विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
तमिलनाडु के मदुरै मे मीनाक्षी मंदिर है तो कांचीपुरम में कामाक्षी मंदिर। देवी कामाक्षी का मंदिर कांचीपुरम शहर के बीचों बीच स्थित है। हालाँकि ये मंदिर कांचीपुरम के बाकी मंदिरों की तरह विशाल परिसर वाला नहीं है। पर यह श्रद्धालुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है। यहाँ सबसे ज्यादा श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। डेढ़ एकड़ में फैला ये मंदिर देवी शक्ति के तीन सबसे पवित्र स्थानों में एक है। मदुरै और वाराणसी अन्य दो पवित्र स्थल हैं।
विष्णु कांची और शिवकांची में बात करें तो ये मंदिर शिवकांची में स्थित है। कामाक्षी देवी मंदिर देश के इक्यावन शक्ति पीठों में से एक है। मंदिर में कामाक्षी देवी की आकर्षक प्रतिमा देखी जा सकती है। यह भी कहा जाता है कि कांची में कामाक्षी, मदुरै में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्षी विराजमान हैं। मीनाक्षी और विशालाक्षी विवाहिता देवियाँ हैं। इष्टदेवी देवी कामाक्षी खड़ी मुद्रा में होने के बजाय बैठी मुद्रा में हैं। (देवी पद्मासन (योग मुद्रा) में बैठी हैं और उनके आसपास बहुत शान्त और स्थिर वातावरण है)। वे दक्षिण पूर्व की ओर देख रही हैं।
मंदिर परिसर में गायत्री मंडपम भी है। कभी यहां चंपक का वृक्ष हुआ करता था। माँ कामाक्षी देवी का भव्य मंदिर में भगवती पार्वती का श्रीविग्रह है,जिसको कामाक्षी देवी अथवा कामकोटि भी कहते हैं। भारत के द्वादश प्रधान देवी-विग्रहों में से यह मंदिर एक है। इस मंदिर परिसर के अन्दर चारदीवारी के चारों कोनों पर निर्माण कार्य किया गया है। एक कोने पर कमरे बने हैं, तो दूसरे पर भोजनशाला, तीसरे पर हाथी स्टैंड और चौथे पर शिक्षण संस्थान बना है। कहा जाता है कि कामाक्षी देवी मंदिर में आदिशंकराचार्य की काफी आस्था थी। उन्होंने ही सबसे पहले मंदिर के महत्व से लोगों को परिचित कराया। परिसर में ही अन्नपूर्णा और शारदा देवी के मंदिर भी हैं।
यह भी कहा जाता है कि देवी कामाक्षी के नेत्र इतने कमनीय या सुंदर हैं कि उन्हें कामाक्षी संज्ञा दी गयी। वास्तव में कामाक्षी में मात्र कमनीय या काम्यता ही नहीं, वरन कुछ बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्त्व भी है। यहाँ पर ‘क’ कार ब्रह्मा का, ‘अ’ कार विष्णु का, ‘म’ कार महेश्वर का प्रतीक है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप हैं। सूर्य-चंद्र उनके प्रधान नेत्र हैं। अग्नि उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र है। कामाक्षी में एक और सामंजस्य है ‘का’ सरस्वती का। ‘माँ’ महालक्ष्मी का प्रतीक है। इस प्रकार कामाक्षी के नाम में सरस्वती तथा लक्ष्मी का युगल-भाव समाहित है।
मंदिर का निर्माण
संभवतः ये मंदिर छठी शताब्दी में पल्लव राजाओं ने बनवाया था। मंदिर के कई हिस्सों को पुनः निर्मित कराया गया है, क्योंकि मूल संरचनायें या तो प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गये या फिर इतने समय तक खड़े न रह सके। हालांकि कांचीपुरम के सभी शासकों ने भरपूर प्रयास किया कि मन्दिर अपने मूल स्वरूप में बना रहे।
खुलने का समय
मंदिर सुबह 5.30 बजे खुलता है और दोपहर 12 बजे बंद हो जाता है। दोबारा शाम को 4 बजे खुलता है और रात्रि 9 बजे बंद हो जाता है। ब्रह्मोत्सव और नवरात्रि मंदिर के खास त्योहार हैं।
17 अक्तूबर 2015 की सुबह, शनिवार का दिन। हम माँ कामाक्षी मंदिर के प्रांगण में पहुँचे हैं। मंदिर के गोपुरम पर रंगाई-पुताई का काम चल रहा है। मंदिर के अंदर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ है। थोड़ी देर पंक्तिबद्ध रहने के बाद दर्शन का सौभाग्य मिल जाता है। हम आगे बढ़ते हैं। अगले मंदिर के द्वार पर एक सज्जन बैठे हैं। वे अपने गले से गीत के बोल और वाद्य यंत्र की ध्वनि एक साथ निकाल कर मुग्ध कर देते हैं। मंदिर के अंदर कांची कामकोटि पीठम शंकराचार्य जी का पोस्टर लगा हुआ दिखायी देता है। हम बाहर निकलते हैं। मंदिर के बाहर यात्रियों के लिए गेस्ट हाउस दिखायी देता है। पर हम चल पड़ते हैं अगले मंदिर के लिए।
(देश मंथन, 17 दिसंबर 2015)