संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :
मन में हजार कहानियाँ उमड़ती घुमड़ती रहीं।
कल मुंबई में कुछ फोन चोरों को लोगों ने पकड़ कर चलती ट्रेन में नंगा करके बेल्ट से पीटा, मोबाइल से उनकी तस्वीरें उतारीं, तस्वीरें मीडिया तक पहुँचाई गयीं और इस तरह हमने देखा और दिखाया कि हम किस ओर बढ़ चले हैं।
खैर, सुबह-सुबह बुरी खबरें मुझे विचलित करती हैं।
कल रात में घर लौटा तो पता चला कि हमारे मुहल्ले में रहने वाली मिश्रा आंटी रात में बिस्तर से पानी पीने के लिए उठीं और उठते ही बिस्तर से गिर पड़ीं। वो कब तक गिरी रहीं, किसी को पता ही नहीं चला। हालाँकि तीन-चार घंटे बाद जब उन्हें जरा होश आया तो, किसी तरह वो दरवाजे तक पहुँचीं और उन्होंने बाहर का दरवाज़ा खोल दिया और फिर गिर पड़ीं।
दरवाजा खोल देने के पीछे उनका मकसद इतना ही था कि सुबह खुले दरवाजे को देख कर कोई तो घर के भीतर आएगा और उन्हें इस तरह गिरा हुआ देख कर इलाज के लिए शायद कहीं ले जाए।
हुआ भी यही। सुबह पड़ोस की कामवाली ने उनके पड़ोसियों को बताया कि मिश्रा आंटी के घर का दरवाजा खुला हुआ है। वो तो अकेली रहती हैं, फिर दरवाज़ा खोल कर कहाँ चली गयी हैं?
पड़ोसियों ने घर में झाँका तो मिश्रा आंटी जमीन पर गिरी हुई दिखीं।
आनन-फानन में लोग जुट गये। उनके कुछ रिश्तेदार दिल्ली में ही कहीं रहते हैं, उन्हें बुलाया गया। मिश्रा आंटी को वो लोग अपने साथ लेकर चले गये।
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मिश्रा आंटी कई सालों से इसी मुहल्ले में रहती हैं। अपने पति और दो बच्चों के साथ वो बहुत खुशहाल जिन्दगी जी रही थीं। उनके दोनों बच्चे हमारे सामने ही बड़े हुए। कुछ दिन पहले बेटी की शादी हो गयी, वो अपने ससुराल चली गयी। बेटा पढ़ाई करके नौकरी करने विदेश चला गया। इस तरह घर में रह गए मिश्रा अंकल और आंटी। जब तक बच्चे घर में थे, पढ़ाई कर रहे थे, मिश्रा अंकल नौकरी कर रहे थे, यह परिवार खुशहाल था। मिश्रा आंटी को मुहल्ले के लोगों से ज्यादा मतलब नहीं रहा। चार लोग, चार लोगों का परिवार, बस सब खुश।
पिछले साल मिश्रा अंकल लंबी बीमारी के बाद चल बसे। बच्चे आये थे, बाप के क्रिया कर्म के बाद वो भी चले गये। रह गयीं, मिश्रा आंटी।
तीन कमरों का मकान, एक बड़ा सा ड्राइंग रूम और डाइनिंग रूम। दो बाथरूम, एक रसोई, एक बॉलकनी।
मिश्रा अंकल की जिन्दगी भर की कमाई, दो बच्चों की पढ़ाई और ये मकान।
मिश्रा अंकल ने किसी से न बैर लिया न दोस्ती की। जिन्दगी गुजरती चली गयी। पर जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुँच कर मिश्रा आंटी खुद को बेहद अकेला महसूस करने लगी थीं। पर करतीं क्या?
कल बिस्तर से गिरने के बाद उन्हें काफी चोट लगी। पत्नी ने कल पूरी घटना बताई। मुझे बहुत अफसोस हुआ। मुझे आदमी के अकेलेपन पर हमेशा बहुत अफसोस होता है। मैंने न जाने कितनी बार सीढ़ियां चढ़ते-उतरते मिश्रा आंटी की झलक देखी है।
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सुबह सोचता ही रहा कि मोबाइल चुराने वाले चोरों की पिटायी पर लिखूँ। अपने तालिबानी हो जाने पर लिखूँ। पर जैसे ही कम्यूटर ऑन किया किसी ने फोन करके बताया कि मिश्रा आंटी नहीं रहीं। कल जब वो रात में बिस्तर से उठीं, तब शायद उनका ब्लड प्रेशर बहुत कम हो गया था। वो खुद को संभाल नहीं पायीं और जमीन पर गिर गयीं। सिर में चोट लगने से उन्हें ब्रेन हैमरेज हो गया। घर में तो कोई था नहीं, पड़ोसियों को जब सुबह पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
मिश्रा आंटी मेरी आँखों के आगे घूम रही हैं। घूमती रहेंगी।
संसार के ढेरों लोग, जो रिश्तों की भाषा नहीं समझते, जो अकेलेपन का दंश नहीं समझते, वो सब मेरी आंखों के आगे घूमते रहेंगे। ऐसे लोग जो पूरी जिन्दगी बस जिन्दगी जीने की तैयारी करते रह जाते हैं कि एक दिन जिन्दगी जी लेंगे, वो एक दिन भी जिन्दगी नहीं जी पाते।
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नफरत की हजार वजहें हो सकती हैं, मुहब्बत की भी कुछ वजहें जिन्दगी में तलाश लेनी चाहिए। आदमी अकेला ही पैदा होता है, अकेला ही मर जाता है। पर जीने के लिए कुछ रिश्ते बना ही लेने चाहिए।
मुझसे माँ ने कहा था, मैं आपसे दुहरा रहा हूँ कि इस संसार में अकेलापन से बड़ी कोई सजा नहीं।
(देश मंथन 18 फरवरी 2016)