राजघाट में सो रहा है दुनिया का सबसे बड़ा फकीर

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

नाम राजघाट है पर यहाँ सो रहा है सदी का सबसे बड़ा फकीर। एक ऐसा फकीर जिसे नमन करने दुनिया भर के लोग आते हैं। शायद पूरी दुनिया में बापू ऐसे पहले आजादी की लड़ाई के अगुवा रहे होंगे जिन्होंने आजादी मिल जाने के बाद कोई सत्ता नहीं ग्रहण की। सरकार में कोई पद नहीं लिया। महलों में रहने नहीं गए।

आजादी तो मिल गयी पर बापू तो पीड़ित मानवता की सेवा में लगे रहे। उनके स्मृतियों को संजो कर उनकी समाधि बनाई गयी तो उसका नाम राजघाट रखा गया। भला राज घाट क्यों। वे तो संत थे। उन्होंने तो अपने लिए राज पाने की कामना ही नहीं की थी। पर वे तो ऐसे असंख्य राजाओं से काफी बड़े हैं जिन्होंने सालों राज किया हो। तभी तो भारत भूमि पर आने वाला हर शख्स चाहे वह किसी भी देश का शासनाध्यक्ष क्यों न हो, दिल्ली आने पर राजघाट पहुँचता है…नंगे पाँव…. और उनकी समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित करता है।
दिल्ली में रहते हुए जब जब जी थोड़ा उचाट होता है चुपचाप चला जाता हूँ राजघाट। थोड़ी प्रेरणा पाने की आस में। यह संयोग ही है कि जब 1991 में पहली बार दिल्ली पहुँचा तो हमारा पहला पड़ाव राजघाट ही था। सितंबर 1991 में अलीगढ़ का शिविर खत्म हुआ तो दिल्ली देखने की इच्छा थी। मैं और बिपिन चतुर्वेदी बस में बैठे। आईटीओ पर रिंग रोड पर उतर गये। पैदल-पैदल राजघाट की ओर। यहाँ पर सामने गाँधी स्मृति दर्शन समिति में लोकसेवक मंडल का अंतरराष्ट्रीय शिविर लगा था। उसमें दो दिन ठहरे। इस दौरान बापू की समाधि राजघाट पर पहुँचे। इसके बाद वीरभूमि (राजीव गाँधी की समाधि) शांतिवन (पंडित नेहरू की समाधि) और विजय घाट (लाल बहादुर शास्त्री की समाधि) के दर्शन। यह रिंग रोड (महात्मा गाँधी मार्ग) से लगता हुआ दिल्ली का बड़ा हरित क्षेत्र भी है। दूसरी बार 1992 में दुबारा एक शिविर में गाँधी दर्शन में रूकना हुआ।
राजघाट में बापू की स्मृति में अखंड ज्योति जलती रहती है। इसके बगल में बापू का प्रिय चरखा भी चलता है। यहाँ चरखा चलाने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। हालांकि अब बहुत कम लोग चरखा चलाना जानते हैं।
राजघाट का विस्तार 44.35 एकड़ के हरित क्षेत्र में है। निधन के एक दिन बाद 31 जनवरी 1948 को बापू का अंतिम संस्कार यहीं पर किया गया था। तब यहाँ लाखों लोगों की भीड़ उमड़ी थी। बापू को अंतिम विदाई देने के लिए।
खुलने का समय
आम दर्शकों के लिए राजघाट हर रोज सुबह 6.30 बजे से शाम 6.00 बजे तक खुला रहता है। यहाँ जूता स्टैंड और पेयजल आदि का इंतजाम है।  2 अक्तूबर, 15 अगस्त और 26 जनवरी के आसपास यहाँ पर वीवीआईपी आयोजन के कारण आमजन का प्रवेश प्रतिबंधित किया जाता है।
राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय और पुस्तकालय
राजघाट के ठीक सामने स्थित है राष्ट्रीय गाँधी संग्रहालय। यहाँ पर आप बापू और कस्तूरबा गाँधी के जीवन से जुड़ी प्रदर्शनी देख सकते हैं। बापू की आवाज टेलीफोन पर सुन सकते हैं। दो मंजिला भवन में प्रदर्शनी काफी जानकारी परक है। इसमें चित्र प्रदर्शनी के अलावा बापू के आखिरी कपड़े यानी खून से सनी धोती और शॉल को देखा जा सकता है। बापू को लगी गोलियों में से एक गोली भी देखी जा सकती है।
40 किस्म के चरखे देखें यहाँ
सबसे नायाब है यहाँ का चरखा संग्रहालय। इसमें देश के अलग हिस्सों में बने चरखों का विशाल संग्रह है। यहाँ पर हर रोज बापू के जीवन से जुड़ी फिल्म का प्रदर्शन भी होता है। संग्रहालय के भवन में एक बेहतरीन पुस्तकालय भी है। यहाँ पर सुबह 10 से शाम 5 बजे तक बैठ कर पुस्तकें पढ़ सकते हैं। साथ ही एक पुस्तक बिक्री केंद्र भी है। यहाँ बापू के जीवन और गाँधी दर्शन से जुड़ी पुस्तकें और दूसरी यादगारी वस्तुएँ खरीदी जा सकती हैं। गाँधी संग्रहालय भवन का उदघाटन 30 जनवरी 1961 को भारत के पहले राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने किया था। यह संग्रहालय सुबह 9.30 से शाम 5.00 बजे तक खुला रहता है।
(देश मंथन 16 जून 2016)

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