विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
कोलकाता का कालीघाट क्षेत्र अपने काली माता के मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। कालीघाट काली मन्दिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है।
हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यन्त पावन तीर्थस्थान कहलाये।
सती के पाँव की उंगली गिरी थी यहाँ
कालीघाट में देवी काली के प्रचंड रूप की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव के छाती पर पैर रखी हुई हैं। उनके गले में नरमुण्डों की माला है। उनके हाथ में कुल्हाड़ी है। सुन्दर मन्दिर के अन्दर माता काली की लाल-काली रंग की कास्टिक पत्थर की मूर्ति स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के ताण्डव के समय सती के दाहिने पैर की ऊँगली इसी जगह पर गिरी थी।
एक अनुश्रुति के अनुसार देवी किसी बात पर गुस्सा। हो गई थीं। इसके बाद उन्होंशने नरसंहार शुरू कर दिया। उनके मार्ग में जो भी आता वह मारा जाता। उनके क्रोध को शान्त करने के लिए भगवान शिव उनके रास्ते में लेट गये। देवी ने गुस्सेन में उनकी छाती पर भी पाँव रख दिया। इसी दौरान उन्होंलने शिव को पहचान लिया। इसके बाद ही उनका गुस्साप शान्त हुआ और उन्हों्ने नरसंहार बन्द कर दिया।
ये मन्दिर 1809 का बना हुआ बताया जाता है। कालीघाट शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी (संन्यास पूर्व नाम जिया गंगोपाध्याय) ने की थी। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक दस महाविद्याओं में प्रमुख और शक्ति-प्रभाव की अधिष्ठात्री देवी काली का प्रभाव लाखों कोलकाता वासियों के मन पर है।
माँ काली का मुख काले पत्थरों से निर्मित है। जिह्वा, हाथ और दांत सोने से मढ़े हुए हैं। जय काली कलकत्तेवाली तेरा वचन न जाये खाली… कलकत्ता में काली की दया से आदमी भूखा नहीं सोता, जैसे मुहावरे और शक्ति की देवी की इसी सोने की जीभ के कारण ही पैदा हुई हैं। गर्भगृह के ठीक सामने बने नाट्य मन्दिर से देवी की प्रतिमा का भव्य दर्शन मिलता है। 1836 में धार्मिक आस्था संपन्न जमींदार काशीनाथ राय ने इसका निर्माण कराया था। मन्दिर में ही बने जोर बंगला में देवी पूजन का कर्मकांड होता है। यहाँ काली के अलावा शीतला, षष्ठी और मंगलाचंडी के भी स्थान है।
तेंदुलकर ने की थी पूजा
महानगर के दक्षिणी हिस्से में गंगा के तट पर बसे कालीघाट में न सिर्फ कोलकाता वासी बल्कि दूर-दूर से श्रद्धालु यहाँ पूजा अर्चना करने आते हैं। 99 शतक लगाने के बाद क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने भी यहाँ आकर माँ की पूजा की थी।
अघोर साधना और तान्त्रिक साधना के लिए प्रसिद्ध
कालीघाट का मन्दिर अघोर साधना और तान्त्रिक साधना के लिए भी प्रसिद्ध है। कालीघाट परिसर में माँ शीतला का मन्दिर भी है। माँ शीतला को भोग में समिष भोज चढ़ाया जाता है। यानी माँस, मछली अन्डा सब कुछ। मन्दिर में मंगलवार और शनिवार को श्रद्धालुओं की भीड़ ज्यादा होती है।
खुलने का समय
कालीघाट माँ का मन्दिर सुबह 5 बजे खुल जाता है। दोपहर 12 से 3.30 बजे तक बन्द रहता है। शाम को 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक फिर मन्दिर खुला रहता है। अगर आप मन्दिर दर्शन करने आये हैं तो यहाँ पंडों से सावधान रहें। विजयादशमी और बंगला नव वर्ष के दिन यहाँ अपार भीड़ उमड़ती है।
कैसे पहुँचे
धर्मतल्ला से बस मेट्रो और ट्राम से कालीघाट पहुँचा जा करता है। कालीघाट में कोलकाता मेट्रो का स्टेशन भी है। कालीघाट ट्राम से भी पहुँचा जा सकता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी का पुश्तैनी घर काली घाट इलाके में ही है।
मुख्य सड़क जहाँ आप ट्राम से उतरते हैं, कालीघाट मन्दिर का विशाल प्रवेश द्वार बना हुआ है। इस सड़क पर आधा किलोमीटर चलने के बाद माँ काली का मन्दिर आ जाता है।
मिशनरीज ऑफ चेरिटी का मुख्यालय बगल में
इसी सड़क पर मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज आफ चेरिटी यानी निर्मल हृदय का मुख्यालय भी है। एक ओर प्रचंड रूप में कालीघाट में देवी माँ यहाँ विराज रही हैं पर कालीघाट के मन्दिर के मार्ग पर कोलकाता का सबसे पुराना रेडलाइट एरिया भी है। यहाँ भरी दोपहरी में भी महिलाएँ अपने ग्राहकों का इन्तजार करती नजर आती हैं। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी के मन्दिर के पास नारी शक्ति की ये कैसी विवशता है माँ…
(देश मंथन, 08 जून 2015)