कामयाबी की कहानी

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

कायदे से मुझे आज आपको पश्चिम बंगाल में तारापीठ की यात्रा पर मिले उस मासूम की कहानी सुनानी चाहिए, जिससे मिल कर मेरा कलेजा फट गया। मुझे उसकी उस बहन से आपको मिलाना चाहिए, जिस बहन ने भाई की क्षण भर की खुशी में अपनी जिन्दगी को जी लिया। पर आज मेरी हिम्मत नहीं हो रही आपको वो कहानी सुनाने की। उस कहानी को लिखने के लिए मुझे पहले अपने आँसू पोंछने पड़ेंगे। मुझे अपने फटे कलेजे को समेटना पड़ेगा। 

पर अकेला मैं कैसे इतना सब कर पाऊँगा। 

मैं अपनी इस यात्रा में अकेला हूँ। कई दिन हो गये अकेले भ्रमण करते हुए। 

बहुत साल पहले मैं ऐसे ही अकेला दुनिया की यात्रा पर निकल पड़ा था। तब भी मॉस्को, लेननिग्राद, मिंस्क, कीव, ताशकंद और न जाने कहाँ-कहाँ भटकता हुआ मैं कई बार रोया था। मैंने ये सारी कहानियाँ आपको पहले सुनाई हैं। पर मैंने आपको बताया थ न कि तब मेरे परिजनों की संख्या कम थी और कई लोगों ने मुझसे अनुरोध किया था कि मुझे एक बार फिर से मेरी उस अकेली यात्रा की कहानियाँ साझा करनी चाहिए।

***

मैं पूरी दुनिया घूम चुका हूँ। उत्तर से लेकर दक्षिण के छोर तक। ‘येलेना’ की कहानी शुरू हुई थी पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव से। येलेना रूस के मिंस्क शहर से ही अपने वतन पोलैंड लौट गई थी। मैं चाहता तो उसे वहीं भुला कर आज आपको उस भाई बहन की कहानी सुना रहा होता, जिसे याद करके मैं अभी भी जार-जार रो रहा हूँ। पर खुद को रोकता हुआ मैं संजय सिन्हा आज चाह रहा हूँ कि पहले येलेना की संपूर्ण कथा आपको दुबारा सुना दूं, फिर उस भाई की करुण कहानी को आपसे साझा करूं, जिसे सुन कर आपका भी कलेजा फट जाएगा।

पर पहले येलना की पूरी कहानी। 

इस बार येलेना मुझे मिली थी ल्युदमिला बन कर। ल्युदमिला गोर्चेंको। 

वो मेरी अल्प नींद में आ कर मुझे झकझोर कर जगाती रही और कहती रही कि संजय, तुमने दुनिया की कहानी सुना दी, तो क्या मैं तुम्हारी कोई नहीं थी?

वो मुझसे कहती रही कि तुम तो जानते थे कि मैं तब भी रूस की सबसे बड़ी फिल्म स्टार थी, जब तुम मुझसे मिलने आये थे। तुम बेशक भविष्य में अमेरिका जाकर एलिजाबेथ टेलर से मिलने वाले थे, बांग्लादेश जा कर रूना लैला से मिलने वाले थे, वो बिलख रही थी। कह रही थी कि तुम इकलौते ऐसे इंसान हो, जिससे मैंने बिना किसी पूर्वानुमति के मिलना मंजूर कर लिया था। वो कह रही थी, याद करो उस दिन लेनिनग्राद में येलेना से हुई मुलाकात के बाद जब तुम मिंस्क चले गए थे, हिटलर के अत्याचारों की कहानी को मसहूस करने तभी मैंने तय कर लिया था कि पांच फीट 11 इंच के इस भारतीय नौजवान से मैं मिलूंगी। मैं मिलूंगी, क्योंकि हिटलर के अत्याचार को, मैं ल्युदमिला गोर्चेंको ने जिस शिद्दत से महसूस किया था, उसे ही महसूस करने सात समंदर पार से ये लड़का आया था अपनी येलेना के साथ। कोई बात तो है…

और तुम उसी मिंस्क शहर में अपनी नीली आँखों वाली लड़की के साथ जिन लाखों लोगों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे थे उन लाखों लोगों में मेरे भी पूर्वज थे। 

सुनो और सुनो, तुम्हें अभी भले आश्चर्य हो, लेकिन इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं कि मैं ही येलेना की बेटी हूँ। मेरी माँ का नाम ही येलेना था।

मैं चौंक कर जाग गया। पसीने से तरबतर हो गया। उठ कर आसपास देखा कि कोई है तो नहीं? 

मेरे सामने सचमुच अपने समय की सबसे बड़ी कलाकार अपनी नीली आँखों के साथ बैठी हुई थी। मुमकिन है आपने ल्युदमिला गोर्चेंको का नाम सुना हो, हो सकता है दूरदर्शन के जमाने में आपने भारत रुसी मैत्री की कड़ियों में ल्युदमिला की कुछ डब की हुई फिल्में भी देखी हों।

पर शायद आपको ल्युदमिला से मिलने का मौका न मिला हो। 

वही ल्युदमिला मेरे सामने बैठी थी। 

वो बता रही थी कि द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर की महत्वकांक्षा के आगे जब सारी दुनिया बेबस थी, और पूरा मिंस्क शहर जब जर्मनी की हसरतों को रौंदने का ‘सामान’ बना था, तब मैं अपनी उसी माँ के साथ एक कमरे में वहीं रहती थी। मैं हर रोज बम के धमाके सुनती, बारूद की दुर्गंध मेरी नाक में बस गयी थी, और लाशों के बारे में तो पूछो मत।

मेरी माँ का नाम येलेना था, और मैं ल्युदमिला तब बहुत छोटी बच्ची थी। 

मैं बड़ी होती गई। मेरे सपने बड़े होते गये। तुम्हारी सुनयना दीदी की तरह मैंने भी बहुत से जख्म लिए। तुम्हारी रूना लैला की तरह कई पुरुष मेरी जिन्दगी में भी आये, जो आये मुझे रौंद कर चले गये। मैंने भी एक-एक कर पाँच शादियाँ कीं। मैं सिनेमा संसार की एक जगमगाती रोशनी बन गई। जो मेरी जिन्दगी में आता खुद को उस रोशनी से रौशन करता, और चला जाता। 

फिर मैंने कभी किसी से कोई शिकायत नहीं की। तुम आए थे मिंस्क से लौट कर मॉस्को। याद करो, तुम्हें बहुत बुखार था। 

मुझे याद आ रहा था। उस दिन मुझे बहुत बुखार था। मुझे उन दो दिनों तक कुछ याद नहीं था, जब मैं सचमुच यासनाया पोल्याना में टालस्टॉय की समाधि देख कर लौटा था। उन्हीं दो दिनों में मुझे नहीं पता कि कैसे मैं रूस की सबसे बड़ी फिल्मी हस्ती से मिलने उसके घर पहुँच गया था। 

मैं तब था क्या? मेरी हैसियत क्या थी? कोई यूँ ही मुँह उठाए और किसी के घर पहुंच जाए कि मुझे आपसे मिलना है, और वो उससे मिलने को तैयार हो जाए, सिर्फ तैयार ही न हो जाए उसे अपने घर में बाकायदा बिठा कर उसके साथ तस्वीर खिंचवाए, खाना खिलाए और जाते हुए धन्यवाद कहे तो उसका हक है कि अपनी मौत के कई सालों बाद वो यूँ ही आपके सपनों में आ जाए, आपको झकझोरे और कहे कि मेरी कहानी भी सुनाओ।

ल्युदमिला मेरी नजरों के सामने बैठी थी। मुस्कुराती हुई ल्युदमिला कह रही थी कि मैं किसी से नहीं मिलती थी। लेकिन उस दिन पता नहीं कैसे तुम मेरे घर आए थे। कह रहे थे कि ल्युदमिला से मिलना है। मैंने पूछा भी था कि मुझसे मिलने भारत से कोई छोटा सा लड़का क्यों आया है? मुझे बताया गया कि पतला-दुबला एक नौजवान अनुरोध कर रहा है कि एक बार मिलना है, ल्युदमिला से। 

