विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :
काँगड़ा के रेल में सेवा देने वाले स्टीम लोकोमोटिव में जेडएफ 107 की चर्चा महत्वपूर्ण है। यह नैरोगेज रेलवे सिस्टम का एक शक्तिशाली लोकोमोटिव था। काँगड़ा घाटी रेलवे को लंबे समय तक सेवाएँ देने वाला एक लोकोमोटिव इन दिनों नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पहाड़ गंज वाले निकास द्वार के पास आराम फरमा रहा है।
जेडएफ 107 लोको काफी समय तक पठानकोट लोको शेड में मौजूद था, उसे अब नई दिल्ली स्टेशन के बाहर लाकर रखा गया है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद के काल में भारतीय रेलवे के नैरोगेज सिस्टम के लिए लोकोमोटिव को विकसित करने के लिए काफी प्रयास किए गये। 1925 में छह प्रकार के नैरोगेज लोकोमोटिव के मॉडल को विकसित किया गया। इन मॉडलों के नाम जेड ए से लेकर जेड एफ तक रखे गये। पर वास्तव में जेड ए, जेड सी और जेड डी श्रेणी के लोकोमोटिव तो कभी बने ही नहीं।
साल 1935 मे जेड एफ श्रेणी का लोकोमोटिव बनाया गया। यह तब नैरोगेज के लोकोमोटिव में सबसे बड़ा था। इस लोकोमोटिव के पहियो की संरचना 2-6-2 थी। यानी दो आगे 6 बीच में और दो पीछे की ओर। इसके धुरे पर 8 टन का वजन था। यह देखने में कालका शिमला रेलवे मे चलने वाले 1904 में बने के टाइप इंजन जैसा ही था। पर यह 16.25 वर्ग फीट वाला बड़े आकार का था। इसका बायलर काफी बड़ा था और इसमें सुपर हीटर लगा था। देखने में यह विशालकाय लगता है। इसे देखकर नहीं लगता है कि नैरोगेज का लोकोमोटिव है। इस लोकोमोटिव का इस्तेमाल पहले कालका शिमला खंड में और बाद में पठानकोट जोगिंदर सेक्शन में किया गया। इस लोकोमोटिव का निर्माण कासेल लोकोमोटिव वर्क्स में हंसेल एंड सोहन ने किया था। अपने समय का यह कोयला इंजन से चलने वाला नैरोगेज का उत्कृष्ट लोकोमोटिव था जो लंबे समय तक अपनी सेवाएँ देता रहा। दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे के एक लोकोमोटिव को आप रेल भवन के बाहर देख सकते हैं तो काँगड़ा घाटी के इस लोकोमोटिव को नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर देखा जा सकता है।
(देश मंथन, 05 अगस्त 2015)