विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
हमार बैलगाड़ी सबसे अगाड़ी…सड़किया पे गाड़ी हमार बैलगाड़ी
चलल जाला चलल जाला चलल जाला.. सड़किया पे गाड़ी हमार बैलगाड़ी
हट हट हट हट….
आकाशवाणी पटना से फरमाईशी लोकगीतों की सूची में अस्सी के दशक में यह बड़ा ही लोकप्रिय माँग वाला गीत होता था। जब रेडियो पर ये गाना बजता था तो ऐसी जीवंत अनुभूति होती थी मानो हमारी आँखों के सामने झूमती हुई बैलगाड़ी जा रही हो। गीत के पूरे बोल अब मुझे याद नहीं हैं पर इसमें एक झूमती हुई बैलगाड़ी के सड़क पर सफर का मस्ती भरा चित्रण था। तब हम इसके गायक का नाम पर ध्यान नहीं देते थे पर गीत को बडे मनोयोग से सुना करते थे।
जहाँ तक मुझे याद आता है वह 1982 की 15 अगस्त का दिन था। राजकीय उच्च बुनियादी विद्यालय कन्हौली, वैशाली बिहार। हम दोस्तों ने तय किया कि स्वतंत्रता दिवस की सुबह स्कूल की प्रभात फेरी निकालेंगे। चंदा करके एक माइक और रिक्शे का इंतजाम किया। प्रभात फेरी खत्म हुई। स्कूल में झंडोत्तोलन संपन्न हुआ। फिर तय किया कि जब माइक है तो थोड़ा सांस्कृतिक आयोजन भी हो जाए। कन्हौली बाजार के गुप्ता परिवार का एक नन्हा बालक तबला सीख रहा था। वह अपना अपना तबला लेकर आ गया सोलो परफारमेंस देने के लिए। वह तबला बजा रहा था। माइक से आवाज आसपास जा रही थी।
तभी एक सज्जन स्कूल में पहुँचे मंच पर पहुँच गये। तबला अपने कब्जे में लिया। उसे ठीक-ठीक करके अपने तरीके से बजाने लगे। उस नन्हे बालक को तबला बजाने के कुछ टिप्स भी दिये। उसके बाद उन्होंने तान छेड़ दी। दोनों हाथों से तबला बजा बजाकर गाने लगे। माइक से उनकी आवाज आसपास में जा रही थी। न सिर्फ स्कूली बच्चे बल्कि आसपास के घरों के लोग स्कूल में पहुँच गये। हमलोग आकाशवाणी पटना के लोकप्रिय कलाकार जोगिंदर सिंह अलबेला लाइव सुन रहे थे। वे तबले पर थाप देकर गा रहे थे… हमार बैलगाड़ी सबसे अगाड़ी…चलल जाला…चलल जाला…जा हुमच के… (बैलों को पुचकारने की आवाज) हम सब हँस पड़े…वे मुस्कुराकर बोले ….अइंसही हइले ह…. ( मतलब गीत के बोल) हमारे लिए किसी सपने के सच होने जैसा था। बिना बुलाए रेडियो का लोकप्रिय कलाकार हमारे स्कूल में तान छेड़े हुए था। हम आनंदित हो रहे थे। सभी शिक्षक आनंदित हो रहे थे। गीत खत्म होने के बाद हमारे हेडमास्टर श्री बुद्धदेव शरण को उन्होंने अपना परिचय बताया। पर हम सारे लोग ही जोगिंदर सिंह अलबेला की आवाज से परिचित थे।
हुआ यह था कि अलबेला महुआ ब्लाक में स्वतंत्रता दिवस पर कार्यक्रम देने के लिए आये थे। अचानक उनका तबला खराब हो गया। महुआ में कोई तबला मरम्मत करने वाला नहीं था। किसी ने बताया कि कन्हौली बुनियादी विद्यालय के पास मोची है जो तबला ठीक कर सकता है। वे पाँच किलोमीटर चल कर कन्हौली आ गये थे। मोची से तबला ठीक कराते समय हमारे स्कूल से तबले की आवाज सुन वे खींचे चले आये थे। और हमे अनायास ही एक महान कलाकार को प्रत्यक्ष सुनने का मौका मिल गया था। अलबेला छपरा के आसपास के रहने वाले थे। कुछ साल पहले हमने सुना जोगिंदर सिंह अलबेला इस दुनिया में नहीं रहे। पर उनकी आवाज तो आज कानो में यू हीं गूंजती है… हमार बैलगाड़ी सबसे अगाड़ी… मुझे उम्मीद है आकाशवाणी पटना के पास उनके लोकप्रिय गीत का टेप मौजूद होगा।
जोगिंदर सिंह अलबेला का ये लोकप्रिय गीत 1978 के उनके एक एलपी रिकॉर्ड में आया था। बाद में एचएमवी (अब सारेगामा) ने भी 1980 में उनका एलपी रिकार्ड जारी किया था जिसमें ये गीत मौजूद था। अलबेला ने कुछ भोजपुरी फिल्मों में भी अपने सुर दिए थे।
तो ये रहा पूरा गीत…
पकी रे सड़किया पर चले मोटरगड़िया कि पनिया में चलेला जहाज
दू गो रे पटरिया पर चले रेलगड़िया कि कची पर गड़िया हमार….
चलल जाला चलल जाला चलल जाला हो.. सड़किया पे गाड़ी हमार बैलगाड़ी
हमार बैलगाड़ी सबसे अगाड़ी…सड़किया पे गाड़ी हमार बैलगाड़ी
हट हट …हट हट….
बड़का बैलवा के नथवा नथुनवा…ओकरा के सोभेला ललका पुतनवा
छोटका बैलवा चलावे ला बैलगाड़ी…. हा हा..हमार बैलगाड़ी सबसे अगाड़ी
हट हट हट हट जा बढ़ाके भाई
झूमी झूमी हाके बैलगाड़ी गड़िवना…हथवा पगहा बा छोड़े मोरे तनवा
मारे टिटकारी भागे सबसे अगाड़ी, हमार बैलगाड़ी सबसे अगाड़ी..
हमार बैलगाड़ी सबसे अगाड़ी…सड़किया पे गाड़ी हमार बैलगाड़ी
(देश मंथन 12 जून 2016)
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