हुमायूँ का मकबरा : इससे मिली थी ताजमहल बनाने की प्रेरणा

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

दिल्ली का हुमायूँ का मकबरा ताज महल के जैसा खूबसूरत है। कुछ सामन्यताएँ ताजमहल और हुमायूँ के मकबरे में।

दोनों चार बाग शैली में बने हैं। यानी मकबरे के चारों तरफ चार बागीचे हैं। पर हुमायूँ का मकबरा पहले बना है, ताज महल बाद में। ताज संगमरमर का है तो हुमायूँ का मकबरा लाल पत्थर यानी रेड स्टोन का। ये लाल पत्थर लाया गया राजस्थान के धौलपुर जिले में बाड़ी से। जब अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा दिल्ली आये तो उनके पास आगरा जाकर ताज महल देखने का वक्त नहीं था। तब उन्हें हुमायूँ का मकबरा दिखाया गया।

दिल्ली में दर्जनों किले और मकबरों के साथ मुगलकालीन बाग हैं। इन बागों के कारण दिल्ली में हरियाली बची हुई है। अगर ये नहीं होते तो बिल्डर यहाँ भी कंक्रीट के जंगल खड़े कर चुके होते।

मकबरे का निर्माण हुमायूँ की मृत्य वर्ष 1556 के नौ साल बाद उसकी  शोकग्रस्त बेगा बेगम (हमीदा बानू) ने करवाया। इसका निर्माण 1565 से 1572 के मध्य हुआ। इस मकबरे का निर्माण 120 वर्ग मीटर के चबूतरे पर हुआ है। मकबरे का भवन दो मन्जिला है। पहली मन्जिल पर चढ़ने के लिए चारों तरफ से सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इसकी कुल ऊँचाई 47 मीटर है। मकबरे के प्रथम तल पर चारों तरफ विशाल बरामदा बना हुआ है। इन बरामदों में चौबारे बने हैं। यहाँ से बागों का नजारा सुन्दर दिखायी देता है। यह देश की ऐसा उत्कृष्ट निर्माण है जिस पर फारसी शैली का प्रभाव दिखायी देता है। मकबरे के अन्दर हुमायूँ तो सो ही रहा है। मुगल परिवार के सौ लोगों की कब्रें इसके अन्दर ही बनायी गयी हैं। इसलिए हुमायूँ के मकबरे को मुगलों का शयनागार भी कहा गया है। यहाँ हुमायूँ के अलावा सात मुगल बादशाह की कब्रे हैं। यहाँ पर हुमायूँ की बेगम बेगा, हमीदा बानो, दाराशिकोह आदि की भी कब्र है।

मकबरे में लाल पत्थर के साथ सफेद संगमरमर का भी इस्तेमाल किया गया है। छत पर छोटी-छोटी छतरियाँ हैं हो चमकदार नीली टाइलों से टकी हैं। सफेद संगमरमर के गुंबद पर छह मीटर ताँबे की स्तूपिका बनी है। इस मकबरे के वास्तुकार मिराक मिर्जा गियासी थे।

हुमायूँ के मकबरे के ठीक सामने चार बाग में विशाल तालाब भी बनाये गये हैं। इन तालाब की प्रेरणा कुरानशरीफ से मिली है। ऐसे बाग की कल्पना जन्नत के नजारे में की गयी है। मकबरे के चारों तरफ बाग में कई किस्म के हरे-भरे पेड़ हैं। इनमें नीबू के पेड़ भी खूब हैं। दिल्ली आने वाले विदेशी सैलानी हुमायूँ का मकबरा जाना नहीं भूलते। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित इस इमारत में प्रवेश के लिए टिकट है। मुख्य प्रवेश द्वार के पास एक छोटा सा संग्रहालय भी है। कहा जाता है हुमायूँ के पोते शाहजहाँ तो आगरे में ताजमहल बनवाने की प्रेरणा हुमायूँ के मकबरे से ही मिली। 1993 में हुमायूँ के मकबरे को युनेस्को ने विश्व विरासत के स्थलों की सूची में शामिल किया।

मकबरे को बनाने के लिए इस जगह का चयन इसलिए किया गया कि क्योंकि यह महान सूफी सन्त हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास था। दूसरा बड़ा कारण था इसका यमुना नदी के तट पर होना। हालाँकि अब यमुना की धारा थोड़ी दूर चली गयी है।

ईशा खां नियाजी का मकबरा 

हुमायूँ के मकबरे के परिसर में दक्षिणी कोने पर ईशा खां नियाजी की भी कब्र है। ईशा खां नियाजी अफगान शासक शेरशाह सूरी के दरबारी थे। उनका मकबरा सासाराम में स्थित शेरशाह सूरी के मकबरे की ही तर्ज पर अष्टकोणीय वास्तु शैली में बनाया गया है। इस मकबरे का निर्माण 1547 में हुआ। यानी ये हुमायूँ के मकबरे से ज्यादा पुराना है। ईशा खां ने मुगलों के साथ लंबी लड़ाई लड़ी थी। उनके अष्टकोणीय मकबरे के बाहर अष्टकोणीय उद्यान भी बना है।

अरब सराय

हुमायूँ के मकबरे के परिसर में अरब सराय बना है। इसे बेगा बेगम ने 1560-61 में बनवाया था। इसमें 300 अरब से आये शिल्पियों के रहने का इंतजाम था। इन शिल्पियों ने ही हुमायूँ के मकबरे का निर्माण कराया।

(देश मंथन, 21 मई 2015)

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