“देंगे वही, जो पायेंगे इस जिन्दगी से हम!”

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक : 

कई लोगों ने अनुरोध किया है कि मुझे त्रेता और द्वापर युग से निकल कर 21वीं सदी की बातें लिखनी चाहिए। मुझे प्यार मुहब्बत की कहानियाँ लिखनी चाहिए।

मुझे उन येलेनाओं को याद करना चाहिए जो जिन्दगी के सफर में मुझे मिलीं। उनकी संगमरमरी यादों से गुजरना चाहिए। ये क्या कि इन दिनों माँ से सुनी कहानियों में उलझ कर रह जा रहा हूँ। 

बिल्कुल सही बात है। मुझे भी लगता है कि कैकेयी और मन्थरा पुराण में कुछ नहीं रखा। ना ही ‘मरा-मरा’ की रट लगाने वाले वाल्मिकी की यादों में कुछ रखा है। क्या करूँ, सुबह लिखने बैठता हूँ, तो रात की यादें ही सामने नाचने लगती हैं। अगर मैं सुबह की जगह शाम को रोज पोस्ट लिखने लगूँ तो पूरी पोस्ट का विषय बदल जाएगा। मैं सारा दिन चमकते-दमकते, खुशबूदार लोगों से मिलता हूँ। उनकी यादों से गुजर सकता हूँ।

जिन दिनों रिपोर्टिंग करता था, उन दिनों तो कई बार चिथड़ों और गन्दगी से पाला भी पड़ता था, लाशों के बीच उठता बैठता था, लेकिन जब से तरक्की पा कर टीवी चैनल में संपादक बना हूँ, मेरी जिन्दगी ठंडी-ठंडी हवाओं के साथ सुंदर-सुंदर लोगों से बात करते हुए कटती है। 

पहले मैं मोटे पेट वाले नेताओं से भी बतियाता था, उनके नाकाबिल इरादों से भी रूबरू होता था, लेकिन धीरे-धीरे उनसे दूरी बरतने लगा। पता नहीं क्यों गोल चेहरे, चिथड़ी दाढ़ी, मोटा पेट, वायु विकार से गुजरने वाले उन नेताओं को देख कर मुझे अपने पत्रकार होने पर ही अफसोस होने लगा था। फिर मैं प्यार – मुहब्बत की कहानी की ओर मुड़ा। सुंदर-सुंदर चेहरे वाली लड़कियों से मिलने लगा, जो सिनेमा में काम करती हैं, उनकी कहानी लिखने लगा। मैंने कई बार लिखा है कि मुझे सिनेमा वाले पसन्द आते हैं, क्योंकि वो चाहे जैसे हों, हर वक्त सजे-धजे और खुशबू से घिरे रहते हैं। पर इन दिनों रह-रह कर सनी लियोने मुझसे मिलने दफ्तर चली आ रही हैं। सनी इकलौती हीरोइन हैं, जिनकी चर्चा में मजा नहीं आता। कंगना, प्रियंका मुझसे मिलने आती हैं तो फोटो खिंचवा कर आपको भेज ही देता हूँ, ताकि मेरे साथ-साथ आपका मन भी महकता रहे। 

ऐसे में सवाल ये भी उठा कि जब सलमान खान को सजा हुई, जमानत मिली तो उन्हीं की कहानी क्यों न लिखूँ। वो भी तब, जब मैं कहता फिरता हूँ कि सलमान खान मेरे दोस्त हैं, लेकिन मैंने उन पर नहीं लिखा। क्या लिखता, सारा दिन तो आप वही देखते और पढ़ते रहे।

फिर क्या लिखूँ?

रात में रोज माँ से मिलता हूँ, माँ से बातें करता हूँ। माँ मुझे अक्सर जो कहानी सुनाती है, सुबह-सुबह मैं आपके सामने उसी कहानी के साथ हाजिर हो जाता हूँ। 

“देंगे वही, जो पायेंगे इस जिन्दगी से हम !”

सलमान की छोड़िए, माँ की कहानियों में तो हजारों हिट एंड रन की कहानियाँ हैं। माँ ने कैकेयी की हिट एंड रन की जो कहानी सुनाई वो क्या कम मजेदार है।

आइए आज आपको कैकेयी के हिट एंड रन की कहानी सुनाता हूँ। 

लेकिन, पहले मुझे माँ से लिपटने तो दीजिए। मनुहार तो करने दीजिए।

“माँ, राम वाली कहानी आगे बढ़ाओ। आज मुझे हनुमान के बारे में सुनाओ। माँ, क्या सचमुच हनुमान जी स्पाइडर मैन और बैट मैन से ज्यादा शक्तिशाली थे?”

