संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
यह भी तारीखों का ही एक खेल है कि बहुत साल पहले मैं अपने छोटे भाई के साथ 19 अप्रैल की सुबह बैठा हुआ था और अगले दिन होने वाली अपनी शादी की चर्चा कर रहा था। मेरी शादी में मेरा छोटा भाई ही माँ बना बैठा था, पिता बना बैठा था, सखा बना बैठा था।
वो मुझसे चार साल छोटा था, लेकिन उस दिन वो मुझसे चालीस साल बड़ा नजर आ रहा था। उसके चेहरे पर पतली-पतली मूँछें आनी शुरू ही हुई थीं, पर वो विवाह के बाद की मेरी जिन्दगी पर मुझे कुछ इस तरह ज्ञान दे रहा था, जैसे उसे पूरी जिन्दगी का अनुभव हो।
मेरा भाई था इसलिए मैं ऐसा नहीं लिख रहा, हकीकत यही है कि मेरा भाई सचमुच एक बेहतरीन इंसान था। वो सचमुच एक पवित्र आत्मा था। मैं ऐसा इसलिए भी नहीं कह रहा क्योंकि वो अब इस संसार में नहीं, यह सत्य है कि ऐसी आत्माएँ मानव शरीर में जब आती हैं, तो सिर्फ अपने कर्मों का लेखा-जोखा पूरा करने ही आती हैं और ‘जीवात्मा जगत के नियम’ के तहत वो अपना हिसाब पूरा करके जल्दी यहाँ से चली जाती हैं।
ये क्या?
कल मेरी शादी की सालगिरह है। मुझे आज प्यार, रोमांस या कुछ ऐसा लिखना चाहिए था, जिससे तन-मन में गुदगुदी हो।
पर मैं तो शरीर से परे आत्मा पर चला गया हूँ। कल मैंने खोरशेद भावनगरी की किताब ‘द लॉज ऑफ द स्पिरिट वर्ल्ड’ की चर्चा की थी। मैंने आपको बताया था कि दुनिया में यह पहली किताब है जिसे शरीर ने नहीं, आत्मा ने लिखा है। मैंने आपको यह भी बताया था कि खोरशेद भावनगरी नामक महिला के दो बेटे थे, और एक सड़क हादसे में दोनों की मौत हो गयी थी। दोनों माँ से बहुत जुड़े हुए थे, माँ दोनों से बहुत जुड़ी हुई थी। मृत्यु के बाद दोनों बेटों ने किसी और के माध्यम से माँ से संपर्क स्थापित किया और माँ को जीवात्मा जगत के विषय में बतलाया।
मैंने यह किताब तब नहीं पढ़ी थी।
तीन साल पहले अपने भाई के अचानक निधन के बाद मैंने एक रात सपना देखा कि मेरा भाई मुझसे मिलने आया है और अपने कंधे पर बिठा कर मुझे अपने साथ वहाँ ले जा रहा है, जहाँ वो मृत्यु के बाद रह रहा था। वो मुझे बहुत तीव्र गति से जमीन के बहुत नीचे लेकर चला जा रहा था। भाई की पीठ पर मैं अति आनंद से भरा हुआ था। वो मुझे कुछ ही पलों में उस संसार में ले कर पहुंच गया, जहाँ वो रह रहा था। मैंने अपनी आँखों से देखा कि वहाँ ढेरों लोग हैं, जो फर्श पर पड़े हुए थे, किसी के हाथ कटे हुए थे, किसी के पाँव। लोग रेंग रहे थे। कुछ लोग चल रहे थे। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी और पृथ्वी पर हूँ।
मुझे मेरा भाई किसी के पास ले गया, जिसका चेहरा मुझे नजर नहीं आ रहा था, पर जब मैं उससे मिला तो उसने मुझसे कहा कि तुम्हें यहाँ आने की जरूरत नहीं। उसने मेरे भाई से कहा कि तुम इसे वापस ले जाओ।
मैं बहुत हैरान था। मैं क्यों अपने भाई के पास नहीं रह सकता।
मेरे भाई ने मुझे दुबारा अपनी गोद में उठाँया और कहा कि चलो मैं तुम्हें वापस पहुँचा देता हूँ।
मैंने अपने भाई से पूछा कि तुम लोग यहाँ कैसे रहते हो?
