विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:
शिलांग में दूसरे दिन गैरोटो चेपल चर्च, लेडी हैदरी पार्क और एयरफोर्स म्युजिम देख लेने के बाद अनादि और माधवी को भूख लग गई थी। सुबह का नास्ता तो हमने होटल के पास पूरी सब्जी वाले के पास कर लिया था।
नेपाली भाई के होटल में पूरी सब्जी के साथ उनकी खीर कदम मिठाई अनादि को खूब पसंद आई। निपको दफ्तर के सामने इस नास्ता घर के बारे में हमें टैक्सी वाले भाई वांकी ने बताया था।
अब दोपहर के खाने के लिए हमलोग मारवाड़ी बासा पहुंचे। पुलिस बाजार का मारवाड़ी बासा सस्ते आवास और शाकाहारी भोजन के लिए जाना जाता है। पर दोपहर में बासा वाले ने बोला कि आपको एक घंटे इंतजार करना होगा। साथ ही यह भी बताया कि थाली नहीं है। फिर यहाँ अलग-अलग खाना महंगा था। हमने मारवाड़ी बासा की काफी तारीफ सुनी थी पर उनका व्यवहार काफी रुखा लगा। यहीं हमारी मुलाकात मुंबई से आये दो युवकों से हुई जो अपने लिए कमरा ढूंढ रहे थे, पर मारवाड़ी बासा वाले ने उनसे भी बड़ी बेरूखी से बात की।
फिर क्या हमलोग आगे बढ़े। बगल में एक बंगाली होटल नजर आया। यहाँ 40 रुपये की चावल की थाली है। हमें यहाँ का भी खाना अच्छा लगा। पर माधवी और वंश को संतुष्टि नहीं मिली। तो हम उन्हें दिल्ली मिष्टान भंडार ले गए। वहाँ पर मिठाइयां, रस मलाई, छोला भठूरा आदि खा कर वे लोग तृप्त हो गये। कई दशक से दिल्ली मिष्टान भंडार अपने स्वाद के लिए शिलांग में सर्वाधिक लोकप्रिय है। खाने के बाद पुलिस बाजार की सड़क पर घूमते हुए असम इंपोरियम नजर आया। यहाँ सेल लगी थी। तो औने पौने दाम में पूर्वोत्तर के बने कई हस्तशिल्प उत्पाद हमने खरीद डाले। झोला, वेस्ट पाउच, मफलर, सलवार सूट आदि आदि। इसके बाद पुलिस बाजार में स्थित टैक्सी स्टैंड से ही वांकी भाई ने हमें गुवाहाटी की टैक्सी में बिठा दिया।
यह टैक्सी स्टैंड होटल शेफायर और लिटल चायना के पास है। यहाँ टैक्सी तुरंत भर जाती है, जबकि सिविल हास्पीटल के पास के टैक्सी वाले एक घंटे तक चौराहे पर चक्कर लगाकर सवारी ढूंढ़ते रहते हैं। दोपहर के बाद हमलोगों ने शिलांग शहर और वांकी भाई को अलविदा कहा।
शाम को टैक्सी नूंगपो में एक शानदार हाईवे ढाबे में रूकी। यहाँ शाकाहारी-माँसाहारी खाने को तमाम विकल्प थे। पर हमें कुछ खाने की इच्छा नहीं थी। अनादि यहाँ देर तक झूला झूलते रहे। शाम के सात बजने तक हमलोग गुवाहाटी के पलटन बाजार में पहुंच चुके थे। इस बार हमारा ठिकाना बना होटल गीतांजलि। शाम को मैं अनादि और माधवी को खाने केलिए तिरुमाला ढाबा में ले गया जहाँ मैं पहले भी कई बार खाने जा चुका हूँ। अब हमलोग पलटन में बाजार में पूर्वोत्तर की कुछ निशानियाँ खरीदने में जुट गये। सबसे पहले जाफी खरीदी और बांस और बेंत के बने कुछ और सजावटी सामान। पलटन बाजार रात 10 बजे तक खुला रहता है।
गुवाहाटी की एक और सुबह। मैं खिली खिली धूप में टहलने निकल पड़ता हूं। हमें 10 बजे एयरपोर्ट जाना है तो मैं एयरपोर्ट जाने के रास्ता और तरीके पता लगाता हूं। टैक्सी वाले 700 माँग रहे हैं एसी के लिए और 600 नान एसी के लिए। पलटन बाजार से एयरपोर्ट एसी बस भी जाती है। उसका स्टैंड बना हुआ है। पर अकेले जाने वालों के लिए बस ठीक है। सुबह नास्ते के लिए हमलोग कामरूप फूड जंक्शन पहुंचे। एमई रोड पर यह नया फूड प्लाजा खुला है। यहाँ हमने छोले भठूरे, पूरी सब्जी और मसाला डोसा खाया।
साफ सफाई अच्छी है। कीमतें भी वाजिब हैं। इसके बाद एयरपोर्ट के लिए ओला बुक किया। 24 किलोमीटर के एयरपोर्ट का सफर संतोषजनक रहा। बिल आया महज 349 रुपये यानी टैक्सी वालों से आधा। गुवाहाटी का एयरपोर्ट शहर से दूर है। रास्ते में हमें जुलुकबाड़ी में असमिया के महान कवि और फिल्मकार भूपेन हजारिका की समाधि नजर आई। गुवाहाटी पूर्वोत्तर का सबसे बड़ा एयरपोर्ट है पर काफी भव्य नहीं है।
गुवाहाटी – लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोलोई एयरपोर्ट पर इंतजार…
चेक इन के बाद लांज में इंतजार। लांज में काफी भीड़ है। कई शहरों की उडानों के लिए लोग बैठे हैं। गुवाहाटी के इस एयरपोर्ट का नाम असम की महान शख्शियत लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोलोई के नाम पर है।
हमारी उड़ान दिल्ली के लिए एयर एशिया से है। उड़ान 12 बजे है। हम पर्याप्त समय पहले पहुंच गये हैं। एक जर्मनी के बुजुर्ग मिले। वे विशाल असमिया जाफी लेकर अपने वतन जा रहे हैं। असम की यादें संजोए। हमने भी छोटी जाफी ली है।
एयर एशिया से दिल्ली की ओर….
गुवाहाटी से नीयत समय पर विमान ने उड़ान भरी। हमने एयर एशिया का टिकट छह माह पहले कराया था इसलिए हमें रियायती दरों पर मिल गया था। नौ हजार में तीन लोगों का दिल्ली गुवाहाटी का टिकट। हमलोग तीन बजे दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टी 3 पर थे। यहाँ से एयरपोर्ट मेट्रो सेवा का इस्तेमाल कर नई दिल्ली और फिर एक बार फिर ओला कैब से अपने घर। 11 दिनों बाद फिर से उसी दिल्ली में। पर अनादि और माधवी के जेहन में इस बार पूर्वोत्तर की ढेर सारी मीठी यादें हैं।
( पूर्वोत्तर के तीन राज्यों की यात्रा के संस्मरण, आलेखों को यहाँ विराम। फिर कभी चलेंगे एक नई यात्रा पर, ये जिंदगी अनवरत यात्रा ही तो है …)
(देश मंथन, 28 मार्च 2017)