“हाँ, बेटा इस संसार में हनुमान जी से ज्यादा शक्तिशाली कोई नहीं। उन्होंने तो एकबार सूरज को ही निगल लिया था।”

“माँ इसीलिए उनका मुँह फूला हुआ नजर आता है। मैंने तो उन्हें पहाड़ लेकर उड़ते हुए भी देखा है। लेकिन माँ, मुझे सबसे अच्छा लगता है जब उन्होंने अपनी ही पूँछ को फुलझड़ी बना कर लंका को जला दिया था। माँ तुम कहती हो कि जल्दी ही देश में ऐसा रेडियो आने वाला है, जिसमें हम सब देख सकते हैं। लेकिन माँ, जब तक वो नहीं आता है, मैं तुम्हारी आँखों से सब देखता हूँ। तुम बस सुनाती जाओ, मैं देखता जाता हूँ। तो आज तुम कौन सी कहानी सुनाओगी? हनुमान वाली?”

“अभी तो हनुमान जी के आने में वक्त है बेटा। पहले राम जी राजा बनते-बनते राजा नहीं बन पायेंगे, फिर वो जंगल में चले जायेंगे, फिर वहाँ दस सिरों वाला रावण आयेगा, फिर सीता को अपने हवाई जहाज में उड़ा कर ले जायेगा, फिर हनुमान जी आयेंगे। फिर लंका में आग लगेगी।”

फिर लंका में आग लगेगी, ये सुनते ही माँ का राजा बेटा संजू तालियाँ बजाने लगता। हनुमान जी आयेंगे, लंका में आग लगायेंगे।

“तो माँ जल्दी शुरू करो न! रात भर मैं सोचता रहा कि कल तुमने मुझे समझाया था कि झूठ और अहंकार से किसी को कुछ हासिल नहीं होता, झूठ और अहंकार से दुख ही मिलता है। कल तुमने बताया था कैसे मन्थरा ने अपने अहंकार, अपने क्रोध और अपनी ईर्ष्या का बदला राम की दासी से लेने के लिए अपनी मालकिन कैकेयी को भड़काया। और जब कैकेयी ये सब गन्दी बातें सोचती हुई बेहोश हो गईं, तो उसने सबसे झूठ भी बोला कि रानी किसी से मिलना ही नहीं चाहतीं। वो सिर्फ महाराजा दशरथ से ही मिलेंगी।”

“बहुत सुन्दर। तुम्हें कल की पूरी कहानी याद है। तुम मेरे समझदार बेटे हो। तुम सब समझते हो, सब याद रखते हो।”

“तुमने ही तो कहा था माँ, कि मुझे गुड ब्वॉय बनना है, तो मैं गुड ब्वॉय बन गया हूँ। अब देर न करो, आगे सुनाओ माँ।”

“हाँ, तो कैकेयी किसी से नहीं मिलीं। कौशल्या आईं, राम आए, सीता आईं, लक्ष्मण आए, भरत ने फोन किया, लेकिन उन्होंने न किसी से बात की न मिलीं। उन्होंने मन्थरा के सिखाने के बाद ठान लिया था कि मिलेंगी तो सिर्फ दशरथ से। क्योंकि मन्थरा ने अपने किसी फायदे के बिना ऐसा सुझाव दिया था। देर रात दशरथ भी आ गये। दशरथ से उन्होंने वही माँग लिया जिसे नियती मँगवाना चाहती थी।”

“नियती?”

“हाँ, बेटा, ये सच है। तुम्हारे फेसबुक के कई परिजन भी आगे तुमसे यही कहेंगे कि ये होनी थी, क्योंकि राम का जन्म रावण का वध करने के लिए ही हुआ था। इसीलिए नियती ये सारे खेल करवा रही थी। खुद महर्षि विश्वामित्र दशरथ से राम को माँगने आए थे। पर दशरथ तैयार नहीं हुए तो, भगवान को सारा प्रपंच रचना पड़ा।”

“प्रपंच?”

