विद्युत प्रकाश :
साल 1884-85 के दौरान ब्रिटिश सरकार ने शिमला को रेल से जोड़ने की योजना पर काम शुरू किया। पहाड़ों के प्राकृतिक वातावरण को बचाये रखने के लिए इस क्षेत्र में नैरोगेज लाइन बिछाने का प्रस्ताव दिया गया।
1891 तक कालका रेलवे लिंक से जुड़ चुका था। अंबाला कालका रेलवे कंपनी और सरकार के बीच कालका शिमला रेल लाइन बिछाने के लिए 1899 में अनुबंध होने के बाद काम प्रारंभ हुआ।
पहले इस मार्ग पर 2 फीट चौड़ाई वाली पटरी बिछाने पर सहमति बनी पर बाद में उसे सेना के आग्रह पर 2 फीट 6 इंच कर दिया गया। रेल पटरियों के लिए लेमिनेटेड स्टील का इस्तेमाल किया गया जबकि स्लीपर के लिए लकड़ियों का इस्तेमाल हुआ। 9 नवंबर 1903 को इस मार्ग पर ट्रैफिक आरंभ हो गया पर इसी साल हुई भारी बर्फबारी और भूस्खलन से इस मार्ग को अस्थायी तौर पर बंद करना पड़ा। पहले लोको के तौर पर 4 पहियों वाले इंजन इस्तेमाल में लाये गये। बाद में 6 पहिए वाले और फिर 10 पहियों वाले इंजन इस मार्ग पर प्रयोग में लाए गए। ये इंजन ग्लासगो के स्टीवर्ट ऐंड कंपनी ने बनाये थे। ये लोको बिना ज्यादा बदलाव के 1953 तक संचालन में थे। बाद में इन लोको को जर्मन कंपनी हंसेल ने परिस्कृत किया और इसमें कोयला और पानी डालने की क्षमता बढ़ायी।
1952 के बाद कालका शिमला मार्ग पर भाप इंजन की जगह डीजल लोको का इस्तेमाल शुरू किया गया। 1980 में इस मार्ग पर आखिरी भाप इंजन का प्रयोग किया गया। पर साल 2001 में पुरानी परंपरा को याद करते हुए एक स्टीम इंजन को इस मार्ग पर फिर से लाया गया। सैलानियों के लिए आज भी प्रसिद्ध बी क्लास स्टीम इंजन मौजूद है जिसे खास मौकों पर चलाया जाता है। चार पहियों वाले बोगी भी अभी भी इस मार्ग पर इस्तेमाल में हैं।
कालका शिमला रेल पर कभी भाप इंजन से चलने वाली ट्रेनें अब डीजल इंजन से चलती है। लेकिन ये एक मात्र रेलवे मार्ग है जिस पर कभी पेट्रोल से चलने वाले लोको भी चलाये गये। 1911 में इस रेल मार्ग पर पेट्रोल चलित पार्सल वैनों का संचालन किया गया। इस इंजन का निर्माण ड्रेवरी कार कंपनी लंदन ने किया था। इसमें 17 हार्स पावर का इंजन लगा था। इस रेल इंजन को राष्ट्रीय रेल संग्रहालय दिल्ली में रखा गया है। शुरूआत में केएसआर के मार्ग पर दार्जिलिंग हिमालयन रेल से परिस्कृत किए गये लोको (इंजन) को लाकर चलाया गया।
डीजल इलेक्ट्रिक मोटर कार इस मार्ग पर 1932 में इस्तेमाल में लाया गया। इस मोटर कार की खिड़कियां चौड़ी हैं जिससे नजारे देखने का आनंद बढ़ जाता है। ये रेल मोटरकार अभी भी इस्तेमाल में है।
(देश मंथन, 23 जुलाई 2014)