रजाई (में) चिंतन

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आलोक पुराणिक, व्यंग्यकार :

बहुत अन्याय हुआ इतिहास में कई आविष्कारकों के साथ।

इधर मैंने रिसर्च की आविष्कारकों पर, रेडियो, टीवी, साइकिल और भी ना जाने-जाने किन-किन आइटमों के आविष्कारकों के नाम बहुत आसानी से मिल जाते हैं। पर रजाई जैसे महत्वपूर्ण आविष्कार के आविष्कारक का नाम कहीं दर्ज नहीं है।

बताइए, कितना क्रियेटव चिंतन किया होगा रजाई बनाने वाले या वाली ने। 

वैसे मेरा अंदाज है कि रजाई का आविष्कार किसी महिला ने नहीं, पुरुष ने किया होगा। आलसियों की मेरिट लिस्ट में महिलाओं के आने की संभावनाएँ कम ही होती हैं। विशुद्ध कामचोरी, काहिली और परम आराम के चाहक किसी पुरुष ने कपड़े और रुई को जोड़ा-गांठा होगा और फिर उसमें घुस गया होगा।

रजाई आलसियों का न्यूक्लियर बम है। इसके अंदर हो जाओ, तो बाहर की ताकत कुछ नहीं बिगाड़ सकती। रजाई में घुस जाओ, तो बीबी कितनी ही जोर से दहाड़ ले, कुछ असर नहीं पड़ता। बच्चे चाहे कितनी हो जोर से चाऊँ-जाऊँ कर लें, कोई फर्क नहीं पड़ता। 

रजाई बहुत संयम-तोड़क हथियार भी है। बड़े-बड़े परम-प्रतापी वीरों को देखा है मैंने कि रजाई के आगे हार जाते हैं। सर्दी में सुबह रजाई को जो छोड़ दे, उसे परम धीर-वीर-संयमी माना जाना चाहिए। कभी मुझे लगता है कि विश्वामित्र जैसे तपस्वियों की साधना तोड़ने में जहाँ बड़ी-बड़ी अप्सराएँ फेल हो गयी हैं, वहाँ इंद्र यह कर सकते थे कि भारी सर्दी मचा देते और फिर एक रजाई का आफर विश्वामित्र को दिया जाता। भयंकर ठंड में कुड़कुड़ाते हुए ऋषिवर कहते- ला रजाई दे ही दे। मेनका मुझे ना जीत पायी, पर रजाई ने जीत लिया। 

रजाई संयम की अंतिम परीक्षा है।

मुझे यह लगता है कि रजाई का आविष्कार जरूर भारत में ही हुआ होगा। 

इसलिए इतिहास गवाह है कि प्राचीन काल में भारतवासी चैन से खा-पी कर रजाई में घुस कर सो जाते थे, किसी देश पे हमले वगैरह की नहीं सोचते थे। सिकंदर, बाबर, वगैरह पर जरूर कायदे की रजाई नहीं रही होगी, तब ही रात में चैन से नींद ना आती होगी। तब ही पूरी दुनिया पर हमले की योजना बनाते होंगे। अरे, जिसके पास एक रजाई है, वो रात में चैन से सोयेगा। रजाई विहीन बंदे ही परेशान होकर तरह–तरह के प्लान बनाते हैं।

जरा सोचिये, सर्दी के मौसम में बाबर इतनी दूर समरकंद से आगरा आया होगा, यह सोच कर ही सर्दी लगती है। पर आया होगा, तो इसलिए आया होगा कि उसके पास वहाँ रजाई नहीं होगी। वह इंडिया की चैन प्रदायक रजाई के चक्कर में आगरा आ गया होगा। आगरा में रुई की मंडी बहुत पुरानी मंडी है, जिसका रजाई निर्माण में महती योगदान रहा है।

वैसे, अगर सारे लड़ाकू टाइप लोग रजाई का सहारा लें, तो देश में काँय-काँय किच–किच बहुत कम हो सकती है। पाकिस्तान के शरीफ और उनके बदमाशों जैसे हाफिज सईद, लश्कर–ए-तोयबा, तस्कर-ए-हाफिज को बहुत सारी रजाइयाँ गिफ्ट दे दी जायें, भइया चैन से सोओ, और हमें भी सोने दे। भारतीय सुरक्षा बल तो कई बार रजाई-धर्मी निकले हैं।

चलूँ, बहुत सर्दी पड़ रही है। तस्कर-ए-हाफिज और बदमाश-ए-शरीफ को कुछ रजाई गिफ्ट करने के इंतजाम करूँ।

(देश मंथन, 17 दिसंबर 2015)

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