बुरे काम का बुरा नतीजा

0
363

संजय सिन्हा, संपादक, आजतक :

मेरी आज की पोस्ट मेरे लिए है। मुझे बहुत यंत्रणा से गुजरना पड़ा अपनी आज की पोस्ट को लिखते हुए। बहुत बार हाथ रुके, पर हिम्मत करके मैं लिखता चला जा रहा हूँ। आसान नहीं होता, अपने विषय में ऐसा लिखना।

दुनिया की चोरी को पकड़ कर उस पर ज्ञान बघारना और बात होती है, दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाना और बात होती है, पर खुद उसे अमल में लाना बहुत आसान नहीं होता। आज संजय सिन्हा की अपनी परीक्षा थी। सुबह छह बजे से लेकर अभी तक दुविधा के दौर से गुजरते हुए आखिर मैंने तय किया कि जब मैं सब कुछ सच-सच लिखने का दावा करता हूँ, तो फिर यह सच क्यों छुपाना?

***

मेरे दफ्तर में इन दिनों आधार कार्ड बनवाने के लिए कैंप लगा है। मेरे पास आधार कार्ड पहले से है, पर मेरे कुछ साथियों ने मुझे सलाह दी कि मुझे प्लास्टिक वाला कार्ड बनवा लेना चाहिए। पहले जो आधार कार्ड बनते थे, वो कागज के होते थे। मैंने प्लास्टिक वाला कार्ड बनवा लिया। उन लोगों ने दुबारा कार्ड बनवाने की फीस 70 रुपये रखी है। 

परसों की बात है। मेरा कार्ड बन गया पर कार्ड बनाने वाले ने मुझसे पैसे नहीं लिए। मैं भी चुपचाप कार्ड हाथ में लेकर कमरे से बाहर निकल आया। लंच के दौरान मुझे याद आया कि मैंने उसे 70 रुपये नहीं दिए। उसने माँगा नहीं, मैंने दिया नहीं। मैंने सोचा कि लंच के बाद जाकर उसे पैसे दे दूँगा। पर लंच के बाद मैं बाहर निकल गया। कुछ देर बाद जब मैं दफ्तर वापस आया तो मुझे याद आया कि उसके पैसे तो मैंने दिये ही नहीं। पर तब तक मैं अपने काम में लग चुका था। और इस तरह पूरा दिन निकल गया। 

कल भी मुझे याद था कि मुझे 70 रुपये देने हैं। पर मैंने सोचा कि छोड़ो क्या फर्क पड़ता है।

***

फर्क पड़ता है। 

बहुत साल पहले, जब मैं छोटा था, श्रीनगर में सड़क के किनारे की एक दुकान से मैंने एक जींस खरीदी थी। तब जींस की कीमत कुल 40 रुपये थी। मैंने जींस को वहीं नापा, पुराने पैंट को लिफाफे में रखा और पर्स को पीछे की पॉकिट में रखा और चल पड़ा। 

मुझे अच्छे से याद था कि भीड़ में दुकानदार मुझसे अपने 40 रुपये लेना भूल गया है। तब वो 40 रुपये मुझे बहुत बड़ा फायदा नजर आ रहा था। 

मैं दुकान से पैदल चलता हुआ वहाँ पहुँचा, जहाँ ठहरा था। वहाँ पहुँच कर मैंने देखा कि मेरा पर्स गायब है। 

मैंने नोट किया कि नई जींस की जेब पीछे से फटी हुई थी। उस पर्स में मेरे दो सौ रुपये थे। 

मैं समझ गया कि ईश्वर ने मेरी गलती की सजा फटाफट मुझे दे दी है।

***

कल 70 रुपये याद आने के बाद भी नहीं देकर पता नहीं मैं कितना अमीर बन गया। मैं अपने काम में व्यस्त था कि अचानक पत्नी का फोन आया।

“संजय मेरा पर्स नहीं मिल रहा।”

“ठीक से देखो, घर में ही होगा।”

“सारा घर देख लिया, नहीं है।”

“कल कहाँ गयी थी?”

