संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
आपके पास एक ऐसी चीज है जो हमेशा साथ है लेकिन आप उसे जान कर भी पहचानते नहीं । आप दिन में सौ बार उसकी चर्चा करते हैं, सौ बार उससे बातें करते हैं, सौ बार उसकी सुनते हैं, सौ बार उसकी अनदेखी कर देते हैं पर उसी की तलाश में आप पूरी जिन्दगी भटकते रह जाते हैं।
आप खुशी तलाशते हैं। आप सुख तलाशते हैं। आप ईश्वर को तलाशते हैं। आप सत्य को तलाशते हैं। आप वो सब तलाशते हैं, जो आपके भीतर है, पर आप उसे नहीं पहचानते।
अब आप कहेंगे, संजय सिन्हा भूमिका बनाना छोड़ो और मुद्दे की बात करो। तुम बात करो उस चीज की, जिसके विषय में तुमने कहा है कि सबके पास है पर सब उसी की तलाश कर रहे हैं।
तो सुनिए। मेरे प्यारे परिजनों, वो चीज है ‘मन’।
आपके पास एक ‘मन’ है। आप रोज कहते हैं कि आज ये खाने का ‘मन’ है, आज ये खाने का ‘मन’ नहीं। आज घूमने जाने का ‘मन’ है, आज कहीं जाने का ‘मन’ नहीं। आज उनसे मिलने का ‘मन’ कर रहा है, मेरा उनसे कभी मिलने का ‘मन’ नहीं। मेरा ‘मन’ है कि मैं ये बनूँ, मेरा ‘मन’ नहीं है कि मैं वो बनूँ।
क्या आप जानते हैं ये मन क्या है? अगर मैं आपसे पूछ बैठूं कि ‘आपका मन’ मतलब क्या तो आप गहरी सोच में डूब जाएंगे। आप सोचते रह जाएंगे पर आप नहीं बता पाएंगे कि मन क्या है?
आप अंग्रेजी, उर्दू, रूसी, जापानी, फ्रेंच और दुनिया की ढेर सारी भाषाओं में ‘मन’ का अर्थ तलाशने लगेंगे पर आपको कहीं ‘मन’ का यथोचित अर्थ नहीं मिलेगा।
कमाल है, जिस शब्द का आप जाने-अनजाने इतनी बार इस्तेमाल करते हैं, उसे आप बयाँ नहीं कर पाते।
उर्दू, रूसी, जापानी, फ्रेंच की बात छोड़िए। आप अंग्रेजी में इस शब्द का अर्थ ढूंढ कर दिखलाइए।
अंग्रेजी में इसका अर्थ मिलेगा-
Gut, Headpiece, Heart, Imagination, Inside, Mind, Soul, subject, Psyche, Good Sense. इसके अलावा और भी ढेरों शब्द मिल जाएंगे, जिन्हें अंग्रेजों ने मन के रूप में परिभाषित किया है, पर आप जानते हैं कि जब आप ये कह रहे होते हैं मेरा ‘मन’ नहीं मान रहा तो इसका मतलब अंग्रेजी के किसी एक शब्द के करीब से होकर भी नहीं गुजर रहा होता है।
जैसे ही आप किसी से कहते हैं कि तुम्हें देखते ही मेरा ‘मन’ खिल गया, तो क्या आप इसे गट, हेडपीस, हार्ट, इमैजिनेशन के करीब पाते हैं?
नहीं। इसका मतलब मन वो भाव है, जो आपका सबसे बड़ा साथी है। और आपका सबसे बड़ा साथी आपका ईश्वर है।
धर्म शास्त्रियों ने ईश्वर को एक माना है। मुझे लगता है कि ‘परमात्मा’ सात अरब हिस्सों में बंट कर दुनिया की सात अरब आबादी रूप में ‘आत्मा’ के रूप में समाहित है। यही मन है।
मन के रूप में हर व्यक्ति में वही ईश्वर बसा रहता है। इसीलिए जब हम कोई गलती करते हैं, तो हमारा मन कहता है कि ये गलत है। जब हम कोई बुरा काम करते हैं तो मन हमें एक बार रोकता है। मन कहता है कि ये पाप है। जब आप किसी काम को करके कहते हैं कि मन खुश हुआ, तो वो यकीनन ईश्वर का संदेश होता है कि आपने सही काम किया है।
पर हम में से बहुत से लोग मन की अनदेखी करते हैं। जब मन की अनदेखी करते हैं, तो हम ढेरों गलतियां करते हैं। बाद में हम अपनी गलतियों के लिए तर्क ढूँढ लेते हैं और खुद को दुनिया की निगाह में सही साबित करने की कोशिश करते हैं। पर फिल्म चित्रलेखा में ‘मन’ को बहुत सारगर्भित अर्थ में परिभाषित किया गया है। एक गाने के माध्यम से जो कहा गया है, वो सत्य है।
“तोरा मन दर्पण कहलाए…।”
दरअसल मन ही आत्मा है। मन ही ईश्वर है। मन ही सत्य है। मन ही प्रेरणा है।
इसीलिए कहा जाता है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा। यानी मन वो लिटमस पेपर है, जिसमें अपने भीतर की अच्छाई और बुराई हम परख लेते हैं। इसीलिए जब हम किसी को धोखा देते हैं तो हम भले खुश हो लेते हैं, पर हमारा मन खुश नहीं होता। वो हमें स्पष्ट सिग्नल भेजता है कि ये गलत किया तुमने। हम उसकी अनदेखी कर देते हैं।
जब हम उसकी अनदेखी कर देते हैं, तो कैमरे के सामने खींची जाने वाली तस्वीर भले दुनिया को मुस्कुराती हुई दिखती हो, पर हक़ीकत में वो मन उदास होता है।
जब हम उसकी अनदेखी कर देते हैं, तो दुनिया के सामने हम भले अपने रिश्तों के बीच घिरे रहते हैं, पर हक़ीकत में हम तन्हा होते हैं।
जब उसकी अनदेखी कर देते हैं, तो भले हम विश्व विजेता होते हैं, पर दरअसल हम हारे हुए होते हैं।
जब हम उसकी अनदेखी कर देते हैं, तो भले हमारा चेहरा चमकता हुआ नज़र आए, पर वो होता बुझा हुआ ही है।
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मन को पहचानिए। वो आपका सबसे बेहतरीन दोस्त है। अपने दोस्त के बारीक संदेशों को पढ़ने और समझने की आदत डालिए। वो जो कहेगा, सही कहेगा। ज़रूरत है उसके कहे को सही मायने में पढ़ पाने की।
याद रखिए, मन का दोष ही तन भुगतता है। मन जो कहता है, तन उसका वाहक बनता है। जो मन की बात सुनते हैं और ठीक से समझते हैं, वो कभी गलत नहीं होते। मन को तलाश लिया मतलब ईश्वर को तलाश लिया।
मन आपके तन का पहरेदार है। मर्जी आपकी कि आप उसे कितना सजग रखते हैं। मन सजग नहीं रहा तो चोर तो तन में घुस ही जाएगा।
मन के पहरेदार को मजबूत कर लीजिए, जिन्दगी सुखद हो जाएगी।
(देश मंथन, 06 मई 2016)