कुम्हरार – खंडहर सुनाते हैं बुलन्द इमारत की दास्ताँ

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विद्युत प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार : 

बिहार की राजधानी पटना में अगर इतिहास से रूबरू होना हो तो कुम्हार पहुँचे। कुम्हार के खंडहरों में अतीत की स्मृतियाँ हैं। यहाँ आकर आप इतिहास से साक्षात्कार कर सकते हैं। कुम्हारार वह जगह है जहाँ सम्राट अशोक के शासन काल में तृतीय बौद्ध संगीति हुई थी।

जहाँ आज कुम्हरार के अवशेष हैं, वहाँ पर कभी शानदार नियोजित नगर हुआ करता था। इसके कुछ अवशेष यहाँ देखे जा सकते हैं। खंडहरों को देखकर लगता है कि इमारत बुलन्द रही होगी। कुम्हरार का महल लकड़ी का बना हुआ था। भवन योजना कुछ इस तरह की थी कि 32 फीट ऊंचाई और 9 फीट गहराई वाले विशाल पत्थरों के पिलर पर इमारत खड़ी थी। पर छत के लिए लकड़ी का इस्तेमाल किया गया था। पिलर के निर्माण के लिए चुनार से लाये गये बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया था। कुम्हरार की नगर योजना में परिवहन के लिए नहरों का इस्तेमाल किया जाता था। कल्पना कर सकते हैं आप कि राजमहल का नजारा कैसा रहा होगा। इतिहास बताता है कि अजातशत्रु ने मगध की रक्षा के लिए यहाँ दुर्ग का निर्माण कराया था। 

भगवान बुद्ध ने पाटलिपुत्र में एक दुर्ग को देखा था। बाद में अजातशत्रु के पुत्र उदयन ने पाटलिपुत्र का महत्व समझते हुए पाँचवीं सदी ईश्वी पूर्व में मगध की राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित किया। तब से लेकर अगले एक हजार साल तक मगध की राजधानी पाटलिपुत्र ही रही। इस दौरान शिशुनाग, नंद, मौर्य, शुंग एवं गुप्त आदि वंश का शासन काल आया। कुछ विद्वान मानते हैं कि पाल काल में पाटलिपुत्र का राजधानी के तौर पर अस्तित्व था। अर्थशास्त्र के रचयिता चाणक्य और महाभाष्य के रचयिता पतंजलि का संबंध पाटलिपुत्र से रहा है।

पाटलिपुत्र की वैभव गाथा का वर्णन 300 इस्वीं पूर्व में आए यूनानी राजदूत मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में किया है। वहीं पाँचवीं सदी के चीनी यात्री पाहियान ने पाटलिपुत्र को संपन्न नगर बताया है। मौर्यकाल में नगर की परिधि 36 किलोमीटर बताई गई है। लोहानीपुर, बहादुरपुर, संदलपुर, कुम्हारार, बुलंदीबाग जैसे मुहल्ले मौर्यकालीन हैं। इन स्थलों ने मौर्यकालीन काष्ठ महलों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। मेगास्थनीज ने चंद्रगुप्त मौर्य के काष्ठनिर्मित महल के बारे में भी लिखा है। उसके मुताबिक पाटलिपुत्र शहर ईरान के सूसा और एकबतना से भी अधिक सुन्दर था। कुम्हरार की खुदाई में मौर्यकालीन विशाल सभागार के अवशेष मिले हैं।

तृतीय बौद्ध संगीति 

अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में तृतीय बौद्ध संगीति के होने प्रमाण मिलता है। यह सम्मेलन 249 ई.पू. में हुआ था। इसकी अध्यक्षता तिस्स मोग्गलीपुत्त ने की थी। माना जाता है कि इस संगीति में त्रिपिटक को अन्तिम रूप दिया गया था। माना जाता है कि अशोक ने सारनाथ का स्तंभ लेख इसकी संगीति के बाद लिखवाया था।

धनवंतरि का क्लिनिक 

कुम्हरार में महान चिकित्सक धनवंतरि के आरोग्य विहार होने का भी प्रमाण मिलता है। यहाँ खुदाई में एक मृदभांड का टुकड़ा मिला है जिस पर धनवंतरि का नाम लिखा है। यानी चौथी पाँचवीं शताब्दी में यहाँ समृद्ध चिकित्सालय था।

टेराकोटा संग्रहालय 

कुम्हार खंडहरों के परिसर में टेरोकाटा का संग्रहालय देखा जा सकता है। यहाँ पर कई तरह की मिट्टी से बनी हुई कलाकृतियाँ है। खास तौर पर यहाँ आप मिट्टी की खिलौना गाड़ी देख सकते हैं। परिसर में एक सभागार का भी निर्माण कराया गया है। यहाँ पेयजल का भी इन्तजाम है।

खुलने का समय 

कुम्हार के खंडहरों को 8 बजे सुबह से 5 बजे शाम तक देखा जा सकता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित परिसर में प्रवेश का टिकट 5 रुपये का है। विदेशियों के लिए प्रवेश टिकट 100 रुपये का है। सुबह में 5 बजे से यहाँ टहलने वाले भी आ जाते हैं। मार्निंग वाक के समय प्रवेश का कोई टिकट नहीं लगता। कुम्हार पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर और राजेन्द्र नगर रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर की दूरी पर कंकड़बाग रोड पर स्थित है।

(देश मंथन, 18  जुलाई 2015)

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