“कल यहीं पास के कुछ दुकानों में गयी थी। आखिर में मदर डेयरी गयी थी।”

“मदर डेयरी क्यों? दूध वाला तो दूध सुबह दे ही जाता है।”

“पता नहीं क्यों कल उधर से गुजर रही थी तो अचानक लगा कि दूध खरीद लूँ।”

“वहाँ पैसे दिये थे?”

“हाँ। मैंने बैग से छोटे पर्स को निकाला, उसमें से पैसे निकाल कर उसे दिए। उसने चेंज वापस भी किया। फिर मैंने उसे पर्स में रखा।”

“तो तुमने पर्स को वहीं काउंटर पर छोड़ दिया। अब पर्स नहीं मिलेगा।”

***

पर्स में ढेरों कार्ड, कई क्रेडिट कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और करीब पाँच हजार रुपये थे।

***

चोरी हीरा की हो या खीरा की, उसके दरबार में न्याय बराबर है। कुछ लोगों को तुरंत सजा मिल जाती है, कुछ लोगों के लिए फैसला आने में समय लगता है। देर चाहे जितनी हो, मेरा यकीन कीजिए आदमी को उसके किए की सजा मिल कर ही रहती है। मैं भाग्यशाली हूँ, तुरंत हिसाब हो गया। 

हालाँकि मैं किसी का पैसा नहीं रखता। मैं कभी किसी का नुकसान नहीं करता। मेरी पत्नी के पास तो गलती से किसी का पैसा रह जाए, तो तुरंत भाग कर जाती है, उसे वापस करने।

कश्मीर में तो मेरी नीयत में 40 रुपये की बेइमानी आ गयी थी। 

पर ये 70 रुपये पहले लापरवाही में छूटे फिर जब याद आया तो मुझे जा कर हिसाब करना चाहिए था। 

सबसे बुरी बात ये है कि याद आने के बाद भी मैं चुप लगा गया। मन ने यही कहा कि छोड़ो क्या होगा? 

अब वही मन कह रहा है कि बेटा, देख लिया न क्या होता है। बुरे काम का बुरा नतीजा। 

***

मन के एक कोने ने यह भी कहा कि 70 रुपये तुमने नहीं दिए, पत्नी को नुकसान क्यों? पत्नी को नुकसान कहाँ हुआ? वो तो मस्त हो कर सो रही है। कह रही थी कि किसी के पैंसो का नुकसान हमसे हुआ होगा, भगवान ने सजा दे दी। रही बात कार्ड कैंसिल और बनवाने की, तो वो तुम बनवा ही दोगे। 

मैं सारी रात बिस्तर पर उलट-पुलट होता रहा। तरह-तरह के सपने देखता रहा। 

70 रुपये के लिए यमराज मुझे खौलते तेल में डाल रहे हैं। 

आज दफ्तर जा कर अगर आधार कार्ड वाले का कैंप लगा मिला तो उसके 70 रुपये वापस करूँगा। 

हमारे जो पैसे गये, वो मेरी बदनियती के कारण गये। 

यह दूसरी बार हुई गलती है। दोनों बार सजा मिली। अब कभी नहीं। भूल कर भी नहीं। 

आप भी मत कीजिएगा ऐसी गलती। मैंने हिम्मत करके अपने पाप की कहानी सिर्फ इसीलिए आपको सुनायी है, क्योंकि आप सब मेरे परिजन हैं। मेरे ही दुख से अगर आप सीख लें, तो यह फायदे की बात है।

***

40 रुपये के बदले 200 का नुकसान। 70 रुपये के बदले पाँच हजार का नुकसान। 

महँगाई सचमुच बढ़ गयी है।  

(देश मंथन 12 फरवरी 2016)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें