संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
माँ को पता था कि वो अब इस संसार से चली जाएगी। लेकिन माँ विचलित नहीं थी। उसे मृत्यु का खौफ नहीं था। माँ मुझे समझाती थी कि मौत के बाद का संसार किसी को नहीं पता, लेकिन मैंने ऐसा महसूस किया है कि यह घर वापसी की तरह है।
मृत्यु घर वापसी?
माँ कहती थी कि यह इतना अटल सत्य है कि इस विषय पर इससे बेहतर सकारात्मक सोच हो ही नहीं सकती। मैं पूछता था कि माँ, अगर यह घर वापसी ही है, तो फिर किसी की जुदाई पर आदमी इतना विचलित क्यों होता है। लोग घर वापसी से डरते क्यों हैं?
माँ का इस संबंध में बहुत स्पष्ट जवाब था कि जिन्दगी के सफर में आदमी कई अनजान लोगों से मिलता है, ये मुलाकात एक रिश्ता में तब्दील होता है। रिश्ता ही माया है। माया ही विचलित होने का कारण है। और रही बात घर वापसी से डरने की, तो डरना उसे चाहिए, जिसने कुछ गलत किया हो।
“माँ गलत क्या है?”
“जिसे मन कह दे कि गलत है, वही गलत है।”
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मुझे कई बार डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम से मिलने का मौका मिला। कलाम साहब कहते थे कि हर आदमी की एक जिम्मेदारी होती है। जब वो जिम्मेदारी पूरी हो जाती है, तो आदमी अपने घर लौट जाता है। मैंने कलाम से पूछा था कि इस उम्र में आप इतनी यात्रा करते हैं, इतने शैक्षणिक संस्थानों में लेक्चर देते हैं, लोगों को विज्ञान से जोड़ते हैं, थकते नहीं?
कलाम ने कहा था, “जिस दिन यह शरीर थक जाएगा, अपने आप गिर जाएगा। फिर उसमें उठने की ताकत नहीं रहेगी और मैं घर लौट जाऊँगा।”
“आप इतने बड़े वैज्ञानिक रहे हैं, देश के राष्ट्रपति रहे हैं, आपके पास किसी चीज की कमी नहीं। फिर इतनी तकलीफ खुद को क्यों देते हैं?”
“मेरा कुछ भी नहीं है। न मेरा कोई परिवार है, न मेरे पास कोई संपति है। यह देश मेरा है, यहाँ के लोग मेरे हैं। मैं लोगों को सिर्फ उनका दिया लौटा रहा हूँ और फिर मैं जिस तरह आया था, उसी तरह एक दिन चला जाऊँगा। वह मेरी घर वापसी होगी।”
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कल मेरी मुलाकात तब्बू से हुई।
तब्बू फिल्मी कलाकार हैं। मैंने कल लिखा था कि तब्बू शायद इकलौती ऐसी कलाकार हैं, जिनसे मैं अब तक नहीं मिला था। मैंने यह भी लिखा था कि फिल्म माचिस देखने के बाद मुझे वो अच्छी लगने लगी थीं और इस हद तक मैं उनसे मन ही मन जुड़ गया था कि मैं मिलने में संकोच करने लगा था। लेकिन कल अजय देवगन ने मेरा उनसे परिचय कराया। मैं यही चाहता था कि जब मैं तब्बू से मिलूँ तो कोई मेरा उनसे परिचय कराए। कोई ऐसा व्यक्ति, जो मुझे जानता हो, तबू को भी जानता हो। और इस काम के लिए मुझे कई साल इंतजार करना पड़ा।
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तब्बू आम तौर पर फिल्मों के प्रमोशन में कहीं नहीं जातीं। जिस वक्त वो हमारे दफ्तर आई थीं, पंजाब के गुरुदासपुर में आतंकवादियों ने हमला बोल दिया था। एक थाने में कुछ लोगों को बंधक बना लिया था। टीवी पर हर जगह यही खबर चल रही थी। तब्बू ने मुझसे मिलते ही पूछा कि मुठभेड़ खत्म हुई या नहीं।
मैं चौंका। यह पहला मौका था, जब किसी फिल्मी कलाकार को मैंने अपनी फिल्म के अलावा ऐसी खबरों पर चर्चा करते हुए सुना। तब्बू ने बताया कि जब फिल्म माचिस में वो शूटिंग कर रही थीं, तब पहली बार उन्होंने आतंकवाद को महसूस किया था। वो जानती हैं कि आतंकवाद क्या होता है।
मैं चुप था। फिर मैंने उनसे उनकी आने वाली फिल्म पर बात की।
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मैंने तब्बू से कहा कि आप अकेली ऐसी हीरोइन हैं, जिससे मैं अब तक नहीं मिला था।
तब्बू ने कहा कि मुझे पता है, आप मुझसे मिलना चाहते थे। इसलिए मैं तबीयत खराब होने के बाद यहाँ आई हूँ।
“मैंने माचिस देखी थी, तब से आपका फैन हूँ।”
“मुझे पता है।”
ओह! मैंने जरूर किसी से इस बात की चर्चा की होगी, और यकीनन उनके यहां आने से पहले उन्हें यह सब बता दिया गया है।
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जब तब्बू से मिल रहा था, तब कलाम साहब की खबर नहीं आयी थी। मैंने तब्बू से पूछा कि जब आप आतंकवाद पर फिल्म में काम कर रही थीं, तो क्या आपको एक बार भी डर लगा?
“डर? मृत्यु से? वह तो घर वापसी है। मृत्यु से आदमी को नहीं डरना चाहिए। आदमी को डरना चाहिए उस काम से, जो उसे वहाँ जाने पर शर्मिंदा करे।”
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अजीब इत्तेफाक था।
माँ भी यही कहती थी। कलाम साहब ने भी यही कहा था। तब्बू ने भी यही कहा।
(देश मंथन 28 जुलाई 2015)