संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
राजा ने सभी दरबारियों को एक-एक बिल्ली और एक-एक गाय दी। सबसे कहा कि महीने भर बाद जिसकी बिल्ली सबसे ज्यादा तगड़ी दिखेगी, उसे इनाम मिलेगा।
सभी दरबारी गाय का दूध निकालते उसे बिल्ली को पिलाते। सबकी बिल्लियाँ मोटी तगड़ी होती चली गयीं। सबको इंतजार था कि इनाम उसे ही मिलेगा। पर गोनू झा को लगा कि गाय का दूध बिल्ली को पिलाना मूर्खता होगी। तो उन्होंने पहले ही दिन गाय का दूध निकाला, उसे आग पर खौलाया और बिल्ली के सामने रख दिया। बिल्ली ने जैसे ही दूध में मुँह लगाया, मुँह जला और बिल्ली म्याऊँ-म्याऊँ करती भाग खड़ी हुई। गोनू झा ने अगले दिन फिर यही किया, बिल्ली ने दूध में मुँह लगाया और फिर भाग खड़ी हुई।
अब गोनू झा आश्वस्त हो चुके थे कि बिल्ली कभी दूध की ओर नहीं झाँकेगी।
अब वो रोज दूध निकालते, वो और उनका पूरा परिवार दूध पीता। बिल्ली बेचारी कमजोर होती चली गयी।
महीने भर बाद बिल्ली के साथ राजा के सामने पेश होना था। सारे लोग पेश हुए। सबकी बिल्लियाँ एक से बढ़ कर एक तगड़ी नजर आ रही थीं। पर बेचारे गोनू झा की बिल्ली चूहा जैसी दिख रही थी।
राजा चौंके।
“गोनू, तुम्हारी बिल्ली इतनी मरियल कैसे?”
“हुजूर माई बाप, मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ। मुझे ऐसी बिल्ली दे दी गयी जो दूध पीती ही नहीं। दूध देखते ही यह भाग खड़ी होती है। महाराज, मुझे इस ‘बिल्ली स्वास्थ्य प्रतियोगिता’ से बाहर करने के लिए ही ऐसा षडयंत्र रचा गया।
राजा चौंका। “गोनू, क्या बकवास करते हो? भला बिल्ली दूध न पिए ऐसा कैसे मुमकिन है?”
“महाराज, हाथ कंगन को आरसी क्या? ये रही बिल्ली और आप दूध मँगा कर देखिए कि ये दूध पीती है या नहीं?”
राजा ने कटोरे में दूध लाने का आदेश दिया। दूध आ गया। गोनू बाँह में बिल्ली दबाए खड़े थे, उन्होंने बिल्ली को दूध के पास रख दिया। बिल्ली ने दूध के कटोरे की ओर देखा और उछल कर भाग चली।
राजा समझ गये कि पूरा माजरा क्या है।
***
अब जब इतना लिख चुका हूँ तो मुझे लग रहा है कि मैंने आपको ये कहानी पहले भी सुनायी है। पर क्या करूँ, आज मुझे आपको यह बताना जरूरी है कि जब भी मैं किसी फेसबुक परिजन की कहानी लिखने बैठता हूँ, तो मेरे पास इतने लोगों के संदेश आते हैं कि संजय भैया आपसे मैंने इतना अनुरोध किया, आपने मेरी कहानी तो सुनायी नहीं, फलाँ की कहानी आपने सुना दी। मेरे पास शिकायतों का इतना लंबा पुलिंदा लग जाता है कि मैं घबरा जाता हूँ।
मैं किसी को जन्मदिन की शुभकामना तक अपनी वाल पर देने से घबराने लगा हूँ, क्योंकि जैसे ही मैंने किसी को शुभकामना पत्र लिखा नहीं कि मेरे कुछ परिजन शिकायत पत्र दन से दे मारते हैं कि इनका जन्मदिन तो आपको याद रहा, मेरा भूल गयी।
