शुभस्थ शीघ्रम्

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संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मुश्किल ये है कि हम लोग अपनी जिन्दगी एक धारणा पर जीते चले जाते हैं। हम मान लेते हैं कि जो अच्छा है, उसी की बातें सुननी हैं। हम बहुत सी उन विद्याओं पर अमल नहीं करते, जिनके विषय में हमारे मन में बुरी भावनाएँ होती हैं, या जिनकी छवि ठीक नहीं होती। 

आज मैं आपको जो बताने जा रहा हूँ, वो ज्ञान संसार के सबसे बड़े विलेन की ओर से दिया गया है। पर ज्ञान तो ज्ञान है, कहीं से भी लिया जा सकता है। खुद भगवान राम ने रावण की नाभि में जब तीर मार दिया था और रावण जमीन पर गिर कर तड़प रहा था, तब राम ने लक्ष्मण को रावण के पास भेजा था कि जाओ लक्ष्मण, तुम रावण से जिन्दगी के ज्ञान को प्राप्त करो। वो शिव भक्त है और बहुत ज्ञानी व्यक्ति है। उसका ज्ञान जीवन का व्यावहारिक ज्ञान है, जिसे तुम उसके मुँह से सुनोगे और संसार तक पहुँचाओगे। 

लक्ष्मण की बहुत इच्छा नहीं थी कि वो रावण के पास जाएं। उस रावण से क्या ज्ञान प्राप्त करना, जिसने सीता का हरण किया। जिसने उनके भाई को युद्ध के लिए ललकारा। पर राम भैया के आगे उनकी एक न चली। राम संयमित थे। अपनी मर्यादा का पालन करते थे। वो धर्म और ‘रिलिजन’ में फर्क करना जानते थे। वो जानते थे कि धर्म नीति है। हालाँकि राम के समय ‘रिलिजन’ शब्द का जन्म ही नहीं हुआ था। तब आदमी मारता और मरता था अपने नैतिक गुणों और अवगुणों के आधार पर। जो मनुष्य होने के धर्म का पालन करता था, वो देवतुल्य होता था। जो इससे चूक जाता, वो दानव कहलाता। 

रावण सचमुच बहुत ज्ञानी था। पर क्योंकि उसने धर्म का पालन नहीं किया इसलिए उसे राक्षस मान लिया गया। तब ईश्वर को लेकर झगड़ा नहीं था। तब मेरी किताब और मेरा ज्ञान तुम्हारे ज्ञान से श्रेष्ठ ऐसा भाव भी किसी के मन में नहीं था। नैतिक शिक्षा सबके लिए समान थी। खुद रावण भी मानता था कि उसने सीता का हरण किया है, जो मानव धर्म के हिसाब से उचित नहीं। पर उसने शक्ति के प्रदर्शन में मानव धर्म की मर्यादा का पालन नहीं किया। 

इसीलिए मरते हुए रावण के पास जब मजबूरी में ही सही, लक्ष्मण पहुँचे, तो उसने कहा था कि मुझे बहुत पहले राम की शरण में आ जाना चाहिए था। पर अभी मुझे आपसे शुभस्थ शीघ्रम् वाले ज्ञान की चर्चा नहीं करनी। अभी मुझे आपको उसके दिए दूसरे ज्ञान की चर्चा करनी है। 

पर पहले एक सत्य घटना।

एक लड़की ने मुझे बताया कि उसके पति के साथ उसका रिश्ता बहुत बिगड़ गया है और उसकी वजह सिर्फ शक है। 

शादी के बाद उसके पति ने अपनी पत्नी को बहुत उकसाया कि वो उसे अपने कॉलेज के दिनों, अपने दोस्तों के बारे में बताए। लड़की शुरू में तो संकोच करती रही। फिर जब उसके पति ने उससे अपनी ढेरों महिला मित्रों की कहानियां साझा कीं तो पत्नी ने बताया कि कॉलेज में उसका एक दोस्त था। वो उसे बहुत पसंद करता था। 

पत्नी का इतना कहना था कि पति ने और पूछताछ शुरू कर दी। पत्नी ने बार-बार बताया कि उस लड़के से उसकी ज्यादा दोस्ती नहीं हो पाई। इतिहास ऑनर्स की क्लास में दोनों साथ-साथ पढ़ते थे और उनका रिश्ता बस पढ़ाई, नोट्स और परीक्षा तक सिमटा हुआ था। 

पति ने पत्नी से खूब प्यार जताते हुए इतना पूछा कि क्या तुम्हें वो पसंद था? 

