संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
एक नौजवान हाथ में शीशे की गिलास लेकर लोगों से पूछ रहा था कि क्या मुझे कोई बता सकता है कि इसे किसने बनाया? लोग उसके सवाल को नहीं समझ पा रहे थे कि वो ऐसा क्यों पूछ रहा है। पर किसी ने कहा कि इसे आदमी ने बनाया है। नौजवान हँसा और फिर उसने पूछा कि आपने जो कपड़े पहन रखे हैं, क्या आप जानते हैं उन्हें किसने बनाया है?
आदमी सकपकाया। फिर उसने धीरे से कहा इन्हें भी आदमी ने ही बनाया है।
नौजवान ने हँसते हुए कहा, बिल्कुल सही। इस संसार में जो कुछ भी है उसे किसी न किसी ने बनाया है। आप घर बनाते हैं, घर अपने आप नहीं बन जाता। आप कपड़े बनाते हैं, कपड़े अपने आप नहीं बन जाते। फिर उसने शीशे के गिलास को हवा में लहराते हुए कहा कि जब यह साधारण सा शीशे का गिलास अपने आप नहीं बन जाते, तो ये धरती, ये आकाश, ये नदियाँ, ये समंदर, आसमान में चमकते ये सितारे, अपने आप बन गये होंगे, ऐसा आप कैसे सोच सकते हैं?
लोग हतप्रभ होकर उसे सुन रहे थे।
वो नौजवान कह रहा था कि आपको जो करना है, उसे आप समय रहते कर लीजिए। बाद में करेंगे, यह सोच आपको बहुत पीछे छोड़ देगी। उसने उंगलियों पर कुछ गिना और बताने लगा कि उसकी उम्र अभी 35 वर्ष है और अगर वो अगले 35 वर्ष और जीवित रहा तो उसमें से नौ साल तो सोने में निकल जाएंगे। बाकी के चार साल यात्रा करने में निकल जाएंगे। करीब तीन-चार साल बाकी नियमित जिन्दगी के संचालन और लोगों से मिलने-मिलाने में निकल जाएंगे। फिर सोचिए कि कितना कम वक्त है मेरे पास कुछ करने के लिए।
पर करना क्या है?
मुझे पूरा यकीन है कि अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर संजय सिन्हा किसकी कहानी सुनाना चाह रहे हैं? आखिर संजय सिन्हा किस नौजवान की कहानी सुबह-सुबह लेकर चले आये हैं, और क्यों?
आप सही सोच रहे हैं। हर कहानी को आप तक लाने का एक मकसद होता है। मकसद आपकी सुबह की शुरुआत को खुशगवार बनाने का। आपको सुबह-सुबह रिश्तों से जोड़ने का। आपको ऊर्जा से भर देने का।
अब कहेंगे कि मैं ऐसा क्यों करता हूँ? तो इसका सीधा-सा जवाब है कि मुझे अच्छा लगता है, जब मैं किसी को खुश देखता हूँ। ठीक वैसे ही जैसे मुझे बहुत से लोगों से मिलना अच्छा लगता है, बातें करना अच्छा लगता है। अपनी इस चाहत की वजह से ही मैं अमेरिका में माइकल जैक्सन, एलिजाबेथ टेलर जैसी हस्तियों से मिल पाया हूँ। पर अपने अमेरिका प्रवास में मैं चाह कर भी उस नौजवान से नहीं मिल पाया, जिसकी आज मैं चर्चा कर रहा हूँ।
जी हाँ, मैं बात कर रहा हूँ दुनिया के सबसे महान मुक्केबाज मुहम्मद अली की।
मुहम्मद अली की पिछले हफ्ते ही मृत्यु हो गयी। मैंने कई बार सोचा कि अली के लिए कुछ लिखूँ, पर हर बार उलझ गया।
दुनिया के इस महानतम मुक्केबाज से तो मैं नहीं मिल पाया, पर पत्रकारिता में होने की वजह से मैं उनकी बेटी लैला से मिला हूँ। वो भी मुक्केबाज हैं और मेरी मुलाकात एक मुक्केबाजी की प्रतियोगिता में ही हुई थी। उनसे हुई लंबी बातचीत में उनके पिता के इस भाषण की चर्चा भी शामिल थी।
मैंने आज की पोस्ट में जिस नौजवान की चर्चा की है, वो जब अपने करियर के शिखर पर था, तब उसने एक जनसभा में कहा था कि आदमी की जिन्दगी का मकसद होना चाहिए। आदमी की जिन्दगी का मकसद होना चाहिए परम पिता ईश्वर से मिलना। उसे ईश्वर के साथ तालमेल बिठाना चाहिए। उसे ईश्वर के सत्य की तलाश करनी चाहिए। उसके बताए मार्ग पर चलना चाहिए।
और जब ये वो कह रहा था तब उसकी आँखें बयाँ कर रही थीं कि सचमुच आदमी पूरी जिन्दगी एक भ्रम में जीता हुआ चला जाता है। भ्रम कि उसके पास असीमित समय है। भ्रम कि धन कमाना ही जिन्दगी का मकसद है। भ्रम कि वो कभी मरेगा नहीं।
दरअसल यह जानना बहुत जरूरी है कि आदमी को सारी जिन्दगी सिर्फ जीवन जीने की तैयारी में नहीं खर्च कर देना चाहिए, उसे जिन्दगी को जीने की कोशिश भी करनी चाहिए। उसे जिन्दगी के मकसद को समझने की भी कोशिश करनी चाहिए।
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पिछले हफ्ते, अली ने 74 वर्ष की उम्र में अमेरिका में अपने घर में दम तोड़ दिया। वो पिछले कई वर्षों से बहुत बीमार थे। जब मैं अमेरिका में था, उन दिनों भी वो बीमार थे। उन्हें पार्किंसन हो गया था और वो किसी से मिलते-जुलते नहीं थे। पर मैं हैरान था ये देख कर कि पूरा अमेरिका उनका दीवाना था। उनकी सोच का दीवाना था। उनके खेल का दीवाना था।
और यही नौजवान जब पिछले हफ्ते इस संसार से चला गया तो पूरा अमेरिका रो रहा था।
अली की मौत के बाद मैंने उनसे जुड़ी ढेरों घटनाओँ को याद किया। मैं मन ही मन सोचता रहा कि आदमी इतना बड़ा कैसे हो जाता है कि उसके न होने पर पूरा संसार बिलख उठे।
दरअसल वो रिश्तों को जीता था। दरअसल वो अपने लक्ष्य को जीता था। दरअसल वो अपने पैशन को जीता था। वो इंसान में ईश्वर को तलाशता था।
जो इतना सब करता है, उसे तो दुनिया याद करती ही है।
अली का कहना था कि जिन्दगी सचमुच बहुत छोटी होती है। इसके हर पल को जीने की कला जो सीख गया, वही जिन्दगी को जीता है।
किसी ने एक बार अली से पूछा था कि रिंग में आपको दुश्मन के घूसों से डर नहीं लगता, तो अली ने कहा था कि पेड़ के डाल के हिलने से पक्षी नहीं घबराया करते। जानते हैं क्यों? क्योंकि पक्षी को अपने पँखों पर भरोसा होता है।”
आप भी अपने पँखों पर भरोसा रखिए, पेड़ के डाल तो हिलते रहेंगे, उनसे क्या घबराना?
(देश मंथन 10 जून 2016)