा कि हम झील के पास पहुँच गये है। पर हमें झील के बगल में एक बोर्ड नजर आया लिखा था – पिसरनाथ मन्दिर।
पिसरनाथ मन्दिर माथेरन मुख्य बाजार से दो किलोमीटर दूर घने जंगलों के मध्य शिव जी का अनूठा मन्दिर है। मन्दिर समुद्र तल से 2516 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस मन्दिर में आकर अदभुत शान्ति का एहसास होता है। ये माथेरन का अति प्रचीन मन्दिर है। मन्दिर का सुन्दर सा प्रवेश द्वार बना है। लाल रंग की दीवारों वाला मन्दिर का भवन जंगल में बड़ा ही मनोरम लगता है। मन्दिर का भवन पैगोडा शैली में बना हुआ नजर आता है। मन्दिर के अन्दर एक बड़ा ध्यान कक्ष बना है। मन्दिर के पुजारी जी ने बताया कि यहाँ स्वँभू शिव हैं। यानी वे खुद प्रकट हुए हैं ठीक उसी तरह जैसे महाबलेश्वर में शिव हैं।
परंपरागत मन्दिरों की तरह यहाँ शिवलिंग की स्थापना की गई है। शिवलिंग अंगरेजी के अक्षर एल आकार का है। शिवजी का श्रृंगार सिन्दूर से किया जाता है। शिव जी के साथ शेषनाग को स्थापित किया गया है। पुजारी जी की सातवीं पीढ़ी इस मन्दिर में पूजा पाठ करा रही है। पिसरनाथ शिव जी की उपनाम है। पिसरनाथ यानी पहाड़ों के देवता। ये माथेरन के लोगों के ग्राम देवता हैं। इस मन्दिर के प्रति लोगों में अटूट आस्था है। ये शिव जी का बड़ा ही सिद्ध मन्दिर है। माथेरन के लोगों की शिवजी में काफी आस्था है। मन्दिर के अन्दर सिर्फ इंसान ही नहीं बल्कि जीव-जन्तु भी आस्था से शीश नवाने आते हैं। मन्दिर सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है। यहाँ दर्शन के लिए सूर्यास्त से पहले आना ही ठीक रहता है क्योंकि रात्रि में मार्ग में अन्धेरा हो जाता है। मन्दिर परिसर में पहुँचकर अद्भुत शान्ति का एहसास होता है। चारों तरफ जंगल और घाटियाँ मन्दिर के वातावारण को और भी आस्थावान बनाते हैं।
हम दोपहर में मन्दिर में पहुँचे थे। यहाँ मन्दिर के ध्यान कक्ष में बैठकर थोड़ी देर हमने ध्यान किया। मन्दिर के अन्दर जाने पर देखा कुछ लोग अनुष्ठान भी करा रहे थे। ध्यान कक्ष कुछ स्वान (कुत्ते) भी मौजूद थे।
पिसरनाथ मन्दिर के बगल में शारलेट झील और झील के किनारे दो-तीन दुकानें हैं, जिसमें चाय नास्ता और जूस आदि मिल जाता है। यहाँ जंगल में मंगल जैसा माहौल नजर आता है। जंगल में चलते चलते आप थक गये हैं तो यहाँ थोड़ी से पेट पूजा भी कर सकते हैं। मन्दिर के पास ही इको प्वाइंट है और झील के उस पार लार्ड प्वाइंट है।
(देश मंथन, 16 मई 2015)