भाई ने कहा कि यहाँ रहना बहुत आसान है। यहाँ कोट मुक्ति मुद्रा चलती है। ये वो मुद्रा है जिसे हम सिर्फ पृथ्वी पर अर्जित कर सकते हैं। फिर उसने मुझे बताया कि हम जिस मुद्रा को पृथ्वी पर अर्जित करते हैं, वो यहाँ नहीं चलती। इस संसार में सिर्फ कोट मुक्ति मुद्रा चलती है, और वो हम अपने कर्म से अर्जित करते हैं।
“आप सिर्फ कोट मुक्ति मुद्रा ही अर्जित करने के विषय में सोचिएगा।”
“तुम्हारे पास है ये मुद्रा?”
“हाँ, इसीलिए तो मैं यहाँ खुश हूँ। पर जिनके पास नहीं है, जिन्होंने उसे अर्जित नहीं किया, वो यहाँ रेंग रहे हैं और बहुत तकलीफ में हैं।
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यह एक सपना था। मैं पसीने से तर-बतर था। मैंने अपनी पत्नी को गहरी नींद से जगाया और पूरे सपने के विषय में बताया।
जाहिर है हम रोज कुछ न कुछ सपने देखते हैं, उस दिन भी मैंने एक सपना देखा था। मैंने ये बात किसी से नहीं बताई, लेकिन उस सपने के बाद मुझे लगने लगा था कि मैं अपने भाई से मिल आया हूँ, उसका हाल पूछ आया हूँ। मुझे अपने बिस्तर के पास से बहुत देर तक भाई की खुशबू आती रही। मेरे इस अनुभव को न प्रमाण की जरूरत थी, न मैं प्रमाणित कर सकता था।
फिर मुझसे कई लोगों ने इस किताब ‘जीवात्मा जगत के नियम’ के नियम की चर्चा की।
पिछले हफ्ते जबलपुर की यात्रा में मुझे जब ये किताब मिली तो मेरा यकीन कीजिए कि मेरे कई सवालों के जवाब मुझे मिल गये।
कल मैंने जब जीवात्मा जगत की चर्चा यहाँ फेसबुक पर की, तो कुछ लोगों ने सवाल उठाए कि क्या आत्माओं की फैक्ट्री है ऊपर? आज दुनिया की आबादी सात अरब है, पहले तो सिर्फ आदम और हव्वा ही धरती पर आए थे, फिर इतने लोग कैसे?
सवाल के जवाब पर कई पोस्ट लिख सकता हूँ। पर आज इतने से काम चला रहा हूँ कि जैसे अनंत ब्रह्मांड है, वैसे ही अनंत आत्माएँ हैं। अनंत योनियाँ हैं। सिर्फ इतना मान लीजिए कि डायनासोर का शरीर भी मनुष्य बन गया। करोड़ों मच्छर भी मनुष्य बन गए। दरअसल मनुष्य बनना और नहीं बनना आत्मा की इच्छा पर है। पर यह उसकी इच्छा पर नहीं कि वो मनुष्य के शरीर में किस तरह का जीवन यापन करेगा। यह सिर्फ उसके कर्म पर निर्भर करेगा।
मनुष्य के रूप में आत्मा का वास निकृष्टतम योनी है, लेकिन यही एक योनि है जिसमें आप कर्म के ज़रिए परलोक के लिए कुछ अर्जित कर सकते हैं। क्योंकि यह इकलौती योनि है, जिसमें कर्म कर पाने की गुंजाइश है, इसके अलावा किसी और योनि में यह मुमकिन नहीं, इसीलिए इस योनि की अहमियत बढ़ जाती है। मतलब यह योनि कर्म प्रधान है, जिसमें अपने कर्मों के बूते हम यह जन्म और अगला जन्म, उसका अगला जन्म दुरुस्त कर पाते हैं।
इस संसार को अलविदा कह चुका मेरा भाई कह रहा था कि कोट मुक्ति मुद्रा सिर्फ अच्छे कर्मों से अर्जित की जा सकती है।
खोरशेद भावनगरी के मर चुके दोनों बेटे अपनी माँ की उंगलियों से किताब लिखवा रहे थे कि हम जो बोते हैं, वही काटते हैं।
कर्म आप पर एक तरह का कर्ज है या एक वरदान है। कर्म करने के लिए किसी से जबर्दस्ती नहीं की जा सकती, स्वतंत्र इच्छा की यही प्रवृति है।
आज पोस्ट बड़ी न हो, इसलिए सिर्फ दो सवालों के जवाब किताब से लेकर आपको देता चलूँ-
1. कर्म किस प्रकार संचालित होता है? क्या सकारात्मक और नकारात्मक कर्म एक दूसरे को निरस्त कर सकते हैं?
