विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
कांचीपुरम भ्रमण में हमारा आखिरी पड़ाव था कैलाशनाथ मंदिर। हमारे ऑटो वाले भाई ने कह दिया था कि यहाँ के बाद आपको बस स्टैंड छोड़ दूँगा। फिर मेरी सेवा समाप्त। सो हम कैलाश नाथ मंदिर को अच्छी तरह निहार लेना चाहते थे।
कांचीपुरम शहर के पश्चिम दिशा में स्थित यह मंदिर सबसे प्राचीन और दक्षिण भारत के सबसे शानदार मंदिरों में एक है। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित स्मारकों की सूची में है। केंद्र सरकार की एजेंसी ने इस मंदिर का रखरखाव बेहतर कर रखा है। मंदिर के बाहर सुंदर हरित परिसर है। कैलाशनाथ मंदिर पल्लव कला का उत्कृष्ट नमूना है। मंदिर के निर्माण में द्रविड़ वास्तुकला की छाप देखने को मिलती है। वास्तु के लिहाज से ये मंदिर महाबलीपुरम के समुद्रतटीय मंदिर से मिलता जुलता है।
कैलाशनाथ मंदिर को आठवीं शताब्दी में पल्लव वंश के राजा राजसिम्हा या नरसिंह वर्मन द्वितीय ( 700 से 728 ई) ने अपनी पत्नी की इच्छा पूर्ति करने के लिए बनवाया था। मंदिर का निर्माण 658 ई में आरंभ हुआ और 705 ई में जा कर पूरा हो सका। मंदिर के अग्रभाग का निर्माण राजा के पुत्र महेन्द्र वर्मन द्वितीय के करवाया था।
राजा की संगीत नृत्य और कला में काफी गहरी रूचि थी, जो इस मंदिर में परिलक्षित होती है। कई लोग ये मानते हैं कि राजसिम्हा शिव का भक्त और संत प्रवृति का था। शिव ने उसके सपने में आकर मंदिर निर्माण की प्रेरणा दी थी। मंदिर में मूल आराध्य देव शिव के चारों ओर सिंहवाहिनी देवी दुर्गा, विष्णु समेत कुल 58 देवी-देवताओं की मूर्तियाँ है। पल्लव राजाओं की विभिन्न युद्ध-गाथाएँ भी यहाँ ग्रेनाइट पत्थर से बनी वेदी के ऊपर उकेरी गयी हैं, जिन्हे देख कर लोग आनंदित होते हैं। कैलाशानाथ मंदिर परिसर के नैऋत्य कोण में बना है और परिसर की पूर्व एवं उत्तर दिशा पूरी तरह से खुली होकर निर्माण रहित है। इस प्रकार की स्थिति वास्तु का एक अनुपम उदाहरण है।
शिव पार्वती की नृत्य प्रतियोगिता
मंदिर में देवी पार्वती और शिव की नृत्य प्रतियोगिता को दीवरों पर चित्रों में दर्शाया गया है। यहाँ पार्वती की हंसती हुई प्रतिमा देख सकते हैं। मूल मंदिर के निकट शिव-पार्वती की नृत्य-प्रतियोगिता के दृश्य भी बहुत मनोरम है। मंदिर में बनी मूर्तियों की नक्काशी की उत्कृष्टता पर निगाहें अटकी रह जाती है।
मंदिर का एकमात्र गोपुरम (प्रवेश द्वार) पूर्व दिशा में है। मंदिर परिसर में आने के दो द्वार है। एक बड़ा द्वार परिसर के पूर्व आग्नेय में है जो कि, वास्तुनुकुल स्थान पर नहीं होने के कारण आमतौर पर बंद रहता है, जबकि दूसरा छोटा द्वार परिसर की दक्षिण दिशा में है जहाँ से श्रद्धालु आते-जाते है। मंदिर के ईशान कोण में बहुत बड़ा तालाब है।
बैकुंठ की गुफा
कैलाशनाथ मंदिर के मुख्य गर्भ गृह में एक गुफा है। यहाँ के पुजारी जी बताते हैं कि इस गुफा को अगर पार कर लेते हैं तो आप बार-बार जन्म के बंधन से मुक्त हो जाते हैं और सीधे बैकुंठ की प्राप्ति होगी। पर इस गुफा में प्रवेश के लिए 10 रुपये का टिकट लेने को कहते हैं। मैंने देखा कुछ श्रद्धालु जो गुफा से सफलतापूर्वक बाहर निकले वे बडी मुश्किल से निकल पा रहे थे।
खुलने का समय
मंदिर सुबह सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक खुला रहता है। कैलाशनाथ मंदिर में आपके मार्ग दर्शन के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से अधिकृत गाइड उपलब्ध हैं। हालाँकि यहाँ अनाधिकृत गाइड भी चक्कर लगाते रहते हैं।
(देश मंथन, 18 दिसंबर 2015)