किस्सा-ए-कोलस्ट्रोल

0
217

आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

देखोजी कैसी-कैसी फ्राडबाजी है दुनिया में। कैसा भला सा नाम है कोलस्ट्रोल, जैसे लुईस कैरोल, जैसे पामेला एंडरसन, जैसे शिंडी क्राफर्ड, पर कोलस्ट्रोल की हरकतें देख लो।

एक ज्ञानी हार्ट स्पेशलिस्ट ने बताया कि कोलस्ट्रोल दिल का ट्रैफिक जाम कर देता है।

बड़ी विकट सी कल्पना उभरती है – दिल के एक कोने में इस हसीन की तस्वीर है, दिल के उस कोने में उस हसीन की तस्वीर है, कि कोलेस्ट्रोल कूद लिया है, सबको साफ करता हुआ। खुद जमता हुआ। दिल के ट्रैफिक में कोलस्ट्रोल भभ्भड़ मचाये हुये है। जगह ना मिलने पर दिल का ट्रैफिक जाम करता हुआ, राम नाम सत्य है।

सच, किसी हसीन की तस्वीर तो छोड़ो, तस्वीर के ख्याल से ही कोलस्ट्रोल का हौला बैठ जाता है कि हसीन को जगह दे देंगे, तो कोलस्ट्रोल को निकलने की जगह कैसे मिलेगी। जगह नहीं मिलेगी, तो ट्रैफिक जाम हो जायेगा। मेरी सलाह यह है कि मनचलों, लुच्चों को कोलस्ट्रोल कोर्स के तहत खौफनाक तरीके से यह समझा दिया जाये कि कोलस्ट्रोल की निकासी की राह ठीक-ठाक रखनी है, तो दिल को खाली रखो, किसी हसीन का ख्याल तक न करो।

एक हिट शेर है ना-बाद मरने के मेरे घर से ये सामाँ निकला, चंद तस्वीरे बुताँ और कुछ हसीनों के खतूत

ये शेर अब कुछ इस तरह से रिवाइज किया है

-बाद हार्ट अटैक के दिल से ये सामाँ निकला, कुछ हसरते नाकाम और कुछ कोलस्ट्रोल।

खैर, मेरे मित्र लोग खुश न हों, मुझे हार्ट अटैक नहीं हुआ है। दिल के एक्सपर्टों से यृँ ही बातचीत हो गयी।

पुराना वक्त अच्छा था, जब कोलस्ट्रोल नहीं होता था।

तब दिल में कइयों को जगह दी जा सकती थी। इधर जैसे-जैसे नालेज बढ़ी है, इंसान को नये-नये टेंशनात्मक तरीकों से डराने का जुगाड़ हो गया है। एक कोलस्ट्रोल फ्री बटर का पैकेट देख रहा था, उसमें लिखा था – रिफाइन्ड वेजीटेबल आयल्स, स्किम्ड मिल्क पाऊडर, कामन साल्ट, इमल्सिफाइर्स, स्टेबलाइजर्स, क्लास टू प्रीजर्वेटिव्स, सीक्वेस्टरिंग एजेंट्स एंड एंटीआक्साइडेंट्स, विटामिन ए नाट लैस दैन 30 आईयू-जी, विटामिन डी 2 आईयू-जी, विटामिन ई 3 एमजी।

दो-चार शब्दों के अलावा इसमें कुछ समझ नहीं आया। जिसे सिर्फ मक्खन समझकर खाया जा रहा है, उसमें एजेंट्स पड़े हैं, सीक्वेस्टरिंग एजेंट। दूसरे ज्ञानी ने बताया कि इससे भी खतरा है। खतरा सिर्फ आईएसआई के एजेंट से नहीं है, सीक्वेस्टरिंग एजेंस से भी है।

खतरे कोलस्ट्रोल में तो हैं ही, उसकी अनुपस्थिति में अन्य खतरे हैं।

कोलस्ट्रोल से बचे बंदा, तो क्या पता डेंगू मार दे। डेंगू से बचो, तो क्या पता स्वाइन फ्लू ही निपटा दे। इस सबसे बच ही जाये, तो क्या पता किडनैप हो जाये। किडनैप न हो, तो क्या पता भारतीय रेल में दुर्घटनाग्रस्त हो जाये। रेल से बचे, तो सीरियल किलर मार दे। सीरियल किलर न मारे, तो उस वाले सीरियल की बोरियत ही किलर हो जाये, जो पिछले दस सालों से लगातार चले जा रहा है।

अजी इंडिया में इतनी वजहें हैं मरने की, अकेले कोलस्ट्रोल को क्या ब्लेम करें।

तो क्या करें, भरपूर मक्खन खाकर कोलस्ट्रोल जनित हार्ट अटैक से मर जायें। नहीं, हार्ट अटैक में यही आफत है कि काम इतना चटपट हो जाता है कि मरने वाला मरने का मजा भी नहीं ले पाता। वैसे, मरने का मजा तो सिर्फ कैंसर में होता था, जिसमें बंदा पुराने दौर के राजेश खन्ना युग के हीरो की तरह कई गाने गाते हुआ एकाधिक सुंदरियों को प्रभावित करने का डौल जमा लेता था।

राजेश खन्ना की आनंद देखकर मैंने भी एकबार इच्छा व्यक्त की, कि हाय मौत हो, तो कैंसर से। इस पर घर वालों ने बहुत डांटा कि बहुत खर्च हो जाता है कैंसर में, इतने पैसे कहाँ से आयेंगे। अधिकांश लेखकों के घऱ वाले सौंदर्यबोध को नहीं समझते, कैंसर के खर्च को देखते हैं, इसके कला पक्ष को नहीं। घर वालों ने कहा कि मरना हो, तो रोड एक्सीडेंट में मरो, या हार्ट अटैक में, न्यूनतम खर्च में। फिर अमेरिका स्थित सारे रिश्तेदारों ने कहा, देखो गर्मी की छुट्टियों में मरना, वरना नहीं आ पायेंगे। अमेरिका में अपने मरने की छुट्टी भी नही मिलती।

सो साहब जी रहे हैं। लेखक की आत्मा बहुत सख्त होती है, अरे जिसे प्रकाशकों की बेरुखी, रायल्टी भुगतान का विलंब, आलू-उड़द के बढ़ते भाव नहीं मार सकते, उसे कोलस्ट्रोल क्या मार लेगा। चलो दिल खोलकर मक्खन खायें। कोलस्ट्रोल तेरी ऐसी-तैसी।

(देश मंथन, 19 मार्च 2015)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें