संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
वैसे तो चुटकुले हँसाने के लिए होते हैं, लेकिन मैं कई चुटकुलों को सुन कर दुखी हो जाता हूँ।
आज मैं एक ऐसा ही चुटकुला आपको सुनाने जा रहा हूँ, जिसे सुन कर बहुत से लोग मुस्कुराते हैं, हँसते हैं, पर मैं उदास हो जाता हूँ।
पहले आप चुटकुला सुन लीजिए, फिर कहानी आगे बढ़ेगी। चुटकुला पुराना है और घूम-फिर कर 108 बार आप तक पहुँच चुका होगा। फिर भी सुनिए, क्योंकि संजय सिन्हा जब चुटकुला सुनाते हैं तो वो चुटकुला नहीं, दर्शन होता है।
“एक बार एक बच्चा अपने घर से ढेर सारी खीर ले कर स्कूल गया। दोपहर के भोजन के समय उसने खीर मास्टर साहब को दे दी और कहा कि माँ ने आपको देने के लिए कहा है। मास्टर साहब बहुत खुश हुए। उन्होंने पेट भर कर खीर खाई और पूछा कि बेटा, माँ ने आज मेरे लिए खीर क्यों भिजवाई?
बच्चा मासूम था। उसने मास्टर साहब से कहा, “मास्टर साहब, कल रात माँ ने खीर बनाई थी। खीर रसोई में रखी थी कि कहीं से एक बिल्ली आई और उसने खीर में मुँह डाल दिया। माँ ने हम सबको खीर खाने से मना कर दिया। कहा कि कल स्कूल में मास्टर साहब को दे देना, वो खुश हो जाएंगे।”
जिन बच्चों को मास्टर साहब अच्छे नहीं लगते थे, वो इस चुटकुले को सुन कर खिलखिला उठते। लेकिन मैं बिलख उठता।
दरअसल ये एक मानसिकता है।
मेरी एक परिचित की बेटी बहुत झगड़ालू है। वो बात-बात में झगड़ा करती है। अपने घर में उसकी किसी से नहीं बनती। उसे गुस्सा आता है तो वो चीजें तोड़ने लगती है। डॉक्टरी भाषा में कहें तो उसे अवसाद नामक बीमारी है। मैंने अपनी परिचित से कई बार कहा था कि आपकी बिटिया को व्यवहारगत समस्या है, इसका इलाज कराना चाहिए। मैंने उन्हें बताया कि हम अवसाद को बीमारी नहीं मानने की गलती करते हैं। अगर इसे आप बीमारी मानें, तो इसका इलाज मुमकिन है। नहीं तो ये बढ़ता जाएगा। अवसाद में डूबे व्यक्ति को पता नहीं होता, लेकिन कई बार वो खुद के लिए और दूसरों के लिए मुसीबत बन सकता है।
पर मेरी परिचित ने बेटी की बीमारी को बीमारी के रूप में लिया ही नहीं।
एक दिन मैं अपने परिचित के घर गया तो पता चला कि बिटिया की कहीं शादी तय हो गयी है। उन्होंने कहा कि सबकुछ जल्दी में तय हुआ है। दस दिनों शादी हो जाएगी। काफी इंतजाम करना है। संजय जी, आपको भी शादी में जरूर आना है।
मैं चुप रहा। अब उन्होंने मुझसे पूछा कि आपको इस खबर को सुन कर खुशी नहीं हुई?
मैंने उनसे पूछा कि क्या आपने लड़के वालों को बताया कि आपकी बिटिया को गुस्सा बहुत आता है। वो अवसाद की मरीज है।
मेरी परिचत कहने लगीं, “अरे, अपनी बेटी के लिए कोई ऐसा कहता है क्या? वो तो एक बार उसकी शादी हो जाए, फिर वो अपने घर जाए, मैं यहाँ चैन से रहूँ। उसके बाद उसकी आदतें ससुराल वाले समझें।”
मैं समझ गया, बिल्ली की जूठी खीर को मास्टर साहब के पास भिजवा कर माँ दान सुख प्राप्त करने की कोशिश कर रही है।
जिन दिनों मैं अमेरिका में था, एक रात मैं होटल में खाना खाने पहुँचा। काफी देर हो चुकी थी, होटल बंद होने का समय हो गया था। खाना खाने के बाद मैंने देखा कि होटल के स्टाफ बचे हुए भोजन को समेट रहे हैं। मैंने यूँ ही उनसे पूछा कि जो खाना बच गया, उसका आप क्या करेंगे? स्टाफ ने कहा कि इन्हें फेंक दिया जाएगा। हम एक मशीन में डाल कर इन्हें पूरी तरह नष्ट कर देंगे।
“पर क्यों? आप तो इन्हें कल सुबह भी लोगों को खिला सकते हैं।”
होटल वाला मेरी बात सुन कर बहुत हैरान हुआ। उसने कहा कि जब हम बासी खाना खुद नहीं खाते, तो हम लोगों को कैसे खिला सकते हैं? उसने बहुत ठहर कर धीरे से कहा कि सर, जो हम अपने साथ नहीं होने देना चाहते, वो हमें दूसरों के साथ भी नहीं करनी चाहिए। खाना बच गया, बासी हो गया, अब कल इसे नहीं खिलाया जा सकता। नहीं खिलाना चाहिए।
और हमारे यहाँ? कई ढाबों और होटलों में जब तक दाल, सब्जी खट्टी न हो जाए, ग्राहक को टिका दो। पकड़े जाने पर मैंने ये भी कहते सुना है कि सर, नींबू ज्यादा पड़ गया है। असल में हमारे भीतर कूट-कूट कर ये भाव भरा है कि दूसरों को बेवकूफ बनाओ। किसी भी तरह अपना उल्लू सीधा करो। इसीलिए हमारे यहाँ दवा से लेकर दारू तक नकली मिलती है। तमाम लोग नकली चीजों का कारोबार करते हैं। हजारों बार हम खबरें सुनते हैं कि फलाँ स्कूल में बासी खाना खा कर बच्चे बीमार। फलाँ जगह नकली दारू पीकर इतने लोग मर गये। नकली दवा से अस्पताल में मरीज की मौत।
हम पड़ोसियों से सुनते हैं उनकी बहू ने आते ही घर में उधम मचाना शुरू कर दिया। फिर हम मुस्कुराते हैं और कहते हैं कि बहुत तेज बनती थी बुढ़िया, अब मिली है सजा।
हम हर बात पर मजे लेते हैं। बिल्ली की जूठी खीर टिका देने से लेकर, बीमार बेटी को किसी की बहू बना देने तक।
जानते हैं हम कब तक मजे लेते हैं? जब तक हम उसके भुक्तभोगी नहीं हो जाते। जिस दिन बासी खाना खा कर हमारी तबियत बिगड़ जाती है, उस दिन हम खिलाने वाले को कोसते हैं। जिस दिन नकली दवा खा कर हमारा कोई इस संसार से चल देता है, उस दिन हम सिर पीटते हैं। जिस दिन हमारे परिवार में किसी ने झूठ-सच बोल कर अपनी बीमार बेटी टिका दी, हम अपनी किस्मत को कोसते हैं। पेट भर-भर कर गालियाँ देते हैं।
जब तक कोई हमें बिल्ली की जूठी खीर नहीं खिला देता, हम मजे लेते हैं।
मैंने अपनी परिचित से कह दिया है कि मैं शादी में नहीं आऊंगा। जिस रिश्ते की बुनियाद ही झूठ पर टिकी हो, उसका गवाह मैं क्यों बनूं! परिचित के घर से उठते हुए मैंने उनसे कह दिया है कि आज आप बेटी ब्याह रही हैं, ध्यान रहे आपको बहू भी लानी है। किसी ने आपको भी बीमार बेटी टिका दी, तो?
मैं कोई समाज शास्त्र का प्रोफेसर नहीं हूँ, लेकिन मैं बेटियों की तमाम माँओं से कहना चाहता हूँ कि अपनी बेटी को बहू बनने की ट्रेनिंग आपको देनी चाहिए। हर लड़का या हर लड़की विवाह योग्य हो, कोई जरूरी नहीं। शादी सिर्फ सामाजिक फर्ज भर नहीं, यह समाज को संचालित करने का साधन भी है। जैसा देंगे, वैसा ही पाएंगे।
उस बच्चे की माँ ने मास्टर के पास बिल्ली की जूठी खीर भिजवाई तो थी कि मास्टर खुश होगा, बच्चे को ज्यादा नंबर देगा।
मुझे नहीं पता कि उस बच्चे को मास्टर स्कूल से निकाल पाया कि नहीं, पर इतना तय है कि मास्टर की निगाहों से वो बच्चा सदा के लिए उतर गया होगा।
चाहे व्यापार हो या रिश्तेदारी, कई बार कानूनी दाँव-पेंच में भले हम सामने वाले का कुछ बिगाड़ न पाएं, अपनी किस्मत को भले कोसते रहें, पर यह तय है कि धोखा देने वाला व्यक्ति सदा के लिए हमारी निगाहों से उतर जाता है। जब कोई चीज मन से ही उतर जाए, फिर कहने को बचता ही क्या है?
दुनिया के सभी धर्म ग्रथों में यही लिखा है कि दूसरों के साथ वैसा नहीं करना चाहिए, जो हमें खुद के लिए पंसद नहीं।
(देश मंथन 16 सितंबर 2016)