“हाँ, मनुष्य के मन में इतने खुराफाती विचार का आना भी तो कमाल ही है। अगर राम का जन्म रावण के वध के लिए नहीं हुआ होता, तो भी मन्थरा के मन में भी ये खुराफाती विचार नहीं आते। मैंने तुम्हें बताया था न कि आदमी ईश्वर की बनाई वो कृति है, जो चाहे तो ईश्वर की ओर से तय किए गए गलत काम के पाप से भी खुद को बचा सकता है। इसलिए जो लोग ईश्वर की मर्जी कह कर गलत काम को अन्जाम देते हैं, वो नहीं जानते कि ईश्वर अपनी मर्जी से भी गलत काम करा कर उसका फल दे देता है। इसीलिए तो कहते हैं कि चाहे जो हो, अपने कर्म ठीक रखो, जो फल मिले उसे ईश्वर की मर्जी मान लो।”

“माँ, क्या ईश्वर को प्रपंच करना पड़ता है?”

“हाँ, करना पड़ता है। उसे देखना पड़ता है कि प्रपंच के लिए चुने गए पात्रों में कौन उसका शिकार बन सकता है। जब देवताओं ने देखा कि राजा दशरथ अपने पुत्र राम को रावण के वध के लिए भेजने को नहीं तैयार, तो सबने मिल कर देवी सरस्वती से प्रार्थना की कि वो कैकेयी की जुबान पर सवार होकर दशरथ से राम को रावण के वध के लिए भेजने को कह सकें। लेकिन कैकेयी में तप का इतना बल था कि सरस्वती की हिम्मत ही नहीं हुई कि वो उनसे ऐसी वाणी बुलवा सकें। बहुत विचार करने के बाद वो मन्थरा की जुबान पर सवार होने को तैयार हुईं, और फिर जो हुआ वो हुआ।”

“माँ कैकेयी ने दशरथ से राम के लिए वनवास माँग लिया। राम ने इस पर क्या प्रतिक्रिया जताई?”

“कुछ नहीं। राम तो पिता के भक्त थे। उन्होंने खुशी-खुशी वन जाना स्वीकार कर लिया।” 

“तो क्या जाने से पहले वो अपनी छोटी माँ कैकेयी से मिलने नहीं गये?”

“गये थे बेटा। सारा नगर शोक में डूबा था। राम ने सबके पाँव छुए और वन जाने की आज्ञा ली। जब वो कैकेयी के पास गये, तो वो अपने किये का पश्चताप कर रही थी। रो रही थी। राम वहाँ जाकर खड़े रहे, तो कैकेयी ने उनकी ओर कातर निगाहों से देखा और कहा कि राम तुम कभी मेरे बेटे भरत से इस बात के लिए नफरत न करना कि उसे राजा बनाने के लिए मैंने इतना बड़ा गुनाह किया। भरत को सचमुच कुछ नहीं पता। वो मेरी महत्वाकांक्षा का शिकार हो गया है। 

राम ने माँ कैकेयी की ओर देखा। कहा, “माँ ये त्रेता युग है। इस युग में धर्म-अधर्म, सही-गलत की व्याख्या स्पष्ट है। भरत सा भाई मिलना नामुमकिन है। इसलिए दुनिया भरत पर कभी सन्देह नहीं करेगी। लेकिन माँ, अनजाने में ही सही, आपकी वजह से पिता को जो तकलीफ हुई, उसके लिए दुनिया में आपको कभी माफी नहीं मिलेगी। आपका नाम हमेशा कुमाता के रूप में याद किया जाएगा। आप संसार में इकलौती उदाहरण होंगी, जिसे कुमाता का दर्जा हासिल होगा।”

कैकेयी को होश आया। राम सामने बैठे थे। कैकेयी गिड़गिड़ाने लगीं, भारी भूल हुई है, पर माफी कैसे मिलेगी?

“माते! हजारों वर्ष बाद कलियुग आयेगा। आज आपकी गलती के लिए लोग आपके नाम से ही नफरत कर रहे हैं, लेकिन तब लोग आपको सजा ना मिले इसके लिए दुआ करेंगे।”

“ तो क्या कलियुग में किसी को उसकी गलती की सजा नहीं मिलेगी?”

“ऐसा कैसे होगा? गलती की सजा तो हर युग में मिलेगी। सजा नहीं मिलेगी तो आदमी का ईश्वर से विश्वास उठ जायेगा।”

***

“माँ, कल जो हुआ?”

“वो तो इन्टरवल है बेटा। कहानी अभी बाकी है।”

(देश मंथन, 09 मई 2015)

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