खुशियाँ बाँटते हैं कपिल

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संजय सिन्हा, संपादक, आज तक :

कल कपिल से मिला। कॉमेडी विद कपिल शर्मा वाले कपिल से। 

आप में से ज्यादातर लोग कपिल को जानते हैं। अपने एक टीवी सीरियल के बूते कपिल आज करोड़ों दिलों पर राज करते हैं। 

मेरे पास रोज नये-नये लोग आते हैं, मेरा उनसे मिलना होता है। लेकिन कपिल से मिलने का मुझे बहुत दिनों से इंतजार था। कल कपिल से जब मैं मिला तो मुझे ऐसा लगा कि मैं कपिल से नहीं, संजय सिन्हा से मिल रहा हूँ। अब भला कोई अपने आप से भी मिलता है?

नहीं, कोई खुद से कभी नहीं मिलता। आदमी दुनिया भर के लोगों से मिलता है, पर उसके पास खुद से मिलने का वक्त नहीं। 

शायद मैं कपिल से नहीं मिलता, तो खुद से भी नहीं मिल पाता।

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कपिल बता रहे थे कि उनके पिता पुलिस में थे। घर में सब-कुछ ठीक चल रहा था। एक दिन पता चला कि कपिल के पिता को कैंसर है। 

जिस दिन घर वालों को यह पता चला, उसी दिन सब-कुछ बदल गया। कपिल बता रहे थे कि कैसे तब वो बच्चे थे। आम बच्चों की तरह वो भी स्कूल जाते थे, खेलते थे, गुनगुनाते थे। 

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मेरी आँखों के आगे मालती अस्पताल में जाती हुई माँ की तस्वीर घूम रही थी। माँ पिताजी के साथ घर से पैदल डॉक्टर लाल के नर्सिंग होम, मालती अस्पताल, में गयी थी। माँ का पेट खराब था, कई दिनों से पेट में दर्द रह रहा था। पर माँ जब वहाँ से लौटी, तो रिक्शा पर थी। 

उन दिनों बायोप्सी की सुविधा शायद उस छोटे-से शहर के अस्पताल में नहीं रही होगी, पर डॉक्टर ने हथेलियों में दस्ताने पहन कर यह पता कर लिया था कि माँ को शायद कैंसर है।

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कपिल बता रहे थे कि पिता की तबीयत खराब होने की खबर के बाद पूरा घर ठहर गया था। कपिल पिता को इलाज के लिए अमृतसर से दिल्ली लेकर आये थे। मैं माँ के साथ पटना से कानपुर जा रहा था।

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ट्रेन धड़धड़ाती हुई चली जा रही थी। 

हम सुबह किसी तरह कानपुर पहुँच गये थे। उसी दिन कानपुर के हैलट हास्पिटल में माँ को ले जाया गया। दोपहर तक डॉक्टर ने बता दिया कि उन्हें कैंसर ही है।

माँ की तबीयत सुधरने का नाम नहीं ले रही थी। उनका वजन लगातार कम हो रहा था। मैंने कहीं कैंसर पर एक विज्ञापन पढ़ लिया कि क्या आपको पता है कि कैंसर के मरीज को कितना दर्द होता है और इसी में बताया गया था कि आप अपनी उँगलियों को दरवाजों के बीच रख कर दबाइए और सोचिए कि इसका दस गुना दर्द कैंसर का मरीज हर मिनट सहता है।

इस विज्ञापन के बाद तो मैं सदमें में आ गया। माँ सारी रात कराहती पर जब भी मैं या पिताजी कमरे में जाते, तो वो एक मुस्कुराहट के साथ उस दर्द को दबाने की कोशिश करती। 

वो पहला मौका था जब मैंने एक कागज के टुकड़े पर लिखा था कि भगवान, मेरी माँ को मौत दे दो।

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कपिल बता रहे थे कि उनके पिताजी भी भयंकर दर्द में हमेशा मुस्कुराते रहते थे। नहीं चाहते थे कि किसी तक उनका दर्द पहुँचे।

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हमारे एंकर ने कपिल से सवाल किया, “आप लोगों को हमेशा हँसाते हैं, खुश रखते हैं। ऐसा सुना है कि जो दूसरों को हँसाते हैं, उनकी खुद की जिन्दगी में बहुत दर्द होता है?”

कपिल एक पल को ठहरे। फिर उन्होंने कहा, “दुख कहाँ नहीं है? दुख किसे नहीं है? आप घर से बाहर निकलिए, उसके बारे में सोचिए जो सुबह से रात तक कठोर श्रम करता है, बस दो वक्त की रोटी के लिए। उसके दुख के बारे में सोचिए। 

क्या होगा, अपने दुख के विषय में सोच कर। 

जो ईश्वर ने दिया है, उसे धन्यवाद कह कर स्वीकार करना ही आदमी अगर अपनी जिन्दगी का फलसफा मान ले, तो दुख कम हो जायेगा। 

मैं किसी को कुछ नहीं दे पाता। जब कुछ नहीं दे पाता तो दुख क्यों दूँ? मेरे पिता ने कहा था, हमेशा खुशियाँ बाँटना। 

मैं खुशियाँ बाँटता हूँ।” 

कपिल खुशियाँ बाँटते हैं। 

संजय सिन्हा खुशियाँ बाँटते हैं। रोने की हजार वजह सबके पास है। जो रोते हैं, वो अकेले हो जाते हैं।

कपिल के पास खुश रहने की एक करोड़ वजह है। एक करोड़ से ज्यादा लोग उन्हें जानते हैं, उनसे प्यार करते हैं। 

मेरे पास भी खुश होने की पंद्रह हजार वजह है। आखिर मेरे पास फेसबुक पर पंद्रह हजार से अधिक परिजन हैं। 

बाकी यही कहना है कि जाहे विधि राखे राम, ताहे विधि रह रहे हैं। 

मैं भी, कपिल भी।     

(देश मंथन, 24 सितंबर 2015)

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