गुरु गोबिंद सिंह की याद दिलाता है गुरुद्वारा दमदमा साहिब

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

वैसे तो दिल्ली प्रसिद्ध गुरुद्वारों में गुरुद्वारा शीशगंज साहिब, गुरुद्वारा बंगला साहिब, गुरुद्वारा रकाबगंज के बारे में सभी लोग जानते हैं। पर दिल्ली में और भी कई ऐतिहासिक गुरुद्वारे हैं। इनमें से एक है गुरुद्वारा दमदमा साहिब।

गुरुद्वारा दमदमा साहिब दक्षिण दिल्ली में हुमांयू के मकबरे के पीछे स्थित है।

यहाँ जाने का रास्ता हुमायूं के मकबरा के बगल से होकर है। गुरुद्वारा के बगल से निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन की रेलवे लाइन गुजरती है। गुरुद्वारा दमदमा साहिब की यादें दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़ी हुई हैं। यह गुरुद्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी और मुगल बादशाह बहादुर शाह के बीच 1707 में हुई मुलाकात की याद दिलाता है। बहादुर शाह के शासन काल में गुरु गोबिंद सिंह का दिल्ली आगमन हुआ। वे सिख फौज के साथ उन्होने मोती बाग (धौला कुआं के पास) अपना ठिकाना बनाया।

गुरु साहिब और बादशाह से मुलाकात का स्थान हुमायूं के मकबरे के पीछे हजरत निजामुद्दीन के पास तय किया गया। शुरू की मुलाकात में गुरु साहिब ने उन फौजदारों, अमीरों जमींदारों और पहाड़ी राजाओं के नाम बादशाह को दिये, जिन्होंने साहिबजादों और अमीर सिखों और पर जुल्म ढाये थे। उन्होंने धोखे और फरेब से आनन्दपुर साहिब खाली करवा लिया और गुरु घर का कीमती सामान और साहित्यिक खजाना बरबाद किया। दास्ताँ सुनकर बादशाह ने भरोसा दिलाया कि वह इन सब दोषियों को योग्य सजाएँ देंगे।

इसके पश्चात शाही फौज और सिख फौजी अपने अपने करतब दिखाने लगे। बादशाह सिख फौज के करतब देखकर उनकी बहादुरी का कायल हुआ। बाद में जंगी हाथियों की लड़ाई करवाने का भी विचार बना। गुरु साहिब ने शाही जंगी हाथी के मुकाबले में अपना जंगी झोटा पेश किया। सबकी हैरानी की सीमा न रही जब गुरु साहिब का झोटा ने शाही जंगी हाथी को थोड़ी देर में ही मात दे दी। यह सब देखकर बादशाह गुरु साहब की फौज का बड़ा प्रशंसक बन गया।

इस मुलाकात की याद में यहाँ पर गुरुद्वारा दमदमा साहिब का निर्माण करवाया गया है। यहाँ का वातावरण बड़ा ही मनोरम है। हर रविवार को यहाँ बड़ी संख्या में दिल्ली के श्रद्धालु पहुँचते हैं। यहाँ गुरु का लंगर भी लगता है।

(देश मंथन 03 जून 2015)

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