बात सही भी है। पहले जब परिवार छोटा था, तब कभी किसी की चर्चा कर ली, कभी किसी की। पर अब कारवाँ बढ़ गया है। अब मैं जहाँ किसी एक की चर्चा करता हूँ, दस लोग मुँह फुला लेते हैं। और इसका ताजा उदाहरण ये है कि मैंने पिछले हफ्ते कोशिश की थी कि मैं उस कहानी को आपको सुनाऊँ, जिसे मेरे इनबॉक्स में ममता सैनी ने मुझे लिख कर भेजा था और जिसे पढ़ कर मैं पेट पकड़-पकड़ कर हँसा था।
उन्होंने लिखा था, “संजय जी, एक दिन आपके दरवाजे की घंटी बजेगी, दरवाजा आपकी पत्नी खोलेगी और सामने Mamta Saini और Alka Srivastava खड़ी मिलेंगी। उसके आगे की कहानी पढ़ कर मैं अकेला बैठे-बैठे हँसने लगा था। मैंने वादा किया था कि वो कहानी मैं आपसे साझा करूँगा, पर मेरे इतना लिखने भर के बाद मेरे पास मेरी इतनी सखियों और बहनों के पैगाम उड़-उड़ कर इनबॉक्स में पहुँचने लगे कि मैं गोनू झा की बिल्ली बन गया। मुझे लगने लगा कि मैंने भी कहाँ उड़ते तीर को पकड़ने की कोशिश कर ली है।
***
आलम ये है कि मैं किसी का नाम लिखता हूँ परिजनों से सीधे संवाद कायम करने के लिए, पर पोस्ट करने के दस मिनट बाद ही मेरा मुँह जल जाता है। कुछ लोग शिकायत कर बैठते हैं कि आप इन्हें ज्यादा मानते हैं, इन्हीं की चर्चा करते हैं, मुझे तो आपने कभी हैलो भी नहीं कहा।
बस यहीं से गोनू झा की बिल्ली दूध देखते ही भाग खड़ी होती है।
मैं सोचता हूँ कि किसी का नाम नहीं लिखने में ही भलाई है।
पर मैं भी क्या करूँ? आदत छोड़ने से तो छूटती नहीं। अभी दो दिन पहले अपनी एक परिजन शालिनी गौड़ ने मुझे बताया था कि मेरे पाँच हजार मित्रों की संख्या के बाद फॉलोअर की संख्या बढ़ कर 21,212 होने जा रही है। यानी मेरे कुल 26 हजार 212 परिजन। पता नहीं क्यों उन्हें 21,212 का आंकड़ा बहुत पसंद था और वो चाह रही थीं कि जिस दिन यह आंकड़ा मुझे नजर आए, मैं एक पोस्ट इस पर लिखूँ।
अब इस आंकड़े पर पोस्ट लिखने की कोई वजह मुझे समझ में नहीं आ रही थी, पर शालिनी गौड़ ने अपना अनुरोध मुझ तक भेज दिया था। जब उन्होंने मुझे यह संदेश भेजा था, तब यह आंकड़ा 21,197 था। यानी 15 का आंकड़ा और छूना था।
मेरे मन में ऐसा नहीं था कि मैं इस आंकड़े पर कोई पोस्ट लिखूँगा। गोनू झा कि बिल्ली में इतना दम नहीं था कि वो दूध देख कर उसमें मुँह डाले। अजी दूध क्या छाछ में भी मुँह डालने की हिम्मत नहीं बची थी। पर पता नहीं कैसे कल रात में सोने से पहले जब मैंने फेसबुक खोला, तो मेरी निगाह इसी आंकड़े पर जा कर अटक गयी।
अरे ये तो शालिनी गौड़ की इच्छा वाला नंबर है। 21,212 का आंकड़ा देखते ही मुझे याद आया कि शालिनी जी ने इसी नंबर की बात की थी। बस फिर क्या था, राजा ने बिल्ली के सामने दूध रखा तो बिल्ली भाग गयी थी, लेकिन ये वाली बिल्ली फिर दूध में मुँह दे मारी है। अब देखना ये है कि पोस्ट करने के बाद मुँह कितना जला, कितना बचा।
(देश मंथन, 18 अप्रैल 2016)
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