आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :
यह निबंध कक्षा आठ के उस बच्चे की कापी से लिया गया है, जिसने ग्रीष्मकालीन क्रियेटिव राइटिंग कंपटीशन में टाप किया है-
गर्मी में जैसा कि सब जानते हैं कि गर्मी पड़ती है। सूरज गर्मी में भी निकलता है और सर्दी में भी। यानी सूरज पर गर्मी-सर्दी का कोई असर नहीं पड़ता। सूरज रोज अपने घर से निकलता है और आ जाता है। इससे पता चलता है कि मिसेज सूरज से सूरज की पटती नहीं है और उसे घर पर रहना अच्छा नहीं लगता। घर से बाहर रहकर जो लोग अति ही कर्मठ दिखायी देते हैं, दरअसल उनकी अपनी बीबियों से नहीं पटती है। पति को कर्मठ बनाने में कलहप्रिय पत्नियों का भारी योगदान रहता है। सूरज की कर्मठता से हमें यह समझ लेना चाहिए।
गर्मी का एक भारी फायदा उधार लेने वालों को होता है। गर्मी से बचने के लिए सिर, मुँह पर साफा-गमछा आदि बाँधने के चलने को सामान्य माना जाता है। अच्छा-भला सा आदमी डाकू लगने लगता है, इसका फायदा यह होता है कि उधार देने वाली की गली से मजे से गुजर जाओ, उधार देयक पकड़ ही नहीं पाता। बल्कि तरकीब यूँ है कि बंदे को मार्च में उधार ले लेना चाहिए, फिर मजे से अप्रैल से लेकर सितंबर तक गर्मी की आड़ में गमछाबाजी और गमछे की आड़ में उधारबाजी की जा सकती है।
गमछे की आड़ में उचक्केगिरी से लेकर छेड़ाखानी कुछ भी की जा सकती है। और तो और नेतागिरी तक की जा सकती है। जिसे करके बंदा आम तौर पर मुँह दिखाने काबिल नहीं होता। पर साफे में नेतागिरी करके बंदा सेफ रहता है, क्योंकि गमछे के लपेटे में उसने मुँह कभी दिखाया ही नहीं था।
गर्मी नौजवान छेड़कों के लिए खासी हेल्पफुल साबित होती है, यह बात सर्दी के बारे में नहीं कही जा सकती। सर्दियों में कोहरा वगैरह के चक्कर में छेड़कों को दिक्कत आती है। एक बार तो कोहरे के लपेटे में एक छेड़क ने अपने बड़े भाई को ही छेड़ दिया था, जिसके बाल पोनी टेल टाइप के हैं। बहुत पिटाई हुई। ऐसी किसी किस्म की पिटाई की आशंका गर्मी में नहीं होती। खूब तसल्ली से, पहचान कनफर्म करके छेड़क अपने काम को अंजाम दे सकते हैं।
इस तरह से हम कह सकते हैं कि छेड़कों, उधार लेनेवालों, उचक्कों और नेताओँ के लिए गर्मी बहुत रोचक, चकाचक साबित होती है। अगर आप इनमें से कुछ भी नहीं हैं, तो ये आपकी प्राबलम है, गर्मी की नहीं।
(देश मंथन, 22 अप्रैल 2016)