विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
नांदेड की दूसरी सुबह। मैं और अनादि टहलने निकलते हैं। चलते – चलते जा पहुँचते हैं गोदावरी तट पर। पर यहाँ गोदावरी नदी के जल को देख कर निराशा होती है।
नदी किसी नाले जैसी दिखायी देती है। पानी गंदा और ठहरा हुआ है। नदी के तट पर कूड़े के ढेर लगे हैं। नांदेड़ शहर में स्वच्छता है पर गोदावरी तट पर गंदगी का आलम है। प्रशासन और सामाजिक संगठनों का ध्यान इस नदी की सफाई की ओर क्यों नहीं है। पूरे देश में गंगा के सफाई की बात की जा रही है। पर अन्य नदियों के साथ भी ऐसी ही चर्चा क्यों न हो।
त्रयंबक पर्वत से निकली गोदावरी नासिक शहर में निर्मल दिखायी देती है। पर नांदेड़ में इसका ऐसा बुरा हाल किसने किया। कहा जाता है गोदावरी में स्नान से सारे पाप धुल जाते हैं। पर यहाँ तो गोदावरी का जल आचमन के लायक भी नहीं है। नांदेड़ में गोदावरी तट पर सुंदर रिवर फ्रंट बना है। पर इस फ्रंट पर भी गंदगी का आलम है। शहर में नदी पर दो पुल बने हैं। शहर का विस्तार बढ़ रहा है। पर लोग गोदावरी को बिसराते जा रहे हैं।
1465 किलोमीटर लंबी इस नदी के बारे में कहा गया है – सप्तगोदावरी स्नात्वा नियतो नियताशन:। महापुण्यमप्राप्नोति देवलोके च गच्छति ॥ पर गोदावरी की दुर्दशा देखकर स्नान करने की इच्छा नहीं हुयी। गोदावरी भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी है जो बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। इसे दक्षिण में वृद्ध गंगा भी कहते हैं। पर अब ये देश की सबसे प्रदूषित नदियों मे शामिल है।
गुरुद्वारा नगीना घाट
गोदावरी नदी के तट पर दशमेश पिता के दर्शन के लिए एक बंजारा सिख आया। उसने गुरु जी एक बेशकीमती नगीना भेंट किया। गुरु जी ने उसे गोदावरी में फेंक दिया। इससे बंजारा ने नाराजगी जतायी। तब गुरु जी ने कहा नदी से अपना नगीना पहचान कर निकाल ला। जब बंजारा नदी में गया तो उसे एक नहीं उसके दिये जैसे कई नगीने दिखायी दिये। उसका अहंकार दूर हो गया। वह आकर गुरु के चरणों में गिर पड़ा। इसी स्थान पर बना है गुरुद्वारा नगीना घाट। कहा जाता है इसी स्थान से तीर चलाकर गुरु जी ने सतयुगी तप स्थल सचखंड साहिब को प्रकट किया।
गुरुद्वारा बंदा घाट
नगीना घाट से थोड़ी दूर पर बंदा घाट पर गुरुद्वारा बंदा बहादुर स्थित है। इसी स्थान पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा बहादुर को संदेश दिया था। बंदा बहादुर का नाम सिख इतिहास में सम्मान से लिया जाता है। उन्होंने निम्न वर्ग के लोगों की उच्च पद दिलाया और हल वाहक किसान – मजदूरों को जमीन का मालिक बनाया। बन्दा सिंह बहादुर का जन्म कश्मीर के राजौरी क्षेत्र में 1670 हुआ था। उसका वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव था। 15 वर्ष की उम्र में वह एक बैरागी का शिष्य हो गया और उसका नाम माधोदास पड़ा। वे कुछ समय तक नासिक के पंचवटी में रहे। वहाँ एक औघड़नाथ से योग की शिक्षा प्राप्त कर नान्देड चले आये। यहाँ गोदावरी नदी के तट पर आश्रम की स्थापना की। गुरु गोबिंद सिंह ने उन्हें सिक्ख बनाकर बन्दासिंह नाम दिया। 1710 में बंदा बहादुर ने सरहिंद को जीत लिया और सतुलज नगी के दक्षिण में सिख राज्य की स्थापना की।
गुरुद्वारा लंगर साहिब
सचखंड साहिब के बाद दूसरा बड़ा गुरुद्वारा है जो श्रद्धालुओं के गुलजार रहता है। गुरुद्वारा लंगर साहिब वही जगह है जहाँ पर गुरु गोबिंद सिंह की फौज ने डेरा डाला था। यहाँ पर फौज का लंगर तैयार किया जाता था। सिख पंथ में लंगर की अनूठी परंपरा है जहाँ अमीर – गरीब ऊंच – नीच का भेदभाव भुला कर लोग साथ बैठ कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। लंगर साहिब में भी श्रद्धालुओं के लिए विशाल आवास बनाया गया है। इस गुरुद्वारा तक पहुँचने के लिए रेलवे स्टेशन से बस सेवा भी चलती है। लंगर साहिब के बाहर टैक्सी वाले दिखायी देते हैं जो आपको कर्नाटक के बीदर स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारा और आसपास के दूसरे ऐतिहासिक गुरुद्वारों तक ले जाने के लिए पैकेज देते हैं।
अब नांदेड़ से हमारी आगे जाने का वक्त हो गया था। गुरु ग्रंथ साहिब भवन के सामने एक दुकान पर सुबह के नास्ते में गरमा-गरम पराठे दही के साथ खाये। नांदेड़ की सड़कों पर घूमते हुए यूँ लगता है मानो पंजाब में ही हों। वहाँ से पदयात्रा करते हुए हम लोग रेलवे स्टेशन पहुँच गये। रास्ते में फूलों की मंडी नजर आयी। ताजे गेंदे के फूल बिकने को तैयार थे। पर स्टेशन पर मुंबई की ओर जाने वाली तपोवन एक्सप्रेस हमारा इंतजार कर रही थी।
(देश मंथन, 17 अप्रैल 2015)