कस्तूरबा गाँधी का घर

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार :

बापू का घर देख लिया तो अब चलिए बा यानी बापू की पत्नी कस्तूरबा गाँधी का घर देखने चलें। जब आप पोरबंदर में बापू का घर देखने जाते हैं तो बापू की पत्नी कस्तूरबा गाँधी का घर देखना नहीं भूलें। बा का घर कीर्ति मंदिर के ठीक पीछे है। कीर्ति मंदिर देख लेने के बाद इसके पिछवाड़े से ही बा के घर जाने का रास्ता है। रास्ते में घर जाने के लिए मार्ग प्रदर्शक लगा हुआ है।

बा का घर तीन मंजिला है। घर देख कर लगता है कि बा के परिवार वाले अपने समय में काफी संपन्न रहे होंगे। बा के घर में तीन रसोई घर, कमरे में गुसलखाना और खाने के लिए डायनिंग हॉल भी बने हुए हैं।
बा का पूरा घर अभी भी अच्छी हालत में है। इसे पूरी तरह घूम कर देखा जा सकता है। घर को देख कर लगता है कि उनका संयुक्त परिवार था। घर में मेहमानों के लिए भी कमरे बने हुए हैं। बा का जन्म अप्रैल 1869 को हुआ था। उनका शादी के पहले नाम कस्तूरबा कपाडिया था। वे पोरबंदर के अमीर व्यापारी गोकुलदास माखरजी की बेटी थीं। 14 साल की उम्र में उनकी बापू से शादी हुई। हर सुख दुख में बापू का साये की तरह साथ निभाती रहीं बा। पर 22 फरवरी 1944 को वे पुणे में बापू का साथ छोड़ गईं।
वर्षा जल संचय का अनूठा इंतजाम
दो सौ साल पुराने इस कस्तूरबा के घर में वर्षा जल संचय का अद्भुत इंतजाम है। छत से बारिश का पानी नीचे आने के लिए कई छोटे-छोटे छेद बनाए गये हैं। इससे छत का पानी पाइप के सहारे आधार तल पर आ जाता है। आधार तल पर जमीन के नीचे पानी की टंकी बनाई गयी है, जिसमें बारिश का पानी जमा हो जाता है। इस पानी का इस्तेमाल बारिश के बाद दिनों में अलग-अलग तरह के कार्यों के लिए किया जाता है। बताया जाता है पोरबंदर के तमाम संपन्न लोगों ने अपने घरों में बारिश के पानी के संचय के लिए इंतजाम कर रखे थे। बारिश के पानी के संचय का यह इंतजाम प्रेरक है। दो साल पहले भी पानी बचाने को लेकर लोगों में जिस तरह की चेतना थी यह आज भी सीखने योग्य है। आज सार्वजनिक भवनों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने की बात की जा रही है, पर ऐसा इंतजाम तो घर घर में होना चाहिए।
सात साल में सगाई 13 साल में शादी
बा और बापू की शादी कब हुई ये सही सही पता नहीं चलता। किसी भी पुस्तक में उनकी शादी की तारीख नहीं मिलती। इतना लिखा हुआ मिलता है कि मई 1883 में मोहनदास और कस्तूरबा का विवाह धूमधाम से हुआ। पर तारीख नहीं पता चलता। वैसे उन दोनों का विवाह होना 7 साल की उम्र में ही तय हो गया था। तय होने पर सगाई कर दी गयी। पर शादी 1883 में हुई। तब बापू साढ़े 13 साल के थे और बा 14 साल की। वनमाला पारिख अपनी पुस्तक में बा का जन्म अप्रैल 1869 लिखती हैं। जन्म तारीख स्पष्ट नहीं है। ठीक इसी तरह शादी की तारीख भी स्पष्ट नहीं है। बा के पिता का नाम गोकुल दास मकन जी था। माँ का नाम ब्रज कुअंर। वैष्णव परिवार था। बा के तीन भाई और दो बहनें थीं। पर लंबे समय तक जीवित बा और उनके भाई माधवदास ही रहे।
