एक बार फिर …गुवाहाटी से शिलांग

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार:  

गुवाहाटी से शिलांग के बीट नूंगपो में सुबह सुबह…

यह संयोग ही है कि साल 2016 में दूसरी बार गुवाहाटी से शिलांग जा रहा हूँ। एक जनवरी के बाद एक बार फिर अक्तूबर में। ढिब्रूगढ़ इंटरसिटी गुवाहाटी शहर में प्रवेश कर रही है और साथ साथ सुबह का उजाला हो रहा है।

प्लेटफार्म से बाहर निकल कर हमलोग एक बार फिर पलटन बाजार में हैं। गुवाहाटी से शिलांग के लिए शेयरिंग टैक्सियाँ स्टेशन के बाहर से ही मिलती हैं। हमलोग अपनी पसंद की तीन सीटें बुक करा लेते हैं। किराया 170 रुपये है पर अभी वे 200 रुपये ले रहे हैं। ड्राईवर अच्छे हैं, बिहार के समस्तीपुर के हैं। सुबह सुबह गुवाहाटी शहर से बाहर निकलने में जाम नहीं मिलता। हमलोग रेलगाड़ी में ब्रश कर चुके हैं। इसलिए जब सूमो शिलांग गुवाहाटी के बीच मध्य विंदु नूंगपो में रुकती है तो चाय पीने की इच्छा होती है। 

और ये रहा मछली का अचार …

अक्तूबर की सुबह शिलांग और जाते हुए मौसम सुहाना है। नूंगपो में जिस रेस्टोरेंट के आगे गाड़ी रुकती है वहाँ टायलेट आदि का बेहतर इंतजाम है। नूंगपो में हर होटल के बाहर सजी धजी दुकाने हैं जहाँ कई किस्म के अचार मिलते हैं। पर इनमें खासतौर पर माँसाहारी अचार हैं। जी हाँ मछली का अचार। बोतल में बंद अचार में तेल में नन्हीक-नन्ही मछलियाँ तैरती नजर आती हैं। भले ही वे जिंदा नहीं हैं पर उनकी आँखें चमकती हैं ऐसे मानो वे हमें देख रही हों। अनादि ट्रेन में जमकर सो चुके हैं इसलिए वे और उनकी माँ माधवी दोनों मेघालय की हरी भरी वादियों के नजारे देखने में खो जाते हैं। तभी बड़ा पानी यानी उमियाम लेक आ जाता है। मैं उन्हें बताता हूँ कि अब शिलांग शहर महज 20 किलोमीटर रह गया है।

मैं वैंकी को फोन मिलाता हूँ। वैंकी टैक्सी वाले हैं जिनसे पिछली यात्रा में मेरी जान पहचान हुई थी। सूमो हमें शिलांग शहर के हास्पीटल सर्किल के पास उतार देती है। हमारा होटल नाइट इन निपको के दफ्तर के सामने है। सूमो वाले कहते हैं कि आप हमें 200 रुपये और देंतो हम आपको होटल छोड़ देंगे। पर हमें इसकी जरूरत नहीं है। वैंकी अपनी आल्टो टैक्सी लेकर हाजिर हो गये हैं। वे हमें होटल छोड़ देते हैं। हमने तय किया है कि होटल से फ्रेश होने के बाद आज ही वैंकी के साथ टैक्सी में घूमने चलेंगे।

होटल नाइट इन एक मार्केटिंग कांप्लेक्स में है। इसके मालिक जायसवाल जी बिहार मूल के हैं। 

होटल का आंतरिक सज्जा काफी अच्छी है। लकड़ी का काम करीने से किया गया है। हमने ये होटल गोआईबीबो डाट काम से बुक किया था। यह अमेरिकन प्लान में है। यानी सुबह का नास्ता साथ में । होटल के मैनेजर ने कहा बुकिंग के हिसाब से आपको नास्ता कल सुबह मिलेगा। पर हमने कहा कल की जगह आज ही दे दीजिए। बस हम सब टूट पड़े नास्ते पर। अनादि कार्न फ्लेक्स और दूध तो मैं पूरी सब्जी तो माधवी छोले भठूरे। डायनिंग हॉल अच्छी संख्या में यात्रियों से गुलजार था। शिलांग ऐसा शहर है जो सालों भर सैलानियों से गुलजार रहता है।

शिलांग में सुबह का नास्ता…

सर्दियों में बर्फ तो गर्मियों में यहाँ शीतल सुहाना मौसम सैलानियों को बुलाता है। वैंकी हमारा होटल के बाहर एक घंटे इंतजार करते हैं। इसके बाद सुबह के 10 बजे हमलोग चल पड़ते हैं । कहाँ…अरे भाई चेरापूंजी की ओर और कहाँ….

(देश मंथन,  16 मार्च 2017)

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