अपराध बोध

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

मेरे बेटे को रास्ते में पाँच सौ रुपये का एक नोट गिरा हुआ मिला। उसने उस नोट को उठा कर जेब में रख लिया। लेकिन कुछ दूर जाकर वो वापस लौटा और उसने उस नोट को जेब से निकाल कर वहीं फेंक दिया।

मैंने उसकी इस हरकत को बहुत बारीकी से नोट किया। जब उसे वो नोट मिला था, तब अचानक उसके चेहरे पर चमक आयी थी। वो खुश हुआ था। फिर जेब में रखते हुए वो थोड़ा झिझक रहा था। लेकिन कुछ ही मिनटों में वह परेशान सा होने लगा। जब उसने उस रुपये को सड़क पर दुबारा रख दिया, तब वो बहुत खुश हुआ।

मैं जिन दिनों अमेरिका में था, मैंने नोट किया था कि सड़क पर किसी को अगर गिरा हुआ पैसा मिल जाये, तो वो उसे अपनी किस्मत मानते हैं। उनका मानना है कि जिसका खोया उसकी बदकिस्मती, जिसे मिला वो उसकी किस्मत।

मैंने अपने बेटे से पूछा कि तुमने नोट क्यों फेंक दिया। वो तुम्हें सड़क पर गिरा हुआ मिला था, इसमें कोई बुराई नहीं थी कि तुम उसे अपनी जेब में रख लेते और अगर तुम्हें खुद नहीं रखना था, तो तुम किसी जरूरतमन्द को दे देते।

बेटे ने कहा, “पापा, जब वो नोट मुझे मिला, तो मैं बहुत खुश हुआ। लेकिन उस नोट को जेब में रखने के बाद मुझे बहुत बेचैनी सी होने लगी। मैं बहुत असहज महसूस करने लगा। मुझे लगने लगा जैसे मैंने चोरी कर ली हो। मैं सोचने लगा कि जिसका नोट गिरा होगा, पता नहीं वो कितना परेशान होगा। मुझे नहीं पता कि पाँच सौ रुपये की कीमत उसके लिए कितनी होगी। और मैंने उस नोट को दुबारा फेंक दिया।”

मैंने कहा कि लेकिन जिसका नोट गिरा होगा, क्या पता उसे पता भी नहीं हो कि कहाँ गिरा। तुमने उसे फेंक दिया, तो दूसरा कोई उसे उठा लेगा। मुझे लगता है कि तुम्हें वो नोट नहीं फेंकने चाहिए थे। तुम रख सकते थे।”

“नहीं पापा। वो मेरा नोट नहीं था। जो मेरा नहीं था, उसे रखते हुए मैं कतई सहज नहीं था। मैंने कहा न शुरू में मुझे खुशी हुई थी, पर पता नहीं कैसे जल्दी ही अपराध बोध सा होने लगा। मैं उस अपराध बोध को जब्त नहीं कर पा रहा था। और मुझे तत्काल लगा कि इससे मुक्ति का एकमात्र उपाय यही है कि उसे त्याग दिया जाये।”

“लेकिन बेटा पैसे की एक अहमियत होती है। तुम अभी तक पैसे की अहमियत नहीं समझे हो। इतने बड़े हो गये हो। कल को नौकरी करोगे। पैसे की कीमत तो समझनी चाहिए न!”

“पापा, आदमी को पैसे कमाने में जिन्दगी नहीं खर्च कर देनी चाहिए। ऐसा कुछ करना चाहिए कि पैसा आपकी जिन्दगी को सुविधाजनक बनाये, न कि आप पैसे के पीछे अपना सब सुख गँवा बैठें। असल चीज जिन्दगी को खुशी से जीना है और वो खुशी सिर्फ मेहनत के पैसे से आ सकती है। किसी और के पैसे पर क्या मजा आयेगा? और इस बात के अलावा एक बात और बात और बता देता हूँ पापा कि असल मजा तो यह है कि पैसे को आपके लिए काम करना चाहिए, आपको पैसे के लिए काम नहीं करना चाहिये।”

मैं हैरान था। अब तक अपने बेटे को ज्ञान देने वाले संजय सिन्हा को आज अपने बेटे से ज्ञान प्राप्त हो रहा था। दुनिया को खुश रहने का ज्ञान देने वाले संजय सिन्हा आज खुश रहने का फॉर्मूला सीख रहे थे।

कल गुरु पूर्णिमा थी। कल गुरु को नमन करने का दिन था। कल मुझे मेरा गुरु मिला।

कल मैंने जिन्दगी का सबसे बड़ा पाठ पढ़ा। “पैसे को आपके लिए काम करना चाहिए, आपको पैसे के लिए काम नहीं करना चाहिए।”

इस एक वाक्य ने अब मेरी सोच बदल दी है।

मेरे पिताजी कहा करते थे कि पैसा कितना कमाया, उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है ये जानना कि पैसा कैसे कमाया है।

मेरा बेटा कह रहा था कि पैसा आपके लिए काम करें, यह तो पैसे का सार्थक गुण हुआ। लेकिन अगर आप पैसे के लिए काम करते हैं, तो यह आपका निर्रथक गुण हुआ।”

खुशी तब मिलेगी जब सार्थक पैसा जेब में होगा। हर पैसे से खुशी मिलने लगती तो संसार में कोई दुखी ही नहीं होता।

सारा दुख सिर्फ इस बात के लिए है कि लोग न तो सच समझते हैं, न सच का मर्म समझते हैं। जो सच नहीं समझते, उनके लिए किया गया हर काम व्यर्थ है।

(देश मंथन, 02 अगस्त 2015)

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