बन-मस्का और ईरानी चाय का लुत्फ

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

अपने देश भारत के कुछ शहरों में आप ईरानी चाय का लुत्फ ले सकते है। खास तौर पर तेलंगाना के हैदराबाद, तमिलनाडु के मदुरै, चेन्नई, मामल्लापुरम और रामेश्वरम जैसे शहरों में आपको ईरानी चाय के स्टाल देखने को मिल जाते हैं।

ईरान में चाय पीने का बहुत रिवाज है। चाय बनाने के लिए एक विशेष पात्र, ‘समवार’ का प्रयोग किया जाता है। वास्तव में यह रूसी सभ्यता की ईरान को देन है। अगर हम इतिहास में झाँके तो ईरान में चाय का रिवाज 15वीं सदी में आया। इसके पहले वहाँ कॉफी पीने का रिवाज ज्यादा था। ईरानी में चाय का उच्चारण चा ई जैसा होता है। हिंदी भाषा में चाय शब्द ईरानी से ही आया है।

अगर आप किसी ईरानी के घर में मिलने जाते हैं तो वह आपको वेलकम ड्रिंक के तौर पर चाय परोसता है। वैसे ईरानी न सिर्फ सुबह में बल्कि हर खाने के बाद चाय पीते हैं। ईरानियों के चाय बनाने का अपना स्टाइल है।

चाय बनाने का तरीका अलग

ईरानी चाय खास तौर बरतन में बनायी जाती है, जिसे समवार कहते हैं। ईरानी चाय के लिए चाय पत्ती, पानी, चीनी, दूध और गुलाब की पंखुडियाँ चाहिए।

पहले पानी में उबाल आने तक उसे गर्म किया जाता है। इसके बाद दूसरे टी पॉट में चाय पत्ती डाली जाती है फिर इसमें खौलता हुआ पानी डाला जाता है। इसके बाद चाय को 10 से 15 मिनट तक मद्धिम आंच पर पकाया जाता है। चाय बनाने वाले वेंडर इस खौलते हुए चाय को अपने अंदाज में बार-बार घुमाते हैं। ईरानी चाय और समान्य चाय में बनाने के तरीके में अंतर है। ईरानी चाय में चाय अलग बरतन में और दूध को अलग बरतन में खौलाया जाता है। जब चाय परोसानी होती है उस समय दूध और चाय को मिलाया जाता है। पहले कप में दूध और चीनी डाली जाती है उसके बाद उसमें चाय छन्नी से चाय उड़ेली जाती है। आप अपनी मन मुताबिक चीनी ले सकते हैं। कुछ और जगहों पर इस स्टाइल में चाय बनायी जाती है। पर ये तरीका ईरानी चाय के तौर पर लोकप्रिय है। ईरानी चाय में स्वाद बढ़ाने के लिए ईरानी चाय में कई बार गुलाब की पंखुड़ियों का इस्तेमाल किया जाता है।

पुराने हैदराबाद में मिलती है ईरानी चाय

हैदराबाद शहर के पुराने इलाके (ओल्ड सिटी) में दर्जनों स्थानों पर आज भी ईरानी चाय बनाने वाले देखे जा सकते हैं। कहा जाता है कि ईरानी चाय बनाने का तरीका हैदराबाद में ईरान से वाया मुंबई और पुणे चल कर आया। यहाँ आने वाले ईरानी लोग चाय बनाने का तरीका भी लेकर आए। यहाँ से ये दक्षिण भारत के कुछ और शहरों तक फैल गया। ईरानी चाय को सुबह सुबह बन और मस्का के साथ लिया जाए तो इसका स्वाद और बढ़ जाता है।

(देश मंथन, 23 जनवरी 2016)

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