अक्षर ज्ञान से दूर बा थीं विदूषी महिला
काठिवाड़ में उस जमाने में लड़कियों को कोई पढ़ता ही नहीं था इसलिए बा भी पढ़ी लिखी बिल्कुल नहीं थीं। शादी के बाद बापू ने अलग-अलग समय में बा को पढ़ाने की कोशिश की। तब बा गुजरात में लिखना पढ़ना सीख गयी थीं। पर बापू बा के विद्वता और मानसिक स्तर की बहुत तारीफ करते हैं। अगर मौका मिला होता तो बा पढ़ने के बाद उच्च कोटि की विदूषी महिलाओं में गिनी जातीं। शादी के बाद बा और बापू के बीच अक्सर विवाद होते थे। बापू के एक अपनी बातमनवाने वाले पति के तौर पर व्यवहार करते पर धीरे-धीरे बा समझ गईं कि बापू किस मिट्टी के बने हैं। बा ने खुद को सामंजित किया और बापू के सामाजिक जीवन में उनकी बहुत बड़ी सहयोगी बन कर उभरीं। अपने आखिरी दिनों तक वे बापू के सुख-दुख का ख्याल रखने में लगी रहीं। इससे बापू को अपने सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने में काफी सुविधा हुई।
बा पर पुस्तकें
कुछ किताबें कस्तूरबा गाँधी पर केंद्रित लिखी गयी हैं। इनमें सबसे प्रमुख है वनमाला पारिख और सुशीला नय्यर की हमारी बा। यह गुजराती के अलावा हिंदी में भी उपलब्ध है।
नवजीवन प्रकाशन मंदिर की इस पुस्तक में बा के बारे में प्रमाणिक जानकारियाँ हैं। पहली बार 1945 में प्रकाशित इस पुस्तक को खुद बापू ने भी देखा था और उसकी प्रस्तावना भी लिखी है। मूल रूप से यह पुस्तक वनमाला पारिख का प्रयास है। इस पुस्तक में गाँधी जी सचिव रहे प्यारे लाल की बहन सुशीला नय्यर ने भी सहयोग किया है। पुस्तक में बा का लिखा एक दुर्लभ पत्र भी है जिसमें बा ने खुद को गाँधी जी की सहधर्मिणी होने पर गर्व किया है। बा लिखती हैं-मुझे जैसा पति मिला है वैसा तो दुनिया में किसी स्त्री को नहीं मिला होगा। मेरे पति के कारण ही मैं सारे जगत में पूजी जाती हूँ।
दूसरी पुस्तक बा और बापू को मुकुल भाई कलार्थी ने लिखा है। यह पुस्तक बा और बापू के बारे में संस्मरण के तौर पर है। यह भी नवजीवन प्रकाशन मंदिर से प्रकाशित है। पहली बार प्रकाशन 1962 में हुआ। इसकी प्रस्तावना मगन भाई देसाई ने लिखी है। कुल 175 पृष्ठों की पुस्तक में बा और बापू पर 120 संस्मरण हैं। पुस्तक पढ़ने पर बा और बापू के जीवन के बड़े ही सरल तरीके से चित्रात्मक स्वरूप में दृष्टिपात किया जा सकता है।
कस्तूरबा गाँधी पर तीसरी पुस्तक का नाम है- बा। पहला गिरिमिटिया लिख कर चर्चित हुए गिरिराज किशोर की यह नई पुस्तक आई है- बा। यह पुस्तक भी उपन्यास शैली में लिखी गयी है। गिरिराज किशोर ने पुस्तक लिखने से पहले बा के जीवन पर गहन शोध किया है। ठीक उसी तरह जैसे पहल गिरमिटिया लिखने से पहले किया था। पुस्तक 600 रुपये की है। हार्ड बांड में संस्करण में प्रकाशित है। एक अंग्रेजी लेखिका की पुस्तक भी बा पर मुझे देखने को मिली पर उसकी जानकारियाँ ज्यादा भरोसेमंद नहीं हैं।
(देश मंथन 27 मई 2016)

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