दोनों कर्म एक दूसरे को निरस्त नहीं कर सकते। आपको सकारात्मक कर्मों के बदले अध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त होता है। मेरे भाई के शब्दों में यही कोट मुक्ति मुद्रा है। और बुरे कामों के बदले सजा भुगतनी पड़ती है। अच्छे और बुरे कर्म एक दूसरे से बिल्कुल अलग हो सकते हैं। कर्म केवल आपके कार्यों के कारण ही नहीं होते, बल्कि आपके विचार और शब्दों के कारण भी संचित होते हैं।
2. व्यक्ति नकारात्मक कर्म किस प्रकार भोगता है?
व्यक्ति को अपने नकारात्मक कर्म अपने मानसिक, शारीरिक या स्वास्थ्य, परिवार, धन, मुकदमे से संबंधित समस्याओं से होने वाले भावनात्मक कष्ट के रूप में भोगना पड़ता है। बीमारी ऐसा विकल्प हो सकता है, जिसे आपके कर्मों का ऋण चुकाने के रूप में चुना गया हो। नकारात्मक कर्म के पीछे यही तथ्य है कि आप इस पार्थिव जीवन का उपयोग अपना ऋण चुकाने के लिए कर रहे हैं। यह ऋण न केवल आपके पिछले जन्मों में उत्पन्न हुआ था, बल्कि आपके इस जन्म में भी हुआ है। मन में यह धारणा न रखें कि आप केवल अपने पिछले जन्मों के बुरे कर्मों का हिसाब चुका रहे हैं। हो सकता है कि आप पृथ्वी पर एक बहुत छोटा कार्मिक ऋण लेकर आए हों, लेकिन यदि आप इस वक्त बुरे कर्म कर रहे हैं तो आप इस समय जीवन के दौरान नकारात्मक कर्मों का ऋण अपने ऊपर बढ़ा रहे हैं।
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ऐसा तो दुनिया के सभी धर्म ग्रंथों में लिखा है कि कर्म ही वो कारक है जिसकी वजह से हमें दुखों का सामना करना पड़ता है। यह दुख ऐसी चीज है, जिसे हम यजीवात्मा जगत के नियम के अनुसार यह बुरे कर्मों को सुधारने का मौका होता है। मनुष्य के जन्म में ही अगर इसे सुधार लिया जाए, तो बेहतर होता है, क्योंकि आत्मा के सफर में यह अवधि बहुत लंबी होती है। क्योंकि किसी और रोल में आपके पास कर्म का अधिकार नहीं होता, इसलिए बहुत से लोग मनुष्य जन्म को खुद चुनते हैं, ताकि वो कर्म के जरिए कम समय में खुद को को बुरे कर्ज से मुक्त कर सकें।
पर यहाँ आकर हम क्योंकि अपनी पूर्व यादों को खो देते हैं, इसलिए फिर वही गलती दुहराने लगते हैं, जिससे मुक्ति की कामना लेकर हम आये हैं।
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विषय गूढ़ है। पर यही सत्य है।
कोई इसे इसी जन्म में समझेगा, कोई करोड़ों जन्मों के बाद। विकल्प नहीं है। समझना ही होगा। समझना ही होगा कि ये कर्म ही हैं जो हमारी कमाई हैं।
आप चाहे गीता पढ़ लें, बाइबल पढ़ लें, कुरआन पढ़ लें, गुरुग्रंथ पढ़ लें या फिर जीवात्मा जगत के नियम। या फिर मेरे सपने पर यकीन कर लें।
अज्ञानी इस मार्ग पर अंधविश्वास के सहारे बढ़ता है, ज्ञानी तर्क के सहारे। मंजिल दोनों की एक ही होती है। आज हो, कल हो या फिर कई हजार साल बाद।
(देश मंथन, 20 अप्रैल 2016)