मशहूर शायर हाली का पानीपत

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

पानीपत के कलन्दर शाह की दरगाह एक अजीम शायर की मजार है।

दरगाह के मुख्य द्वार से घुसते ही दाहिनी तरफ उनकी मजार नजर आती है। उनकी दरगाह के ऊपर उनका सबसे लोकप्रिय शेर लिखा है….

है यही इबादत और यही दीनों-इमाँ

कि काम आये दुनिया में इंसा के इंसा

हाली की एक और गजल का अंश –

हक वफा का हम जो जताने लगे, आप कुछ कह के मुस्कुराने लगे।

हम को जीना पड़ेगा फुरकत में, वो अगर हिम्मत आजमाने लगे

डर है मेरी जुबान न खुल जाये, अब वो बातें बहुत बनाने लगे।

क्या आपको याद है इस शायर का नाम… इस शायर का नाम है- ख्वाजा अल्ताफ हसन हाली….( 1837-1914) हाली की शायरी से वे सभी लोग वाकिफ होंगे जो उर्दू शायरी में रूचि रखते हैं। वर्ष 1837 में हाली का जन्म पानीपत में हुआ। उन्होंने 1856 में हिसार कलेक्टर कार्यालय में नौकरी की। छह साल तक तक कवि नवाब मुस्तफा खान शेफ्ता के साथ रहे। वे साल 1871 में लाहौर चले गये। पानीपत में 30 सितंबर, 1914 में उनका निधन हो गया। 

पर क्या आपको पता है कि हाली मशहूर फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास के दादा थे…. शायर हाली मिर्जा गालिब के शिष्य थे और गालिब की परंपरा के आखिरी शायर। हाली ने गालिब की आत्मकथा भी लिखी है। हाली का ज्यादातर वक्त कलन्दर शाह की दरगाह के आस-पास बीतता था और उनके इन्तकाल के बाद वहीं उनकी मजार भी बनी। जाहिर है कि हाली के वंशज होने के कारण पानीपत मशहूर शायर और फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास का शहर भी है। वही ख्वाजा अहमद अब्बास जिन्होंने सात हिन्दुस्तानी में अमिताभ बच्चन को पहली बार ब्रेक दिया था। हालाँकि अब पानीपत शहर को हाली और ख्वाजा अहमद अब्बास की कम ही याद आती है। एक जून 1987 को अन्तिम साँस लेने से पहले ख्वाजा अहमद अब्बास पानीपत आया करते थे। ख्वाजा अहमद अब्बास एक पत्रकार, कहानी लेखक, निर्माता निर्देशक सब कुछ थे। राजकपूर की फिल्म ‘बाबी’ की स्टोरी स्क्रीन प्ले उन्होंने लिखी। उनकी लिखी कहानी ‘हिना’ भी थी। भारत-पाक सीमा की कहानी पर बनी आरके की यह फिल्म उनकी मृत्यु के बाद (हिना, 1991) रीलिज हुई।

शायर हाली की हवेली कलन्दर शाह के दरगाह के पास थी। इसलिए उनका ज्यादा वक्त कलन्दर शाह की दरगाह पर गुजरता था। कलन्दर दरगाह के पास चढ़ाऊ मोहल्ला में 200 वर्ग गज में बनी हवेली, मिर्जा गालिब के अन्तिम शागिर्द अल्ताफ हुसैन हाली की एक मात्र निशानी थी। बाद में इस भवन में स्कूल बना फिर उसे बन्द कर दिया गया। अन्त में सितंबर, 2014 को यह इमारत जमींजोद कर दी गयी। अब 119 साल पुरानी हाली हवेली को जिला प्रशासन फिर से बनाने वाला है। हवेली के बीच हाल में बने दो चौबारे भी बनाये जायेंगे, जहाँ मुशायरे अन्य कार्यक्रम के समय में महिलायें बैठा करती थीं। 

वर्ष 1937 में पानीपत शहर में हाली की जन्म शताब्दी मनायी गयी थी, जिसमें शायर इकबाल भी शामिल हुये थे। उस वक्त एक हाली की पेन्टिंग बनवायी गयी थी, जो हाली पानीपती ट्रस्ट के महासचिव एडवोकेट राममोहन राय सैनी के पास मौजूद है। हाली पानीपती ट्रस्ट इस मशहूर शायर की स्मृतियों को ताजा बनाये रखने की कोशिश में लगा हुआ है।

(देश मंथन, 26 मई 2015)

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