इतना ओपन पति पाकर पत्नी खुद को धन्य मान रही थी। सोच रही थी कि कितना उदार पति मिला है जो उससे उसकी पसंद के विषय में पूछ रहा है। पति के प्यार में पत्नी ने हां में सिर हिलाया। एक थप्पड़। एक वाक्य, “जब वो पसंद था तो उसी से शादी करती।” …और कहानी खत्म। 

उस दिन के बाद से घर में सन्नाटा पसरा है। पति-पत्नी के रिश्ते पति-पत्नी वाले नहीं रह गए हैं।

शादी के कुछ ही दिन हुए हैं। सहिष्णु मर्द अचानक संसार का सबसे असिहष्णु मर्द बन गया है। 

महिला ने बार-बार सफाई दी कि उसका उस लड़के के साथ कोई रिश्ता नहीं था। उन्होंने कभी ऐसी-वैसी बात तक नहीं की। पर होनी को कौन टाल सकता है?

दांपत्य जीवन बिगड़ चुका है।

लड़की ने मुझसे पूछा कि संजय जी अब हमें क्या करना चाहिए। मेरा पति तो मानने को तैयार ही नहीं कि मेरा उस लड़के से रिश्ता नहीं था। वो मुझ पर शक करता है।

मैंने उससे कहा कि मैं लव गुरु तो हूँ नहीं, पर तुम्हें रावण का वो ज्ञान दे सकता हूँ, जिसे उसने लक्ष्मण को दिया था। रावण ने तीन ज्ञान दिये थे, मैं तुम्हें उसके दिए दो ज्ञान दूँगा। 

ज्ञान नंबर एक कि अपने पति को छोड़ दो। शक्की पति जिन्दगी भर दुख देता है। जिसे तुम पर भरोसा नहीं, उसके साथ क्या रहना। उसने तुम्हें भावनात्मक रूप से अपने जाल में फंसा कर तुमसे ऐसी बातें उगलवाईं, जिनका कोई सिर-पैर नहीं। अब लड़की कॉलेज में पढ़ेगी तो उसकी किसी से दोस्ती हो ही सकती है। उसे कोई अच्छा लग ही सकता है। पर तुम्हारा पति संकीर्ण मानसिकता का आदमी है। तुम उससे एक बार और बात करने की कोशिश करो। बात सुलझे तो ठीक, नहीं तो गुड बाय। रावण ने मरते हुए लक्ष्मण से कहा था कि शुभ कार्य में देर नहीं करनी चाहिए। 

“शुभस्थ शीघ्रम्!”

मैंने यह भी कहा कि मुमकिन है कि मेरी इस राय से तुम इत्तेफाक न रखो, क्योंकि हमारे देश में सभी लोग शादी को निभाने की सलाह देते हैं। पर मुझे लगता है कि सड़े हुए रिश्तों में रहने से अच्छा उनसे अलग हो जाना होता है। 

“और दूसरा ज्ञान?”

दूसरा ज्ञान ये है कि रावण ने लक्ष्मण से कहा था कि अपना राज कभी किसी से साझा नहीं करना चाहिए। मूर्ख होते हैं वो लोग जो अपना राज किसी को भी बताते हैं। रावण ने कहा था कि मेरे प्राण नाभि में बसते हैं, ये राज मैंने अपने सगे भाई विभीषण को बताया था। विभीषण के अलावा किसी और को नहीं पता था कि कहां बाण लगने पर मैं मरूंगा। राम मुझे कभी नहीं मार सकते थे, अगर ये राज विविषण ने उन्हें बताया न होता। मेरी गलती थी कि मैंने अपना राज किसी से साझा किया।

“तुम्हें भी लड़के से अपनी दोस्ती की बात किसी से साझा नहीं करना चाहिए थी। तुमने अपना राज साझा किया, नतीजा तुम्हारे सामने है।”

“पर वो तो ऐसे ही दोस्ती भर थी।”

“रही होगी। पर हमारे समाज में पुरुष आज भी चाहे खुद सौ महिलाओं से दोस्ती रखे, पर वो अपनी पत्नी को ऐसी आजादी नहीं देता। क्यों नहीं देता, इस पर सौ कहानियाँ लिखी जा सकती हैं, पर आज का ज्ञान तो इतना ही। अपना राज किसी से साझा नहीं करना चाहिए।”

(देश मंथन 25 जुलाई 2016)

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