तुम मेरे कमरे तक आ गये थे। मैं सफेद ड्रेस में तुम्हारे सामने थी। उसी ड्रेस में जिसमें बहुत दिनों बाद मैं तुमसे एलिजाबेथ टेलर के रूप में लास वेगास जा कर मिलने वाली थी। उससे पहले रूना लैला बन कर तुमसे मिलने वाली थी। तुमने मेरे साथ एक तस्वीर खिंचवाई थी। तुम्हें शायद याद न हो, लेकिन तुम ढूंढो। वो तस्वीर तुम्हें मिल जाएगी। फिर तुम मेरी कहानी अपने परिजनों को सुनाना। उन्हें बताना कि येलेना की एक बेटी जो तुमसे बहुत बड़ी थी, पर तुम्हारी दोस्त थी। क्या कमाल है, माँ और बेटी दोनों दोस्त एक ही शख्स की। वो बोलती जा रही थी, मैं खामोश था। 

मैं सचमुच रूस की सबसे नामी हीरोइन ल्युदमिला गोर्चेंको से मिल कर आया था, और उसे भूल गया था। उसकी कहानी बहुत लंबी थी, बहुत दर्द भरी थी। उसकी कहानी फर्श से अर्श तक पहुँचने की कहानी थी। कायदे से मुझे ये कहानी आपको सुनानी ही चाहिए थी। लेकिन पता नहीं कैसे मैं भूल गया।

और ल्युदमिला की मौजूदगी में ही मैंने अपना कम्यूटर ऑन किया और गूगल पर जाकर टाइप किया Lyudmila Gurchenko और हैरान रह गया। मुझसे मिलने के करीब 14 वर्षों बाद ल्युदमिला ने इस संसार को अलविदा कह दिया था। वो अपने ही घर में गिर गयी थी, और फिर कभी नहीं उठी। ये गूगल में तो नहीं लिखा था, लेकिन ल्युदमिला मुझसे कह रही थी कि मैंने सचमुच 14 वर्षों में 14 हजार बार तुम्हारा इंतजार किया। भला ऐसा कोई करता है? एक बार मिले, और भूल कर चले गये? 

सुनो, तुम जिस हक से मुझसे मिलने आए थे, तुम्हें जिस हक से येलेना अपने साथ मिंस्क लेकर चली गई थी और तुम जिस हक से टॉलस्टाय की समाधि पर सोफिया टॉलस्टॉय से मिल कर चले आए थे- उसी हक से कह रही हूँ। तुम मेरी कहानी भी लिखो। तुम अपने उन परिजनों को सुनाओ मेरी कहानी भी। वो सब तुम्हारे हैं, तो क्या मैं तुम्हारी कोई नहीं? एक पल के लिए ही सही, तुम कुछ तो बन कर आए थे मेरी जिन्दगी में। 

मैं ल्युदमिला गोर्चेंको, तुमसे अनुरोध करती हूँ कि तुम लिखो। मेरी पाँच-पाँच शादियों की कहानियाँ लिखो। तुम लिखो मेरी कामयाबी की कहानी लिखो। तुम लिखो मेरी खूबसूरती की कहानी लिखो। तुम लिखो, क्योंकि तुम ही लिख सकते हो। क्योंकि तुम्हारे पास ही वो परिवार है जो हर सुबह तुम्हारी कहानियों का इंतजार करता है। तुम लिखो…लिखो…लिखो। हर सुबह लिखो। तुम लिखते रहो, क्योंकि तुम्हारे पास लिखने के लिए हर सुबह कुछ न कुछ होगा। चाहे उसके लिए मुझे तुम्हारे सपनों में ही क्यों न आना पड़े?

(देश मंथन 05 अगस्त 2016)

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